रायपुर। आश्विन माह आधा पूर्ण हुआ.. पितृ पक्ष विदा हुआ..पूर्ण संतुष्ट पितृ–गण, अपने धाम को लौट गए. आज से नवरात्र उत्सव जागृत हो रहे हैं. हम सब ने मां जगदम्बा की अनेक कहानियां सुन रखीं हैं. मां हमारे भीतर और बाहर तो सदैव विराजमान हैं ही, सृष्टि के कण–कण में पसरी पराम्बा–शक्ति का अनुभव, हमारी मानसिक दिनचर्या है.
गुफाओं–कंदराओं में,
वीर की भुजाओं में,
भोर में,निशाओं में,
दीप्त–अनल शिखाओं में,
समस्त भाव से प्रखर,
चैतन्य हो, प्रमाण हो..
हे आदिशक्ति अंबिके,
तुम्हीं तो विद्यमान हो...
तीन–लोक रीति में,
सुमन–भ्रमर की प्रीति में,
महासमर में,शांति में,
स्निग्ध सांझ–कांति में,
कल्पना में,भ्रांति में,
चैतन्य हो,प्रमाण हो,
हे आदिशक्ति अंबिके,
तुम्हीं तो विद्यमान हो..
विशाल शैल–खण्ड में,
हो अनल–प्रचण्ड में,
नक्षत्र में आकाश में,
नव–दिवस प्रकाश में,
आस्था की आस में,
चैतन्य हो,प्रमाण हो,
हे आदिशक्ति अंबिके,
तुम्हीं तो विद्यमान हो...
प्रसन्नता में,ओज में,
पूर्ण सत्य–खोज में
इस धरा की धीर में,
गगन,क्षितिज,समीर में,
अनंग प्रेरणा मधुर,
चैतन्य हो प्रमाण हो,
हे आदिशक्ति अंबिके,
तुम्हीं तो विद्यमान हो..
प्रार्थना के सार में,
सूक्ष्म में,अपार में,
भाव में,विचार में,
लघु–वृहद प्रकार में,
अनंत आत्म–शक्ति में,
चैतन्य हो प्रमाण हो,
हे आदिशक्ति अंबिके,
तुम्हीं तो विद्यमान हो...
आदि–शक्ति के इस साक्षात् उपस्थिति के कई भाव प्रमाण हैं. भारत भूमि ने इसे कई बार सूक्ष्म और विराट रूप में धारण किया.. मां भारती के आंचल में असंख्य वीरांगनाओं और विलक्षण नारियों ने जन्म लिया, जिनके नाम सुनते ही मन श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है. मां जगदम्बा की असंख्य शक्तियों, भाव रसों, और प्रेरणाओं के बिंदुरूप इन नारियों में स्पष्ट परिलक्षित है..इन नारियों ने कहीं न कहीं मां जगदम्बा के दुर्गा तत्व का अनुसरण किया,और इतिहास में अमर हो गईं. उनकी शौर्य, समर्पण और विराट छवि को प्रणाम पहुंचाने के लिए नवरात्र से सुन्दर अवसर भला और क्या हो सकता है..
नवरात्र में इस बार प्रयास रहेगा उनके जीवन पर कुछ शब्दचित्र रचने का.. उन की कहानियां हम पढ़ेंगे कल से. इस नवरात्र कुछ शब्दांजलियां उन्हीं शुभ–लक्षणाओं को, जिनको याद कर मां भारती भी गर्व से मुसकुराती हैं..उन महानता की प्रतिमूर्तियों की चरणरज आज भी मस्तक पर सजती है.. उन चरणों में कुछ श्रद्धा के दीप हम सब की ओर से भी..
नवरात्र की मंगलकामनाएं
आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय