Tulsidas Jayanti 2024: गोस्वामी तुलसीदास की जयंती 12 अगस्त 2024 को मनाई जा रही है। सावन में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 527वीं जयंती मनाई जाएगी। तुलसीदास जयंती उनके आध्यात्मिक छंदों के माध्यम से तुलसीदास के महत्वपूर्ण योगदान का भी सम्मान करती है। ऋषि वाल्मिकी के रामचरितमानस के संस्करण का संस्कृत से अवधी में अनुवाद करने वाले तुलसीदास को व्यापक रूप से मनाया जाता है।
तुलसीदास जयंती गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। वह एक महान कवि, संत और महान हिंदू धर्मग्रंथ "रामचरितमानस" के महान लेखक भी थे। तुलसीदास जयंती सबसे शुभ दिनों में से एक है जब लोग गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाते हैं, जो रामचरितमानस (हिंदू धर्म का पवित्र और सबसे पवित्र ग्रंथ) के लेखक हैं। तुलसीदास जी का जन्म आत्मा राम और हुलासी देवी के घर पर हुआ था।
संस्कृति भाषा में लिखा था रामचरितमानस
श्री रामचरितमानस के मूल संस्करण को सबसे पहले ऋषि वाल्मिकी जी ने लिखा था, लेकिन बाद में गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसका संस्कृत भाषा से अवधी में अनुवाद किया था। मान्यता के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास जी, ऋषि वाल्मिकी जी के अवतार थे। उनका जन्म 32 दांतों के साथ हुआ था और वह रोते नहीं थे। धर्मगुरुओं के अनुसार वे पहला शब्द राम कहते थे, यही कारण है कि उन्हें रामबोला भी कहा जाता था। उन्हें नरहरिदास ने गोद ले लिया और उन्होंने ही राम मंत्र और नया नाम तुलसीदास दिया।
भगवान श्री राम के प्रबल भक्त
तुलसीदास जी भगवान श्री राम के प्रबल भक्त थे, इसलिए लोग तुलसीदास जयंती के दिन भगवान राम की पूजा कर रामचरितमानस का पाठ करते हैं। इसके साथ ही भक्त इस दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाने के लिए भंडारे का आयोजन करते हैं। ब्राह्मण को कपड़े और भोजन दान करना अत्यधिक पुण्यदायी माना जाता है। जो लोग किसी कारणवश रामचरितमानस का पाठ नहीं कर पाते, वे राम मंत्र का जाप करते हैं।
तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरितमानस श्लोक
- राम नाम मणि दीप धारु जीह देहरी द्वार, तुलसी भीतर बहेराहूं, जौ चहसी उजियार..!!
- राम नाम को कल्पतरु, कलि कल्याण निवासु, जो सुमिरत भयो भंग, ते तुलसी तुलसीदास..!!
- तुलसी भरोसे राम के, निर्भये होके सोये, अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होये..!!
- काम क्रोध लोभ मोह जो लो मन में खां, तो लो पंडित मूर्ख, तुलसी एक समान..!!
- तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग, सबसे हस मिल बोलिये, नदी नाव संजोग..!!
- दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोड़िये, जब लग घट में प्राण..!!
- तुलसी साथी विपत्ति के, विधि विनय विवेक, सहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक..!!
- कर्म प्रधान, विश्व करि राखा, जो जस करै, सो तस फल चाखा..!!
- चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घीसे, तिलक देत रघुवीर..!!
- आवत हे हरषे नहीं नैनन नहीं स्नेह, तुलसी तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह..!!