Opinion : प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पाने से लेकर प्रतिष्ठित नौकरी के अवसर पाने तक, प्रतियोगी परीक्षाएं भारत में किसी अभ्यर्थी के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं का आजादी के बाद से ही बहुत महत्व रहा है, और इसके पीछे कारण था देश की शिक्षा प्रणाली जो इन परीक्षाओं पर बहुत जोर देती थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने इस पृष्ठभूमि के कारण ही उद्यमिता के लिए युवा प्रतिभाओं का समुपयोजन करने के लिए ईमानदारी से अथक प्रयास किया है। हालिया नीट कांड ने सोचने पर विवश किया है। प्रतियोगी परीक्षाएं उच्च शिक्षा के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करती हैं। भारतीय शिक्षा के प्रतिस्पर्धी परिदृश्य में, जहां डॉक्टर या इंजीनियर बनने के सपने कम उम्र से ही पोषित किए जाते हैं, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी), संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और प्रबंधन अध्ययन के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा (कएट) जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। इन प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से लाखों छात्र सीमित सीटों के लिए होड़ करते हैं। इन परीक्षाओं का छात्रों के प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश पाने की संभावनाओं पर सीधा असर पड़ता है। एनईईटी और जेईई परीक्षाओं का दबाव भारतीय शैक्षिक परिदृश्य पर भारी पड़ता है. इन परीक्षाओं में सफलता को अक्सर किसी के शैक्षणिक और पेशेवर भविष्य का निर्णायक कारक माना जाता है।
शीर्ष-स्तरीय महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में उपलब्ध सीटों की सीमित संख्या के साथ, ये परीक्षाएं योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों के चयन के लिए एक निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र प्रदान करती है। भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं के महत्व का एक और कारण अवसरों को समान करने वाली उनकी भूमिका है। किसी की पृष्ठभूमि या सामाजिक-आर्थिक स्थिति से दूर, ये परीक्षाएं सभी अभ्यर्थियों के लिए समान अवसर प्रदान करती हैं।। बाहरी कारकों के बजाय अकादमिक योग्यता पर ध्यान केंद्रित करके, प्रतियोगी परीक्षाएं विविध पृष्ठभूमि के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और उसके बाद आजीविका की संभावनाओं तक पहुँचने का अवसर प्रदान करती हैं। ये
बाधाओं को तोड़ने में मदद करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि योग्य अभ्यर्थियों अपनी क्षमताओं के आधार पर शीर्ष तक पहुँच सके।
सदाचार बनाम कदाचार
भारत का युवा न केवल देश की आबादी का सत्तर-प्रतिशत हिस्सा हैं, अपितु 2047 के विकसित भारत का हितधारक भी है। "सुविधा, सुरक्षा और सम्मान" का सिद्धांत सदाचार का अनुमोदन करता है और कदाचार को अस्वीकृत करता है। देश के विभिन्न हिस्सों से एक के बाद एक कदाचार, प्रश्न पत्र का खुलासा (पेपर लीक), प्रतिरूपण (दूसरे व्यक्ति से परीक्षा दिलवाने) आदि की घटनाओं के कारण युवाओं का भविष्य दांव पर है। अतीत पर एक नजर डालें तो राजस्थान में 2018 के बाद से कदाचार की 12 घटनाएं हुई हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर मार्च 2022 में सब-इंस्पेक्टर भर्ती घोटाला और 2017 में एसएससी संयुक्त स्नातक परीक्षा में गड़बड़ सामने आई है। ऐसे कई उदाहरण हैं, लेकिन प्रमुख रूप से, पश्चिम बंगाल में नवंबर 2022 में प्रारंभिक शिक्षा डिप्लोमा का पेपर लीक हुआ था। फरवरी 2023 में फिर से पश्चिम बंगाल में ही अंग्रेजी का पेपर लीक हुआ। पश्चिम बंगाल में स्कूल सेवा आयोग का पेपर भी लीक हुआ। दिसंबर 2022 में राजस्थान में शिक्षक भर्ती घोटाला उजागर हुआ, जबकि फरवरी 2022 में शिक्षकों के लिए राजस्थान पात्रता परीक्षा भी कदाचार से ग्रस्त हो गई और परीक्षा फिर से आयोजित करनी पड़ी। मई 2022 में राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा घोटाले की भेंट चढ़ गई थी। गौरतलब है कि अब 2024-एनईईटी परीक्षा में धांधली होने के बारे में व्यापक शिकायतों और हाल ही में आयोजित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (यूजीसी नेट) का भी पेपर लीक शर्मनाक है। निहित स्वार्थ से प्रेरित इन कदाचार की घटनाओं ने एक बड़ा सवालिया निशान लगा युवाओं का भविष्य दांव
में पर लगा दिया है।
न्यायालय में जनहित याचिका
एनईईटी-2024 प्रवेश परीक्षा 5 मई 2024 को 4,750 केंद्रों पर 571 शहरों में (विदेश के 14 शहरों सहित) आयोजित की गई थी और इसमें लगभग 24 लाख अभ्यर्थियों ने भाग लिया था। इस परीक्षा के परिणाम 14 जून को घोषित होने की उम्मीद थी, लेकिन उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन पहले ही पूरा हो जाने के कारण परिणाम 4 जून को घोषित किए गए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में एनईईटी-2024 विवाद से संबंधित कथित
लीक और कदाचार के सभी मामलों पर रोक लगा दी है और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर एक साथ सुनवाई कराने की बात कही है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा 5 मई 2024 को आयोजित परीक्षा में कदाचार हुआ था, इसके के विभिन्न उवहरण याचिकाकर्ता के संज्ञान में आए थे। परीक्षा में धांधली भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, क्योंकि इसने कुछ उम्मीदवारों को दूसरों पर अनुचित लाभ दिया जिन्होंने निष्पक्ष तरीके से परीक्षा देने का विकल्प चुना। इस। मामले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश जेवी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई कराने पर सहमति व्यक्त की है। सर्वोच्च न्यायालय ने करते हुए नोटिस जारी करते हुए 8 जुलाई 2024 तक जवाब मांगा है, जब मामले को अगली सुनवाई होगी। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि अखिल भारतीय परीक्षा के परिणामों पर फिलहाल रोक नहीं लगाई जा सकती है और प्रवेश पर कोई भी निर्णय याचिका के समाधान पर निर्भर होगा। न्यायालय का सक्रिय रुख राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं के संचालन में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता की दर्शाता है।
सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024
इस अधिनियम का प्रस्ताव करने वाला विधेयक 5 फरवरी 2024 को लोकसभा में पेश पर किया गया था और अगले दिन 6 फरवरी 2024 को पारित हो गया था। 9 फरवरी को राज्यसभा ने भी विधेयक को पारित कर दिया। इसे 12 फरवरी को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 21 कौन जून 2024 को केंद्र सरकार ने आधिकारिक राजपत्र में इसे अधिसूचित किया। इस सेवा आयोगों, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे बैंकिंग भर्ती परीक्षाएं, मेडिकल, इंजीनियरिंग और विश्वविद्यालय कार्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षाओं सहित राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित विभिन्न कंप्यूटर आधारित सार्वजनिक परीक्षाओं में धोखाधड़ी और अनियमितताओं पर अंकुश लगाना है। हालांकि, यह अधिनियम 21 जून 2024 से पहले की घटनाओं पर पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा। इस अधिनियम में परीक्षा पत्र लीक करने के लिए जिम्मेदार लोगों के लिए न्यूनतम तीन साल की जेल का प्रावधान है, जिसे पाँच साल तक बढ़ाया जा सकता है। वहीं, संगठित सिंडिकेट के मामलों में दस साल की जेल का प्रावधान है। अधिनियम में सेवा प्रदाता कंपनियों की परीक्षाओं में कोई अनियमितता पाए जाने पर एक करोड़ तक के जुर्माने का प्रावधान है और परीक्षा की आनुपातिक लागत भी उससे वसूल की जाएगी। इसके अलावा दोषी पाए जाने पर ऐसी कंपनियों को चार साल के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।
चिंता की बात
निःसंदेह इस कानून का उद्देश्य युवाओं की योग्यता की रक्षा कर उनका कल्याण करना है। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस साल बजट सत्र की शुरुआत में संसद की संयुक्त बैठक में अपने संबोधन में परीक्षाओं में अनियमितताओं के संबंध में चिंता व्यक्त की थी। लेकिन आज महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि भ्रष्ट आचरण के चलते कुछ बेईमान तत्य जो युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं, उनके आकांक्षाओं और आजीविका को नष्ट करते हैं और कभी-कभी घातक आत्महत्याओं का कारण बनते हैं, को उदाहरणात्मक, कठोरतम सार्वजनिक दण्ड निर्देष-अभ्यर्थियों के लिए मरहम का काम कर सकता है? क्या इससे उन्हें अपने पोषित सपनों को पूरा करने में मदद मिल सकती है? क्या इससे उन्हें अपने खोए हुए अवसरों को पुनः प्राप्त करने में मदद मिल सकती है? क्या यह यह वैकल्पिक समाधान सिद्ध हो सकता है? यदि उपरोक्त मिल सकती है? क्या यह यह वैकल्पिक समाधान सिद्ध हो सकता है? यदि उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर "नहीं" है तो इस विषय गंभीर अंतर्निरीक्षण आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। जैसा 'भारत-भारती' में मर्मान्तक वेदना का अनुभव करते हुए मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा था- हम थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी। विचारें आज मिलकर, यह समस्याएं सभी।
डा. भारत (लेखक पंजाब विवि में वरिष्ठ कानून प्रवक्ता हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)