World Suicide Prevention Day: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 8 लाख लोगों की मौतें प्रतिवर्ष दुनिया भर में आत्महत्याओं के कारण होती हैं। ऐसे में वर्ल्ड साइकियाट्रिक एसोसिएशन की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि इतनी जाने तो दुनिया भर में प्रतिवर्ष होने वाली विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं और आतंकवादी घटनाओं में भी नहीं जाती हैं। इस स्थिति को काफी हद तक कम किया जा सकता है, अगर हम आत्महत्या की अंधी सुरंग में जा रहे लोगों को यह दिलासा दिला सकें कि हम तुम्हारे साथ हैं।
एक बड़ा कारण डिप्रेशन
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट का आकलन है कि दुनिया भर में 300 मिलियन (30 करोड़) से अधिक लोग अवसाद (डिप्रेशन) के शिकार हैं। 4.5% आबादी देश में भी डिप्रेशन से जूझ रही है। महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड्स द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, डिप्रेशन, आत्महत्या के एक बड़े कारण में शुमार है। अपनी जान को नुकसान पहुंचाने के मामलों में डिप्रेशन मुख्य भूमिका निभाता है। एक बड़ी संख्या में लोग दुनिया भर में डिप्रेशन के कारण ही आत्महत्या करते हैं।
तनाव भी है बड़ी वजह
यूरोपियन साइकियाट्रिक एसोसिएशन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों के दिलो-दिमाग पर तनाव हावी हो जाता है और जो मनोचिकित्सक या विशेषज्ञ डॉक्टर के परामर्श पर अमल नहीं करते, तो इस स्थिति में ऐसे लोग नकारात्मक विचारों से घिर जाते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी दुनिया अंधेरे में जा चुकी है, जिससे निकलने का कोई रास्ता नहीं है। इस तरह की मनोदशा कालांतर में आत्महत्या का कारण बन सकती है।
अन्य कारकों का दुष्प्रभाव
कुछ मनोरोग जैसे बाइपोलर डिसऑर्डर, सिजोफ्रेनिया आदि के अलावा मादक पदार्थों की एक अरसे से जारी लत भी खुद की जान लेने के जोखिम को बढ़ा सकती है। इसके अलावा किसी क्षेत्र में असफल रहना और उस असफलता को बर्दाश्त ना कर पाना भी आत्महत्या का कारण बन सकता है। वहीं संबंधों में विच्छेद से एक बड़ी संख्या में लोगों को भावनात्मक झटका लगता है, जिसे अनेक लोग सहन नहीं कर पाते। इसके अलावा पारिवारिक और व्यवसाय से संबंधित जिम्मेदारियों का बोझ और आर्थिक स्थिति बिगड़ना आदि ऐसे कारण हैं, जो खुद की जान को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाते हैं।
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इन लक्षणों पर दें ध्यान
- निराशावादी बातें करना यानी दूसरों के समक्ष इस तरह की बातें कहना कि अब जिंदगी जीने का मकसद नहीं रह गया है।
- सामाजिक मेल-मिलाप से कतराना।
- हमेशा अकेलेपन का एहसास होना।
- हमेशा अपने आप में गुमसुम रहना।
- स्वभाव में अचानक परिवर्तन यानी जो व्यक्ति अकसर खुशमिजाज रहता हो, वह उदास रहने लगे।
- समय पर खाना ना खाना, यानी भूख कम महसूस होना।
- नींद पूरी न ले पाना।
- किसी कारण के बिना खुद को जोखिम में डालने वाले कार्य करना। उदाहरण स्वरूप लापरवाही से वाहन चलाना आदि।
- आत्महत्या का प्रयास करने वाले कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो उपरोक्त संकेत नहीं देते और अपनी बात को मन में दबाए रखते हैं।
ऐसे करें बचाव
सामाजिक बनें: मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार जो लोग समाज में मिलते-जुलते रहते हैं और जिंदगी में रिश्तों को अहमियत देते हैं, उनमें आत्महत्या से संबंधित विचारों के पनपने की आशंकाएं काफी हद तक कम हो जाती हैं।
डॉक्टर से कंसल्ट करें: अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार दुनिया में मानसिक समस्याओं से पीड़ित लगभग 65% से अधिक लोग दूसरों से मदद लेने में हिचकिचाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर मैं किसी अन्य व्यक्ति को अपनी परेशानी बताऊंगा तो वे सब मेरी आलोचना करेंगे। ऐसे लोगों की गलत धारणा को दूर करने में डॉक्टर (मनोचिकित्सक) की हेल्प लेनी चाहिए।
आशावादी बनें: ईश्वर पर गहन विश्वास रखने से व्यक्तियों में चिंताओं, तनावों और पीड़ाओं से लड़ने का माद्दा विकसित होने में मदद मिल सकती है। ऐसा विश्वास व्यक्ति को निराशावादी से आशावादी बना सकता है। जो व्यक्ति आशावादी है, वह आत्महत्या करने का प्रयास नहीं करता है।
हॉबी विकसित करें: अगर आपकी संगीत, पेंटिंग या डांसिंग किसी में भी रुचि है तो इसके लिए डेली कुछ समय जरूर निकालें।
योगासन करें: विभिन्न योगासन, प्राणायाम और विशेषकर ध्यान या मेडिटेशन मन की अशांति को दूर करने का एक सशक्त माध्यम है।
कारगर उपचार पद्धतियां
इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी: इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी के अनुसार ईसीटी, डिप्रेशन समेत अन्य मनोरोगों को दूर करने की एक विशिष्ट चिकित्सा विधि है, जिसके अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं। इस विधि के अंतर्गत नियंत्रित विद्युत तरंगों के जरिए ‘ब्रेन केमिस्ट्री’ को प्रभावित किया जाता है। इसके जरिए मस्तिष्क में आने वाले आत्मघाती विचारों को सकारात्मक विचारों में तब्दील करने में मदद मिलती है।
एंटीडिप्रेसेंट टैब्लेट्स: मनोचिकित्सक पीड़ित व्यक्ति को लगभग 2 से 3 हफ्ते तक एंटीडिप्रेसेंट दवाएं लेने का परामर्श देते हैं।
साइकोथेरेपी: इस थेरेपी में मनोचिकित्सक मरीज के साथ संवाद स्थापित करते हैं और उसके परिजनों को भी सुझाव देते हैं।
फैमिली मेंबर्स रखें ध्यान
इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी के विशेषज्ञों के अनुसार बेहतर करियर के लिए पढ़ाई का दबाव और अभिभावकों को अपने बच्चों से बड़ी-बड़ी उम्मीदें संजोना, किशोर और युवाओं को तनावग्रस्त बनाता है। यह स्थिति कालांतर में डिप्रेशन और कुछ मनोरोगों के जरिए आत्महत्या का कारण बन सकती है। इससे बचने के लिए अभिभावकों को अपने बच्चों पर इस बात की नजर रखनी चाहिए कि उनके स्वभाव में नकारात्मक परिवर्तन तो नहीं हो रहे। अगर ऐसा है, तो फिर उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाएं।
(तुलसी हेल्थकेयर, नई दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. गौरव गुप्ता से बातचीत पर आधारित)