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45 वर्षीय वैद्य केशर सिंह के पास हर मर्ज की दवा है। वे नाड़ी पर हाथ धरकर बीमारी की पहचान कर लेते हैं। वे हर मर्ज के इलाज का दावा करते हैं।

महेंद्र विश्वकर्मा- जगदलपुर। जिस तरह आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बीमारी का पता कुछ लैब टेस्ट और जांचों की मदद से लगाया जाता है, उसी तरह आयुर्वेद में भी बीमारी की पहचान करने के कई तरीके हैं। इनमें नाड़ी परीक्षण प्रमुख है, जिसमें मरीज की नाड़ी की गति नापकर बीमारियों का पता लगाया जाता है। शरीर की सेहत अच्छी होने या बिगड़ने का प्रभाव ह्रदय की गति (दिल की धड़कन) पर पड़ता है। इस स्पंदन या धड़कन का प्रभाव धमनियों की धड़कन पर पड़ता है। इसी धड़कन को छूकर उत्तरप्रदेश के ग्राम जुलुपपुर निवासी 45 वर्षीय वैद्य केशर सिंह मरीज की सेहत का अंदाजा लगा रहे हैं।

उन्होंने बताया कि वे अशिक्षित हैं पर आयुर्वेद दवाओं की जानकारी रखते हैं, डब्बे में लिखे कागज नहीं जड़ी-बूटी देखकर पहचान लेते हैं, यह जानकारी पूर्वजों से सीखा है। उन्होंने बताया कि उनका हिमालय आयुर्वेदिक खानदानी दवाखाना कैंप आड़ावाल में ओडिशा रोड में लगाया है, जहां चर्म रोग, खून की खराबी सफेद दाग अपरस, एग्जीमा, खुजली होना पेट में दर्द, गैस लीवर में गर्मी, पित्त की खराबी, एसीडिटी या अलसर डायबिटिस, शुगर जोड़ों में दर्द, सूजन गठिया, बात रोड साईटिका, लकवा, पोलियो, खांसी, दमा, श्वास फूलना फेफड़े की खराबी टीबी, दवा से स्वस्थ्य किया जाता है। साथ ही उन्होंने बताया कि यदि 40-45 उम्र के लकवा के मरीज का 3-4 माह में दवा देकर स्वस्थ्य कर रहे हैं और 60 वर्षीय मरीजों का इलाज मुश्किल होता है। वर्तमान में एक सप्ताह पूर्व ही 5 बच्चों एवं पत्नी के साथ आड़ावाल पहुंचे हैं, वे अपने बच्चों को भी स्कूल नहीं भेज रहे हैं। 

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नाड़ी परीक्षण कब करना चाहिए

उन्होंने बताया कि नाड़ी की जांच के लिए सबसे सही समय सुबह खाली पेट होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भोजन एवं तेल मालिश के बाद नाड़ी की गति अनिश्चित व अस्थिर हो जाती है। इसलिए इन क्रियाओं के बाद नाड़ी परीक्षा से रोग को इलाज करना मुश्किल हो जाता है। इसी तरह यदि रोगी भूखा प्यासा हो तो भी नाड़ी की गति का ठीक से पता नहीं चल पाता है।

पुरुषों के दाएं व स्त्रियों के बाएं हाथ की नाड़ी परीक्षण

वैद्य केशर ने बताया कि आमतौर पर पुरुषों के दाएं हाथ की और स्त्रियों के बाएं हाथ की नाड़ी की गति देखी जाती है। इस विधि में हाथ की तीन ऊंगलियां तर्जनी, मध्यमा और अनामिका का प्रयोग किया जाता है। तर्जनी ऊंगली अंगूठे के निचले हिस्से पर रखी जाती है। नाड़ी पर तीनो ऊंगलियों के पोरों से हल्का लेकिन एक जैसा दवाब डालकर गति महसूस करना चाहिए। एकदम सही और निश्चित गति जानने के लिए बार-बार अंगुलियों को वहां से हटाकर फिर रखना चाहिए। इस प्रकार, जिस अंगुली के पोर में नाड़ी की गति का दबाव अधिक अनुभव होता है, उसी के आधार पर रोग का पता लगाया जाता है। मध्यमा (बीच वाली) अंगुली में गति के दबाव से पित्त की अधिकता और अनामिका अंगुली में दबाव की अनुभूति से कफ दोष की प्रधानता का पता चलता है। ऐसा बताया गया है कि नाड़ी की गति से भी रोग का पता चलता है।

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