रायपुर। राजधानी रायपुर में शासकीय भूमि का फर्जीवाड़ा कर कब्जा करने का बड़ा मामला सामने आया है। भाठागांव में किसानों के नाम पर दर्ज करीब 63 एकड़ चारागाह की भूमि एक भू-माफिया ने कब्जा कर लिया है। बताया जा रहा है कि भू-माफिया ने जिन किसानों के नाम पर भूमि दर्ज थी, उनसे सौदा तय कर अपने नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी ले लिया है और अब इस भूमि पर अपने नाम का बोर्ड लगाकर भूमि पर कब्जा कर लिया है। 

इधर इसकी खबर जैसे ही गांव में फैली, सभी इस सौदे और कब्जा के विरोध में उतर आए। गांव वालों का कहना है कि चारागाह की भूमि 173 लोगों के नाम पर दर्ज थी। इनमें चार किसानों ने बाद में राजस्व अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर पूरी भूमि को अपने नाम पर दर्ज करा लिया है, जिसका सौदा भू- माफिया से किया है। गांव वालों का यह भी कहना है कि इस भूमि पर कॉलेज भवन का निर्माण होना था, जिसके लिए करीब 6 वर्ष पूर्व बजट का प्रावधान भी किया गया था।

कब्जा के विरोध में बंद रहा भाठागांव

कब्जा के विरोध में शुक्रवार को पूरा भाठागांव बंद रहा। गांव में निवासरत साहू समाज, सतनामी समाज, यादव समाज, ध्रुव समाज सहित अन्य समाज के अध्यक्ष व प्रमुख लोगों के बीच कुछ दिन पूर्व चारागाह की भूमि को कब्जा मुक्त कराने के लिए बैठक हुई थी, जिसमें 19 जुलाई को भाठागांव के व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद रखने का निर्णय लिया था। इस निर्णय की जानकारी गांव के एक-एक घर व दुकान में जाकर दी गई थी। इस निर्णय का सभी लोगों ने समर्थन भी किया। इस निर्णय के तहत सब्जी बाजार से लेकर अन्य सारी दुकानें बंद रहीं। हालांकि बंद से जरूरी सेवाओं को मुक्त रखा गया था, जिससे मेडिकल दुकान, पेट्रोल पंप, अस्पताल खुले रहे।

सामूहिक बैठक में हजारों की संख्या में शामिल हुए ग्रामीण

भाठागांव बंद के दौरान गांव में सामूहिक बैठक रखी गई थी। यह बैठक पुराना जोन कार्यालय के पास शिवमंदिर में हुई। इस बैठक में गांव में निवासरत सभी समाज के प्रमुख लोगों सहित हजारों की संख्या में पुरुष, महिलाओं के साथ बच्चे तक पहुंचे थे। सार्वजनिक रूप से बैठक होने के कारण पुलिस बल भी मौके पर तैनात रहा।

तहसीलदार के आश्वासन के बाद खत्म की बैठक

इस बैठक में गांव वालों के बीच एक राय बनी थी कि चारागाह की भूमि को भू माफिया से मुक्त कराना है। बैठक की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन की ओर से यहां तहसीलदार पहुंचे, जिन्होंने गांव वालों को आश्वस्त किया कि इस मामले की जांच की जाएगी और जिन किसान परिवारों के नाम चारागाह के रिकार्ड में पहले दर्ज थे, उन सभी परिवारों के नाम पुनः दर्ज किए जाएंगे। बैठक सुबह 11 से शाम 4.30 बजे तक चली, जो तहसीलदार के आश्वासन के बाद खत्म हुई।

यह है पूरा मामला

गांव के विभिन्न जाति समाज प्रमुखों में रवि सोनकर, स्वामीदास साहू, दुकलहा धृतलहरे, संतोष यादव, संतोष नेताम ने बातचीत में बताया कि भाठागांव में 63 एकड़ चारागाह भूमि 173 किसानों के नाम पर दर्ज थी। रजिस्ट्री दस्तावेज में सबसे ऊपर रामानुज अग्रवाल, सरोज सोनकर, प्रेमलाल साहू एवं हेमंत ध्रुव के परिवार के नाम थे, जबकि अन्य किसानों के नाम नीचे अंकित थे। समाज प्रमुखों ने बताया कि जानकारी मिली है कि यह भूमि अब सिर्फ चार किसानों के नाम पर दर्ज है। यह भूमि उनकी है, इसके लिए चारों किसानों ने पहले हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है। इधर चारों किसानों ने चारागाह की पूरी जमीन का सौदा भी कर दिया है। जिसके साथ सौदा हुआ है, उसके नाम चारों किसानों ने भूमि का पावर ऑफ अटार्नी भी दे दिया है।

तहसील में चल रहा मामला

रायपुर के तहसीलदार प्रवीण परमार ने बताया कि,  63 एकड़ चारागाह की भूमि चार किसानों के नाम पर दर्ज है। इस संबंध में तहसील कार्यालय में प्रकरण चल रहा है। यह दो साल पुराना प्रकरण है। इस संबंध में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक मामला जा चुका है। तहसील से प्रकरण पर फैसला आने तक भूमि पर किसी भी प्रकार के निर्माण संबंधी काम पर रोक लगाई गई है। कब्जा करने वाला व्यक्ति भूमि के मुख्य मार्ग पर गेट लगाकर मुरुम रोड का निर्माण कर समतल करा रहा था, जिस पर रोक लगाई गई है।

अरबों की भूमि का कौड़ियों के दाम सौदा

63 एकड़ चारागाह की भूमि मुख्य सड़क से लगी हुई है, जो स्वामी आत्मानंद बिन्नी बाई सोनकर स्कूल के पीछे है। इस क्षेत्र में प्रति एकड़ भूमि की कीमत 5 से 6 करोड़ बतायी जा रही है। इस तरह 63 एकड़ भूमि की कुल कीमत 315 करोड़ रुपए आंकी जा रही है, जबकि किसानों से इस भूमि का करीब 4 करोड़ में सौदा करने की खबर है। गांव के लोगों का आरोप है कि सौदे की राशि किसानों को मिल चुकी है, इसलिए वे सभी सौदे को कैंसिल कराना नहीं चाह रहे हैं।

चारागाह की भूमि पर ही बना है शासकीय स्कूल

ग्रामीणों ने बताया कि, चारागाह की भूमि पहले 67 एकड़ थी। इसमें से 4 एकड़ में शासकीय स्कूल बनाया गया है, जबकि 63 एकड़ में एक कॉलेज का निर्माण होना था, जिसके लिए भाजपा शासनकाल में 4 करोड़ रुपए की राशि भी स्वीकृत की गई थी, लेकिन पूर्व कांग्रेस सरकार में स्वीकृति को निरस्त कर दिया गया।

अरबों के खेल में जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत की भी आशंका

ग्रामीणों ने अरबों की भूमि को कोड़ियों के दाम बेचने का प्रयास करने के खेल में कई जनप्रतिनिधियों के शामिल होने की भी आशंका व्यक्त की है। ग्रामीणों का कहना है कि भूमि को 173 की जगह 4 किसानों के नाम पर करने से लेकर भू-माफिया से सौदा कराने तथा उसे पावर ऑफ अटार्नी देने के खेल में कुछ जनप्रतिनिधि भी मिले हुए हैं, जिनकी सह पर यह पूरा काम हुआ है, इसलिए इसकी जांच होनी चाहिए।