राजेश बादल. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार देश को मिल चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी इस सरकार ने जवाहरलाल नेहरू के लगातार तीन बार सरकार बनाने के कीर्तिमान की बराबरी कर ली है। मुल्क़ के मतदाता अब इस मिली-जुली सरकार से अनेक परिणाम चाहते हैं। जनादेश उन चुनौतियों से निपटने के लिए एनडीए सरकार से अपेक्षा करता है, जो नए भारत में दिनों-दिन विकराल होती जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बार सहयोगी दलों को भी जिम्मेदारी से साथ लेकर चलना होगा। जाहिर है कि प्राथमिकता की सूची में सर्वसम्मत न्यूनतम साझा कार्यक्रम ही सर्वोपरि होगा। हालांकि, भाजपा की भी अपनी प्राथमिकताएं रहेंगी।
पूर्व प्रधानमंत्री के उस कथन का सम्मान किया है
शपथ समारोह का भागीदार बनाने के लिए नई सरकार ने पड़ोसी राष्ट्रों के नायकों को आमंत्रित किया गया। यह महत्वपूर्ण बात है कि मालदीव के राष्ट्रपति भी इसमें आए। वे भारत विरोधी रवैये के लिए जाने जाते हैं और बीते दिनों अपने इंडिया आउट के फैसले के बारे में भारत में काफी आलोचना का शिकार हुए हैं। वे खुले तौर पर चीन समर्थक हैं। उन्हें न्योता देकर इस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस कथन का सम्मान किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हम सब कुछ बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसियों को नहीं। यह भावना नई सरकार की विदेश नीति में झलक सकती है।
महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार रहेंगे बड़ी चुनौती
इस बार चुनाव के प्रचार अभियान आकाश पर महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के आरोपों के घने बादल मंडराते रहे। दस वर्षों में भारत के लिए यह तीन मुद्दे बड़ी चुनौती बने रहे हैं। नई सरकार के लिए तमाम प्राथमिकताओं से ऊपर इन समस्याओं से निजात पाना मोदी मंत्रिमंडल के लिए बेहद जरूरी है। नई सरकार को सरकारी सेवाओं के दरवाजे और बड़े करने होंगे तथा किसानों और नौजवानों के लिए खास तौर पर काम करना होगा।
सतर्क और सावधान रहने का भी वक्त
नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतने के बाद संविधान की प्रति को सिर से लगाकर सम्मान देने की भावना का सार्वजनिक इजहार कर दिया है। धर्मनिरपेक्षता से उनकी सरकार के कामकाज से ही छवि बदलेगी। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार में शामिल दो बड़े घटक दल तेलगुदेशम और जनता दल (यूनाइटेड) का अपरोक्ष दबाव भी रहेगा। इन दोनों का रवैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूरे कार्यकाल में सतर्क और सावधान रहने के लिए बाध्य करता रहेगा। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को संतुष्ट करना समूचे कार्यकाल में प्रधानमंत्री के लिए एक अलग चुनौती बना रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)