Unique Traditions of Diwali: दिवाली एक त्योहार ही नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। दिवाली हमें एक-दूसरे से जुड़ने और खुशी बांटने का मौका देती है। भारत के विभिन्न राज्यों में दिवाली का उत्सव अलग अंदाज में मनाया जाता है। लेकिन मूल अर्थ एक ही है। 'बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधेरे पर प्रकाश की जीत। 

दिवाली का त्योहार हमें सिखाता है कि हमेशा सच्चाई की जीत होती है। घने अंधेरे में भी उम्मीद की किरण जलती रहती है। देश के विभिन्न हिंस्सों में दिवाली को लेकर अलग-अलग परंपराएं हैं। आइए जानते हैं कुछ रोचक तथ्य जो दिवाली के इतिहास और महत्व को साझा करते हैं। 

श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में दिवाली पर मनाया गया 8वें दीपोत्सव का दृश्य। 

उत्तर भारत: भगवान राम का स्वागत 
उत्तर भारत में दिवाली का पर्व अयोध्या में भगवान राम के स्वागत में मनाया जाता है। लोग घरों में दीयों और रंगोली सजाते हैं। आतिशबाजी कर जश्न मनाते हैं। नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइ‌यां बांटते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। 

पूर्वी भारत: काली पूजा के साथ दिवाली 
बंगाल में दिवाली का त्योहार काली पूजा के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व केवल प्रकाश का त्योहार ही नहीं बल्कि शक्ति की देवी मां काली की आराधना का पावन अवसर भी है। काली माता बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। काली पूजा बंगाली संस्कृति का अभिन्न अंग है।

दक्षिण भारत: तमिल में तेल-उबटन से दिवाली उत्सव 
दक्षिण भारत में दिवाली मनाने की वजह और मान्यताएं उत्तर से थोड़ा अलग हैं। कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्वशी से दिवाली उत्सव शुरू होता है। नरक चर्तुदशी के दिन लोग सूर्योदय के पहले तेल और उबटन लगाकर स्नान करते हैं। अमावस्या को वह सिर में तेल नहीं लगाते। यानी दिवाली का जश्न यहां तेल, उबटन और स्नान के साथ शुरू होता है।

पश्चिम भारत: गुजरात में पतंगवाजी 
पश्चिम भारत खासतौर से गुजरात में दिवाली को नए साल के रूप में मनाया जाता है। लोग घरों की साफ सफाई करते हैं। नए कपड़े खरीदते हैं और नए साल का स्वागत करते हैं। गुजरात में दिवाली में पतंग उड़ाना लोकप्रिय परंपरा बनी हुई है।

वाराणसी की देव दिवाली 
वाराणसी में देवताओं की दिवाली मनाते हैं । इसे देव दिवाली भी कहते हैं। मान्यता है कि दिवाली पर देवी-देवता गंगा में डुबकी लगाने धरती पर आते हैं। इसलिए गंगा तट पर दीये जलाकर प्रार्थना की जाती है। दीपों और रंगोली से सजे गंगा के किनारे बेहद मंत्रमुग्ध कर देने वाले लगते हैं।  

महाराष्ट्र : वासु बरस' की रस्म
महाराष्ट्र में दिवाली की शुरुआत 'वासु बरस' की रस्म से होती है। यह गायों के लिए होती है। आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि को श्रद्धांजलि देने धनतेरस मनाया जाता है। मराठी भाषी लोग दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा कर पति-पत्नी के प्यार का जश्न मनाते हुए 'दिवाली चा पड़वा' मनाते हैं।

ओडिशा कौरिया काठी
ओडिशा में दिवाली पर लोग कोरिया काठी करते हैं। यह एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें लोग स्वर्ग में अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। वह अपने पूर्वजों को बुलाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जूट की छड़े जलाते हैं। दिवाली के दौरान उड़िया देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी काली की पूजा करते हैं।

बंगाल में काली पूजा 
बंगाल में दिवाली काली पूजा या श्यामा पूजा के साथ मनाई जाती है जो रात की जाती है। देवी काली को हिबिस्कस के फूलों से सजाया जाता है और मंदिरों और घरों में पूजा की जाती है। भक्त मां काली को मिठाई, दाल, चावल और मछली भी चढ़ाते हैं। कोलकाता में दक्षिणेश्वर और कालीघाट जैसे मंदिर काली पूजा के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, काली पूजा से एक रात पहले, बंगाली घरों में 14 दीये जलाकर बुरी शक्ति को दूर करने के लिए भूत चतुर्दशी अनुष्ठान का पालन करते हैं।