आकाश पवार-पेंड्रा। सावन के पवित्र महीने का का आज दूसरा सोमवार है। शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है। वहीं गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के अलग-अलग जिलों से कांवड़ियों का जत्था अमरकंटक के ज्वालेश्वर धाम में जल चढ़ाने के लिए रवाना हो गया है। हर साल सावन में ये कांवड़िए जिले की अलग-अलग नदियों से जल लेकर छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित ज्वालेश्वर महादेव में जल चढ़ाने जाते हैं। 

ज्वालेश्वर धाम में आज सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। पूजा-पाठ और जलाभिषेक का दौर जारी है। सावन में भगवान शंकर को जल चढ़ाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि, सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस माह में वे संसार का कार्यभार संभालते हैं। अत: इस दौरान उनकी विशेष पूजा-अर्चना करने से भगवान शंकर का आशीर्वाद बना रहाता है औक मनोकामनाएं पूरी होती है। 

जोहिला नदी की है उद्गम स्थली

पुराणों के अनुसार, इस मंदिर को स्वयं भगवान शिव ने ही स्थापित किया था। इस शिवालय को महा रूद्र मेरू भी कहा जाता है। यह स्थान जोहिला नदी की उद्गम स्थली है। यहां पर स्थापित बाणलिंग का जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है। मान्यता है कि, इस पर दूध और शीतल जल जल अर्पित करने से भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। 

बाणालिंग और ज्वालेश्वर महादेव के नाम से है विख्यात 

कहा जाता है कि, बलि का बेटा बाणासुर बहुत ही बलशाली और शिव भक्त था। उसने भगवान शिव की तपस्या करके दिव्य और अजेय नगरी का वर मांगा। फिर उसने तप कर ब्रह्मा और विष्णु से भी वर मांग लिया। इस तरह से वह तीनों लोकों का स्वामी बना और त्रिपूर कहलाया। फिर शक्ति के अहंकार में आकर पाप और दुराचार करने लगा। इससे तंग आकर देवताओं ने भगवान शंकर की शरण ली। तब शिव जी ने बाणासुर का वध कर दिया। क्योंकि बाणासुर शिवभक्त था और शिव जी ने उस पर पिनाका धनुष से प्रहार किया था उससे अक ज्वाला उत्पन्न हुई और एक शिवलिंग का आकार लिया। इस तरह यहां स्थापित शिवलिंग को बाणालिंग और ज्वालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।