गणेश मिश्रा-बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के बेलम गुट्टा की पहाड़ी पर 20 जनवरी को हुए पुलिस-नक्सली मुठभेड़ को अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने फर्जी ठहराया है। इस मामले में मृतकों के परिजनों ने 24 जनवरी को बासागुड़ा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है। 

इस मामले को लेकर बीजापुर में पत्रवार्ता में बेला ने कहा कि, पुलिस जिन्हें नक्सली बता रही है, असल में वो निर्दोष ग्रामीण थे। वे गोरनम में मुतवेंदी प्रकरण को लेकर जारी अहिंसक धरना-प्रदर्शन में अपनी भागीदारी निभाने जा रहे थे, उन्हें बीच रास्ते में रोककर पुलिस ने उनपर गोलियां दाग दीं।

धरना में शामिल होने जा रहे थे ग्रामीण-बेला 

परिजनों के हवाले से बेला का कहना था कि, घटना 20 जनवरी सुबह की है। बेलम नेंडरा गांव से 8 ग्रामीण धरना में शामिल होने के उद्देश्य से रवाना हुए थे। गोटूमपारा से लगभग एक किमी दूर बेलम पहाड़ी पर चढ़ने के दौरान पुलिस जवानों ने उनका रास्ता रोक लिया।

कतारबद्ध जा रहे ग्रामीणों पर जवानों ने दागीं गोलियां

बेला के अनुसार, आदिवासी अक्सर कतारबद्ध ही चलते हैं। गोरनम जा रहे ग्रामीण भी कतार में चल रहे थे कि, जवानों की तरफ से चली गोली कतार में सबसे आगे सोनी मड़कम, नागी पुनेम, कोसा कारम को लगी।  इससे तीनों की मौके पर मौत हो गई। घटना के प्रत्यक्षदर्शी पीछे चल रहे पांच अन्य ग्रामीण हैं।

जवानों पर ग्रामीणों से मारपीट का आरोप 

बेला का आरोप है कि, इसके बाद जवान बाकी पांच ग्रामीणों को पकड़कर बीजापुर ले गए। वहां पर उन्होंने उनके साथ बेरहमी से मारपीट की। इसके बाद इनमें से चार ग्रामीणों को छोड़ दिया लेकिन कमलेष बारसे और बूधी उईका को उनके घर से पकड़कर जेल में दाखिल कर दिया गया। 
 
निर्दोष थे ग्रामीण 

उनका कहना है कि, मारे गए और पकड़े गए ग्रामीणों का नक्सल संगठन और गतिविधियों से तो दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। पुलिस जिसे मुठभेड़ बता रही है, वह मुठभेड़ न होकर हत्या है। मृतकों में शामिल कोसा कारम के पांच बच्चे हैं। वह खेती-किसानी कर परिवार का भरण पोषण कर रहा था, जबकि दो नाबालिग थे। जवानों की गोलियों से बचने वाले पांच युवक हैं, जो गोरना गांव में मुतवेंडी घटना के विरोध में जारी धरना-प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे थे। उनके परिजनों ने थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई और जवानों पर हत्या का आरोप लगाकर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। 

बेला ने लोकतंत्र पर उठाए सवाल 

बेला ने कहा कि, बस्तर में नक्सल उन्मूलन के नाम पर फांसीवादी व्यवस्था को अपनाकर लोकतंत्र को पीछे ढकेलने का काम हो रहा है। आदिवासी अपने ही पहाड़ी-गांव में आज सुरक्षित नहीं हैं। जो मारे गए वो केवल 6 माह की मासूम को न्याय दिलाने के लिए जारी अहिंसक लड़ाई का हिस्सा बनने जा रहे थे। घटना से सवाल उठता है कि, हमारा लोकतंत्र आखिर किस दिशा में बढ़ रहा है?