Father's Day 2024 : विश्व भर में रविवार को फादर्स डे मनाया जा रहा है। इस दिन बच्चे अपने पिता के साथ बिताने के साथ ही उनके लिए खास प्लानिंग भी कर रहे हैं। किसी भी परिवार में एक पिता अपने बच्चों को सही दिशा देने के लिए हर कोशिश करता है। यही वजह है कि कई बार उसे अपने बच्चों के लिए सख्ती भी बरतनी पड़ती है, जबकि इसके लिए कई बार वह अंदर से परेशान भी हो जाता है। यहा कहा भी जाता है कि बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए एक पिता जितना बाहर से कठोर दिखता है, अंदर से वह उतना ही कोमल दिल का इंसान भी होता है।

फादर्स डे का इतिहास  
19 जून 1910 को पहली बार मनाया गया फादर्स डे। फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया। साल 2019 में फादर्स- डे के 109 साल पूरे हो गए। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है- सोनेरा डोड की। सोनेरा डोड जब नन्ही सी थी, तभी उनकी मां का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सोनेरो के जीवन में मां की कमी नहीं महसूस होने दी और उसे मां का भी प्यार दिया। एक दिन यूं ही सोनेरा के दिल में ख्याल आया कि आखिर एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? इस तरह पहली बार फादर्स डे मनाया गया।

कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है
पिता के लिए किसी ने यह भी कविता लिखी है कि कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता। कभी धरती तो कभी आसमान है पिता ।। जिसका अर्थ यह है कि एक बच्चे के लिए उसका पिता अभिमान है। उसके जीवन में उसके पिता का स्वाभिमान भी उसके लिए सब कुछ है। पिता की तुलना विशाल धरती और आसमान से भी की गई है। जिसका उद्देश्य यह बताया गया है कि पिता हर परिस्थिति में अपने परिवार के लिए कठोर से कठोर निर्णय लेने को तैयार रहता है।
 
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर...
भारत जैसे देश में पिता के लिए कोई एक दिन नहीं होता सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर... ठीक ऐसा ही पिता के साथ है। पिता पृथ्वी पर तो साक्षात भगवान हैं। इसलिए हम परमपिता को भी परमेश्वर कहते हैं। लेकिन जो पिता जन्म देता है, बचपन से लेकर जवानी तक हमें काबिल बनाता है। अपनी इच्छाओं को मारकर हमारी जरूरतों को पूरा करता है। दिन-रात अपने परिवार और संतानों के लिए परिश्रम करता है। उस लौकिक पिता का महत्व अलौकिक परमपिता से ज्यादा है। क्योंकि इससे संसार से परिचय हमें पिता ही कराता है। वह केवल हमें संसार में लेकर नहीं आता बल्कि संसार के महासागर में तैरना भी सिखाता है।

पिता तरक्की की नींव है
कड़वा रुखवा नीम का, इसमें सबकी जान।। फादर्स डे या पिता दिवस पश्चिम की एक परंपरा हो सकती है लेकिन भारत में पिता का अर्थ बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण है। भारत में पिता श्रद्धा और समर्पण का पर्याय है। यदि संतान पिता के प्रति श्रद्धा रखी है तो पिता भी संतानों के प्रति समर्पण का भाव रखता है। अपने पुरुषार्थ का अधिकांश हिस्सा अपनी संतानों को समर्पित करता है। एक परिवार को विकसित और पल्लवित करता है और फिर राष्ट्र के निर्माण में बहुमूल्य योगदान देता है। यदि जननी राष्ट्र के निर्माण की पहली सीढ़ी है तो पिता राष्ट्र के निर्माण की नींव है। यदि जननी सहनशीलता की पराकाष्ठा है तो पिता धैर्य का महासागर है। जबकि पश्चिम का दर्शन कहता है कि माता प्रथम शिक्षक हैं।