रविकांत सिंह राजपूत-कोरिया। गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला अभ्यारण्य को मिलाकर गुरु घासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व की अधिसूचना जारी हुई। इसके बाद यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व बन गया। सरगुजा सम्भाग और अविभाजित कोरिया को विश्व स्तर पर पहचान मिल गई लेकिन इस टाइगर रिजर्व के लिए वन विभाग को कई सारी दिक्कतों का सामना करना होगा।
यह टाइगर रिजर्व प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण तो है लेकिन नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व में अपग्रेड करने के लिए सिर्फ क्षेत्रफल, प्राकृतिक संसाधन और शेरों की संख्या ही काफी नहीं है। टाइगर रिजर्व एरिया में काम करने वाले अधिकारी कर्मचारी भी प्रॉपर ट्रेंड होने चाहिए जो की फिलहाल इस टाइगर रिजर्व क्षेत्र में नहीं है। तभी दो सालों के भीतर यहां दो बाघों की मौत हो चुकी है। ऐसे में सबसे कठिन यह होगा कि, राष्ट्रीय उद्यान के बाद अब टाइगर रिजर्व बनने में और पहचान बरकरार रखने में कई चीजों का सामना करना पड़ेगा। कोर एरिया से बसाहट हटानी पड़ेगी वो एक बहुत बड़ा मुद्दा है। यह क्षेत्र राष्ट्रपति के द्वारा घोषित अनुच्छेद 4 का क्षेत्र है ऐसे में बड़ा सवाल यह है की विस्थापन कहां और कैसे होगा।
78 गांव के 10 हजार से ज्यादा लोगों का विस्थापन बड़ी चुनौती
नेशनल पार्क में 35 राजस्व गांव और कोर एरिया के 5 किमी के दायरे में 43 गांव हैं। इन 78 गांवों में 10 हजार के करीब लोग हैं। 15 से 16 हजार मवेशी भी हैं। आज तक ग्रामीणों को यह नहीं बताया गया कि, बाघ समेत अन्य वन्य जीवों से कैसे बचना है या कैसे तालमेल बैठाना है। दो साल में दो बाघों की संदिग्ध मौतें हुईं। क्षेत्र में बाघ के अलावे तेंदुआ, भालू और हाथी सहित 27 प्रकार के जीवों का आवास है।