Sankashti Chaturthi: हर हिंदी महीने में दो चतुर्थी पड़ती हैं। एक कृष्ण पक्ष में, दूसरा शुक्ल पक्ष में, दोनों चतुर्थी भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। चतुर्थी तिथि को चंद्रदर्शन के मद्देनजर इसी दिन व्रत करेंगे। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान गणेश प्रसन्न होकर भक्त को हर संकट से मुक्त कर देते हैं।

देवीधाम मैहर के ज्योतिष आचार्य पंडित मोहनलाल द्विवेदी ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकट को हरने वाली चतुर्थी है, जिस व्यक्ति को किसी भी प्रकार की तकलीफ है, वह इंसान यह व्रत रखता है और गौरी पुत्र गणेश की पूजा करता है तो गणेश उसे दुखों से छुटकारा दिलाते हैं। इस दिन लोग सूर्योदय के समय से सूर्यास्त तक उपवास रखते हैं।

चतुर्थी व्रत की तिथि
महावीर पंचांग अनुसार शनिवार, 30 दिसंबर - संकष्टी चतुर्थी; 30 दिसंबर को सुबह 8:21 बजे शुरू होगा और 31 दिसंबर को सुबह 10:15 बजे समाप्त होगा।

संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
1. गणेश चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें उसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
2. मंदिर में गणेश प्रतिमा को गंगाजल और शहद से अच्छी तरह साफ करें।
3. सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, जनेऊ, प्रसाद का चढ़ावा करें।
4. धूप और दीप जलाएं साथ ही ऊं गं गणपतये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
5. गणेश जी के सामने व्रत का संकल्प लेकर पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें।
6. व्रत में फल, दूध, पानी और जूस ग्रहण कर सकते हैं।
7. घी का दीया जलाकर पूजा का संकल्प लें।
8. गणेशजी का ध्यान करें।
9. गणेशजी को पहले जल, फिर पंचामृत के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं।
10. गणेश मंत्र और गणेश चालीसा का पाठ करें।
11. गणेशजी को वस्त्र अर्पित करें।
12. सिंदूर, चंदन, फल और फूल अर्पित करें साथ ही सुगंध वाली धूप दिखाएं।
13. दीपक गणपति प्रतिमा को दिखाकर हाथ धोएं और नए कपड़े से हाथ पोछ लें।
14. नारियल और दक्षिणा अर्पित करें उसके बाद संकष्टी चतुर्थी कथा पढ़ें।
15. परिवार के सभी लोग मिलकर गणपति की आरती करें, आरती में कपूर के साथ घी में डूबी तीन से अधिक बत्तियां रहें।
16.  गणपति की एक बार परिक्रमा करें और भूलचूक के लिए माफी मांगें साथ ही अपनी सुखी जीवन की कामना करें।
17. गणपति की पूजा के बाद गाय को हरी घास या रोटी खिलाएं, गौशाला में दान भी कर सकते हैं।
18.  रात में चंद्रमा निकलने से पहले गणपति की पूजा करना है उसके बाद व्रत कथा पढ़ें और चंद्र दर्शन के बाद पूजा कर व्रत खोलें।
19.इसके बाद पारण करें।