Ek Mukhi Rudraksha: रुद्राक्ष का उपयोग सदियों से आध्यात्मिक क्षेत्र में होता रहा है। श्रीलंका और भारत में इसका इस्तेमाल बहुतायात में किया जाता है। वैसे तो यह एक फल की गुठली है, लेकिन इसे भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता रहा है। धार्मिक मान्यताओं की माने तो रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आंखो के जलबिंदु से हुई है। कहते है जो भी व्यक्ति इसे धारण करता है, उसके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। रुद्राक्ष को बेहद पवित्र और प्रभावी वास्तु माना गया है। वैसे तो रुद्राक्ष कई तरह के होते है, लेकिन इनमें से एक मुखी रुद्राक्ष अधिक प्रभावशाली, दुर्लभ और ताकतवर माना गया है।
रुद्राक्ष को यदि आप देखेंगे तो इसके एक कोने से दूसरे कोने तक धारियां बनी होती है। इन्हीं के आधार पर रुद्राक्ष की पहचान की जाती है। सभी प्रकार के रुद्राक्ष किसी न किसी रूप में लोगों को आध्यात्मिक तौर पर लाभ प्रदान करते है। एक मुखी रुद्राक्ष को सबसे दुर्लभ माना गया है, जिसे साक्षात् शिव कहा जाता है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति एक मुखी रुद्राक्ष धारण करता है, उसे जीवन में बेशुमार धन-दौलत, यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से जातक के शत्रुओं का नाश होता है। एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति निडर, साहसी और भाग्यशाली प्रवृत्ति का बन जाता है। कहा जाता है कि इस रुद्राक्ष में दैवीय शक्तियां वास करती है, इसलिए यह कुंडली दोषों को भी खत्म करता है।
एकमुखी रुद्राक्ष की पहचान
(Ek Mukhi Rudraksha Ki Pahchan)
एक मुखी रुद्राक्ष में सिर्फ एक धारी होती है, इसलिए इसे एक मुखी रुद्राक्ष कहा जाता है। इसका आकर गोलाकार होता है। यह दिखने में आधे चंद्रमा जैसा दिखाई देता है, जो मिलने में काफी दुर्लभ होता है। मिल भी गया तो यह कीमत में काफी महंगा होता है।
एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने के नियम
(Ek Mukhi Rudraksha Dharan Karne Ke Niyam)
धार्मिक मान्यता है कि एकमुखी रुद्राक्ष धारण हर किसी को धारण नहीं करना चाहिए। उसी व्यक्ति को इसे पहनना चाहिए, जो सदाचारी हो, सच्चा शिव भक्त हो। साथ ही वह व्यक्ति किसी तरह के नशे का आदी न हो और गलत कामों से दूर रहे। इसे सावन माह, सोमवार का दिन या शिवरात्रि पर धारण करें।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।