Happiness: हमें अक्सर परिवार और समाज के लिए जीने, देश दुनिया के काम आने, परोपकारी होने और लोगों के बीच रहने की सलाह दी जाती है। ऐसा जरूरी भी है, लेकिन जैसे दिन भर जागने, सक्रिय स्वस्थ और ऊर्जावान रहने के लिए रोज रात को छह से सात घंटे तक निर्बाध रूप से नींद लेना जरूरी है, ठीक वैसे ही खुद को समाज और परिवार के लिए उपयोगी बनाए रखने, मन- मिजाज दुरुस्त रखने और आत्मविकास के लिए रोज कुछ समय नितांत अकेले में बिताना और आत्मकेंद्रित होकर अपने बारे में विचार करना भी बेहद जरूरी है।

एकांत होता है विचारोत्पादक
हम अपनी दिनचर्या में इतनी सारी परिस्थितियों, लोगों, घटनाओं और उलझनो में फंसे रहते हैं कि हमें उनसे निपटने में ही अपनी सारी ऊर्जा और विचार शक्ति खपा देनी पड़ती है। हमें अपनी वास्तविक जरूरतों और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने का समय ही नहीं मिल पाता। प्रसिद्ध अमेरिकी भविष्यवादी और आविष्कारक निकोला टेस्ला ने कहा है कि अधिकांश लोग बाहरी दुनिया के चिंतन में इतने लीन होते हैं कि अपने भीतर क्या चल रहा है, उससे पूरी तरह बेखबर हो जाते हैं। आत्मविकास के लिए अन्य कार्यों के साथ ही हमें खुद पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह आदत वर्तमान ही नहीं भविष्य के लिए भी बहुत उपयोगी साबित होती है। इससे हमें जीवन के आत्मनिरीक्षण के अमूल्य क्षण और उपलब्धि का साधन मिलता है। जीवन में आत्मिक उपलब्धि पाने के लिए हमें अकेले रहने का भी अभ्यास करना जरूरी होता है। अनेक वैज्ञानिकों का यह अनुभव रहा है कि उनके महान आविष्कारों का भी रहस्य, उनका एकांत में रहना रहा है। वास्तव में अकेले रहने से ही नए और उत्पादक विचार जन्म लेते हैं।

आत्मचिंतन है जरूरी
यह कभी ना भूलें कि दूसरों को निखारने, संभालने और सुधारने का दायित्व आपका नहीं है। इसलिए दिन भर सिर्फ दूसरों को सुधारने में लगे रहना और उन्हें उपदेश देना, आपके लिए सही नहीं है। इसी तरह किसी दूसरे को अपने जीवन का एजेंडा निर्धारित करने का अधिकार भी आपको नहीं देना चाहिए। जाने-माने वित्त विशेषज्ञ और निवेशक वारेन बफे कहते हैं, ‘अपने लिए महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान देने और समय लगाने से आपकी प्रभावशीलता कई गुना बढ़ जाएगी। इसलिए अपनी सर्वश्रेष्ठता पर ध्यान दें और बाकी सब भूल जाएं।’ सफल लोगों और वास्तव में सफल लोगों में अंतर यह है कि वास्तव में सफल लोग ‘ना’ कहना जानते हैं। ना कहने का तात्पर्य यही है कि आपको आत्म केंद्रित होना चाहिए और अपनी बेहतरी के उपाय को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसा आप तभी कर सकते हैं, जब आप दिन में कुछ समय आत्मचिंतन करते हुए बिताएं।

रचनात्मक लेखन से जुड़ें
साइकोलॉजी टुडे में प्रकाशित मनोवैज्ञानिक कैरोलिन बर्नस्टीन ने अपने शोधपरक लेख में लिखा है कि अर्थपूर्ण जीवन जीना है तो आप आत्मकेंद्रित किस्से और कहानी लिखने की आदत डालें। इनमें स्वयं को किरदार के रूप में पेश करें और ऐसी स्थितियों की कल्पना करें, जो आप अपने लिए चाहते हैं। इससे आपकी रचनात्मकता तो बढ़ेगी ही साथ ही आत्म जागरूकता भी बढ़ेगी। सफलता सुकून और समृद्धि के लिए रचनात्मक होना बेहद जरूरी है। लेखन अपने आप में एक ताकत है। कविता, कहानी लिखकर आप अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति और दिशा दे सकते हैं। यह प्रतिभा आपको प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सकारात्मकता खोजने के गुण सिखाती है। मानसिक स्वास्थ्य बेहतर करने के लिए भी यह एक अच्छा अभ्यास है।

स्वार्थी होना शर्म की बात नहीं
हमें बचपन से ही स्वार्थी ना होना सिखाया जाता है। महिलाओं को तो विशेष रूप से इस बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि वह खुद से ज्यादा दूसरों का ख्याल रखें और घर के सदस्यों, माता-पिता, पति-बच्चों की खुशहाली के लिए अपनी इच्छाओं को समेट कर रखें। यह दूसरों को खुश करने का एक सामाजिक दबाव है। इसके लिए अपनी जरूरतों और इच्छाओं को अनदेखा करना ठीक नहीं है। बेहतर जिंदगी के लिए एक हद तक स्वार्थी होना और इच्छाओं को महत्व देना बेहद जरूरी है। स्वार्थी होने का मतलब अहंकारी होना नहीं है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि हम सामाजिक या पारिवारिक जिम्मेदारियां नहीं समझें। इसका सीधा अर्थ यही है कि बाकी के दायित्व निभाते हुए भी हम जिंदगी में अपने सपने पूरे करना और अपने तरीके से जीना चाहते हैं ताकि हम खुद को भी खुशहाल, सफल और समृद्ध बना सकें।

एकांत-अकेलेपन में अंतर
ओशो ने कहा है कि जब भी एकांत होता है, तो हम उसे अकेलापन समझ लेते हैं। तब हम तत्काल अपने अकेलेपन को भरने के लिए कोई उपाय कर लेते हैं। पिक्चर देखने चले जाते हैं, रेडियो खोल लेते हैं, अखबार पढ़ने लगते हैं। कुछ नहीं सूझता, तो सो जाते हैं, सपने देखने लगते हैं। आप अपने अकेलेपन को जल्दी से भर लेते हैं। ध्यान रहे, अकेलापन सदा उदासी लाता है, जबकि एकांत आनंद लाता है। अगर आप घड़ी भर एकांत में रह जाएं, तो आपका रोम-रोम आनंद से भर जाएगा। जबकि घड़ी भर अकेलेपन में अगर रह जाएं, तो आपका रोम-रोम थका और उदास हो जाएगा।

शिखर चंद जैन