रायपुर। आजादी की पहली किरण के साथ रेलवे स्टेशन रायपुर के गेट नंबर एक के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस की देश में स्थापित पहली प्रतिमा के मूल स्थान ही नहीं, उनके स्वरूप में भी बदलाव किया गया है। इसे देखते हुए शहर के इतिहास व शिक्षाविद् प्रो. रमेन्द्र नाथ मिश्र की आपत्ति के बाद भी किसी प्रकार का सुधार नहीं किया गया है। जिस स्तंभ पर नेताजी की धोती, कुर्ता और टोपी वाली प्रतिमा स्थापित थी, उसे बदलते हुए मूर्ति के पास लगाए गए संगमरमर के मूल शिलाखेख को भी गायब किया गया है। 

शहर जाने-माने इतिहासकार प्रो. मिश्र ने बताया कि अभी रायपुर रेलवे स्टेशन के बाहरी हिस्से में जहां पर नेताजी की दुर्लभ प्रतिमा को स्थापित किया गया है, वह स्थान ही नहीं जिस स्तंभ पर प्रतिमा को लगाया ठाया था, उसे भी सड़क चौड़ीकरण के नाम पर हटाते समय स्मार्ट सिटी व निगम के जिम्मेदारों ने गायब कर दिया है। अभी नेताजी की प्रतिमा कुर्ता- धोती व टोपी में होने के बाद भी मूल स्तंभ पर स्थापित नहीं है। इतना ही वहीं ऐतिहासिक प्रतिमा के स्थापना की महत्ता का लोगों को एहसास कराने वाले शिलालेख को भी गायब कर दिया है। इससे इतिहास के विद्यार्थियों को प्राचीन प्रतिमा की सही जानकारी भी नहीं मिल रही हैं। इसे देखते हुए कई बार अधिकारियों से मांग की गई। इसके बाद भी नेताजी की दुर्लभ प्रतिमा कब स्थापित हुई व उसका अनावरण किसने किया, इसकी भी लोगों को सही जानकारी नहीं मिल रही है। 

सीपीएन बरार प्रमुख ने किया था

उन्होंने बताया कि नेताजी की दुर्लभ प्रतिमा को 15 अगस्त 1947 की सुबह ध्वजा वंदन से पहले स्थापित किया गया था। इसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैया लाल बाजारी ने राजस्थान से बनाकर मंगाया था। उस मूल प्रतिमा को संगमरमर के एक स्तंभ पर स्थापित किया गया था। इसका अनावरण सीपीएन बरार के तात्कालिन प्रमुख रामकृष्ण पाटिल ने किया था। इसका जिक्र करने वाले शिलालेख को भी प्रतिमा के नीचे लगाया गया था। दोबारा स्थापित करते समय गायब कर दिया गया, उसे दोबारा लगाया जाना चाहिए। अभी प्रतिमा की महता के बारे में लोग जान सकें, ऐसी कोई जानकारी मौके पर स्पष्ट नहीं की गई है। 

नेताजी को करते थे माल्यार्पण

प्रो. मिश्र ने बताया कि शहर के रेलवे स्टेशन पर स्थापित नेताजी की प्रतिमा लोगों को गौरव के क्षण का भी एहसास कराती थी। जिसकों विकास के नाम पर हटाकर ऐसे जगह पर लगा दिया गया, जहां लोगों की नजर भी नहीं पड़ती है। आजादी के बाद जब दिल्ली से कोई भी बड़े नेता रायपुर रेलवे स्टेशन पर उत्तरते थे, तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा को वे माल्यार्पण करने और नमन करने के बाद ही आगे बढ़ते थे। अब वह परंपरा खत्म हो गई, क्योंकि प्रतिमा की महता बताने वाले प्रमाण गायब है। अगर नेताजी की प्रतिमा से जुड़े स्तंभ व शिलालेख के साथ मूल स्थान पर स्थापित किया जाए, तो लोगों को जानकारी मिलेगी।