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डॉ. प्रिंस जायसवाल को लगातार एनीमिया मुक्त भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत बेहतरीन काम कर रहे हैं। इसके लिए यूनिसेफ ने उन्हें सम्मानित किया है।

नौशाद अहमद- सूरजपुर। सूरजपुर जिला स्वास्थ्य विभाग के जिला कार्यक्रम प्रबंधक और कार्यक्रम नोडल अधिकारी डॉ. प्रिंस जायसवाल लगातार एनीमिया मुक्त भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत बेहतरीन काम कर रहे हैं। उनके इस उत्कृष्ट कार्य के लिए यूनिसेफ ने उन्हें सम्मानित किया है। 

सूरजपुर जिला आदिवासी बाहुल क्षेत्र है क्रिसमस फास्ट को लेकर अच्छा काम करने की जरूरत है। डॉ. प्रिंस जायसवाल ने बताया कि, देश के बच्चों, युवाओं और महिलाओं को एनीमिया से मुक्त करने के लिए सरकार कई स्तर पर प्रयास कर रही है। एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) के तहत 6-9 महीने के बच्चे, 5-9 साल के बच्चे, 10-19 साल के किशोर, गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रोफाइलेक्टिक आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंट, कृमि मुक्ति (डीवर्मिंग), साल भर चलने वाला अभियान, डिजिटल इनवेसिव हीमोग्लोबीनोमीटर के जरिये जांच और उपचार के तरीके अपनाकर एनीमिया मुक्त बनाने का काम किया जा रहा है।  

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सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का भी कर रहे आयोजन 

सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयरन फोलिक एसिड फोर्टिफाइड चावल मुहैया कराने का काम भी कर रही है। मिशन पोषण 2.0 के तहत सामुदायिक सहभागिता, लोक संपर्क, व्यवहार परिवर्तन के जरिए कुपोषण को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। पोषक तत्वों के सेवन में अंतर को पाटने के लिए बच्चों (6 महीने से 6 साल), गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और किशोरियों (आकांक्षी जिलों और पूर्वोत्तर राज्यों में 14 से 18 साल) को अतिरिक्त पोषण प्रदान किया जा रहा है।  

सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले अन्य उपाय

इसके अतिरिक्त, एनीमिया से निपटने के लिए सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली, प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम-पोषण) योजना, एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत चरणबद्ध तरीके से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चावल फोर्टिफिकेशन पहल के तहत आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 से समृद्ध चावल की आपूर्ति कर रही है। राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को आयरन फोलिक एसिड मुहैया कराने की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर 95 फीसदी गर्भवती महिलाओं को यह मुहैया कराया जा रहा है, जबकि स्तनपान कराने वाली 65.9 फीसदी महिलाओं को यह दवा मिल पा रही है।
 

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