Arthritis Risk Factors: अर्थराइटिस एक बेहद दर्दनाक बीमारी है जिसका अब तक कोई स्थायी इलाज नहीं सामने आया है। जोड़ो की इस बीमारी में धीरे-धीरे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और इनमें विकृति भी आ सकती है। अर्थराइटिस कई तरह का होता है और इसके होने के पीछे भी कई कारण हो सकते हैं। इस बीमारी में  जोड़ों के आसपास सूजन आ जाती है और ज्वाइंट्स को मूव करने में काफी तकलीफ होती है। अर्थराइटिस के रिस्क फैक्टर्स जानकर आप शुरुआत से ही हेल्थ को लेकर एहितयात बरत सकते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में। 

अर्थराइटिस से जुड़े रिस्क फैक्टर्स 

फैमिली हिस्ट्री - अर्थराइटिस कई तरह के होते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो कि पैरेंट्स के जरिये बच्चों को मिल सकते हैं। वेबएमडी के मुताबिक अगर माता या पिता में से किसी को अर्थराइटिस है तो बच्चे को इस बीमारी के होने की आशंका काफी बढ़ सकती है। 

उम्र - अर्थराइटिस की बीमारी से उम्र का भी संबंध होता है। बढ़ती उम्र के साथ कई तरह के अर्थराइटिस जैसे ऑस्टियोअर्थराइटिस, रुमेटाइड अर्थराइटिस और गठिया होने की आशंका हो सकती है। 

जेंडर - पुरुषों की तुलना में रुमेटाइड अर्थराइटिस की शिकार महिलाएं ज्यादा होती हैं, वहीं दूसरी ओर अर्थराइटिस के एक अन्य प्रकार गठिया के शिकार ज्यादातर पुरुष होते हैं। 

पूर्व की ज्वाइंट इंजुरी - अगर किसी व्यक्ति को पहले कभी जोड़ों में कोई गंभीर चोट लगी है तो समय के साथ इस परेशानी के अर्थराइटिस में तब्दील होने की आशंका बढ़ जाती है। 

मोटापा - जोड़ों के दर्द से जुड़ी समस्या और अर्थराइटिस के लिए मोटापा काफी जिम्मेदार होता है। फैट बढ़ने से जोड़ों पर तनाव पड़ता है। खासतौर पर घुटने, हिप्स और स्पाइन परे। ऐसे में मोटे लोगों में अर्थराइटिस होने का रिस्क काफी बढ़ जाता है। 

अर्थराइटिस के लक्षण 

  • जोड़ों में तेज दर्द होना
  • घुटने, कोहनी और उंगलियों में सूजन
  • इम्यून सिस्टम कमजोर होना