राजनांदगांव। पिता के मौत की खबर से गला रुंध रहा था, आंखें भीतर ही भीतर डब दबा रही थी, लेकिन उस कलाकार ने अपनी भावनाओं को अपनी अदाकारी के बीच नहीं आने दिया और जिंदगी के अभिनय को रंगमंच पर प्रकट नहीं होने दिया। उस कलाकार ने दिल के कोने में सिसकियों को दबाकर रूंधे गले से भी सुर में गाया। चेहरे पर दुखों के भाव को मुस्कान में बदल कर रंगमंच के अभिनय और जीवन की अदाकारी को बखूबी निभा लिया। 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री विष्णु देव साय

हम बात कर रहे हैं, बस्तर ओलंपिक में अपनी प्रस्तुति देने वाले ऐसे कलाकार की, जिन्होंने अपनी कला साधना का अद्भुत उदाहरण पेश किया है। बीते 15 दिसंबर को बस्तर ओलंपिक के फाइनल में एक ऐसी घटना घटी, जिसने सभी को भावुक कर दिया। दरअसल राजनांदगाव के कलाकारों ने इस आयोजन में नक्सल प्रभावित ग्रामीणों की स्थिति को एक नुक्कड़ नाटक के माध्यम से सभी के सामने प्रस्तुत किया, जिसमें एक युवा कलाकार नागेश पठारी ने अपने पिता के निधन के दो घंटे बाद भी अपना अभिनय प्रस्तुत किया। यह घटना सभी के लिए प्रेरणादायक रही। नागेश के पिताजी जीआर पठारी का निधन हार्ट अटैक की वजह से 15 दिसंबर की दोपहर एक बजे राजनांदगांव में हुआ। जब उनके पिता की मृत्यु हुई, उस समय नागेश बस्तर ओलंपिक फाइनल जगदलपुर में मौजूद थे। उनके कार्यक्रम का मंचन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के सामने दोपहर 3 बजे प्रस्तुत होना तय था। इस नाटक में नागेश मुख्य भूमिका निभा रहे थे। अपने पिता की मृत्यु की खबर सुनने के बाद भी नागेश ने अपने नाटक के प्रदर्शन को ही प्राथमिकता दी। 

कलाकार अपनी प्रस्तुति दिखाते हुए

जीवन का अभिनय भी एक कला

अपने पिता के शोक भाव को मन के एक कोने में दबाकर उन्होंने गाना गाया, नृत्य किया और इंग्लिश की कहावत "दा शो मस्ट गो ऑन" को सही साबित कर दिया। नागेश के इस संकल्प और समर्पण ने दर्शकों के साथ ही मंच पर उपस्थित सभी अतिथियों को भी प्रभावित किया। नागेश का मानना है कि उनके पिता भी शायद यही चाहते होंगे कि वह अपना प्रदर्शन पूरा करें और यह साबित कर दिया कि धरती पर जीवन भी एक कभी नहीं ही है, जिसके हम सब कलाकार हैं।

साथी कलाकारों ने भी खुद को संभाला

नागेश के इस भावनात्मक क्षण ने बस्तर ओलंपिक को और भी भावनात्मक बना दिया। पिछले 10 वर्षों से अभिनय क्षेत्र में काम कर रहे नागेश की इस दृढ़ निश्चयता ने सभी कलाकार साथियों में एक नई ऊर्जा भर दी। यह घटना हमें बताती है कि एक कलाकार का जीवन भावनात्मक रूप से कितना चुनौती पूर्ण होता है और किसी भी कठिन परिस्थिति में भी किस तरीके से अपने प्रदर्शन को पूरा करने के लिए वह स्वसंकल्पित रहता हैं।