एनिशपुरी गोस्वामी - मोहला। रत्नगर्भा धरती पर किसान खेती करके अनाज उत्पादन करते हैं, तो इसी धरती में रत्नों का भण्डार भी है। उनका खदान बनाकर दोहन किया जाता है। लेकिन माटी से सोना निकालने की कहावत को चरितार्थ करते हुए मोहला मानपुर अंबागढ़ चौकी जिले में सोनझरिया समुदाय के लोग बिना आधुनिक यंत्रों के धरती से सोना निकालने की कला में निपुण हैं। ये जमीन से मिट्टी को इकट्ठा कर पानी से धुलाई करते हैं और उसमें मिलने वाले सोने के छोटे-छोटे कणों को आग में तपाकर खरा बनाते हैं। सदियों से यही परंपरागत तौर पर इन सोनझरिया परिवारों की जीविकोपार्जन का साधन है।

मोहला, मानपुर, अंबागढ़-चौकी जिले के कौड़ीकसा ग्राम में सोनझरिया समाज का एक मोहल्ला ही अलग है। जहां 48 परिवार निवास करते हैं। इनकी जनसंख्या लगभग 250 के आसपास है। सोनझरिया जाति के लोग वर्षा ऋतु में पानी गिरते ही बरसते पानी में अपने औजार रांपा, लकड़ी का घमेला, डोंगी लेकर सपरिवार टोली के रूप बहाव वाले स्थानों की ओर निकल पड़ते हैं। अंबागढ़ चौकी विकासखंड के कौड़ीकसा के आस पास चारों दिशाओं में फैले पहाड़ी नालों और जंगल में पहुंचकर दिनभर मिट्टी को कुरेद कर धुलाई करते रहते हैं। इस कड़ी मेहनत से मिले सोने के कणों को लेकर शाम को वापस आते हैं। ऐसा नहीं है कि, इन्हें रोज सोना मिलता है, कई दिन खाली हाथ भी लौटना पड़ता है। मेहनत से प्राप्त सोने के इन कणों को सोनझरिया लोग 'कुंवारा सोना' कहते हैं। उसे घरों में बने भट्टी में तपाकर खरा बनाते हैं। 

यहां पांच पीढ़ियों से निवासरत है सोनझरिया समुदाय

सटीक जानकारी बता पाने में सक्षम कोई बुजुर्ग तो अब इस समुदाय में बचा नहीं है। फिर भी समाज के चिन्ताराम घावड़े, पन्ना लाल मण्डावी बताते हैं कि, पहले इनके पूर्वज हर साल ठिकाना बदल देते थे। राजा महाराजा शासनकाल में डर के बीच जंगलों में नदी- नाले के किनारे ही निवास करते थे। जिससे सोना निकालने में परेशानी नहीं होती थी। इसी प्रकार घुमन्तु जीवनशैली व्यतीत करते थे। इसी कारण शिवनाथ नदी के तट पर अंबागढ़ चौकी के ग्राम धानापायली में रहकर सोना निकालने का काम करते हैं। वे आस-पास के गांवों तक जाते हैं, वहां भी मेहनत के हिसाब से सोना मिलता था। इसी के चलते इनके पूर्वजों ने कौड़ीकसा में स्थाई ठिकाना बना लिया। अब यहां पांच पीढ़ी गुजर गई। 

ओड़िया से मिलती-जुलती है बोली

इनकी बोली ओड़िया से मिलती- जुलती है। जिससे ऐसा माना जाता है कि, इनके पूर्वज ओडिशा राज्य से यहां आए होंगे। वर्तमान में मोहला, मानपुर, अम्बागढ़ चौकी जिले के तीन गांवों कौड़ीकसा, धानापायली, जोरातराई में ही ये निवासरत हैं। स्थाई ठिकाना बन जाने से कुछ लोगों ने कृषि भूमि भी खरीद ली है, जिसमें मूल व्यवसाय के साथ- साथ खेती भी करने लगे हैं।

विवाह की है अनोखी परम्परा

सोनझरिया जाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। परन्तु स्थाई बसाहट न होने के कारण मिसल रिकॉर्ड नहीं मिल पाता। जिससे जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए इन्हें भटकना पड़ता है। फिर भी इनकी जीवन शैली और सामाजिक रीति- रिवाज अलग हैं। चिन्ता राम घावड़े, पन्ना लाल मण्डावी ने बताया कि, नदी- नाले में काम करते- करते ही लड़का-लड़की का रिश्ता तय कर लिया जाता है। लड़की पक्ष के घर तीन दिन के लिए भोजन की व्यवस्था लेकर जाते थे, और रस्म शुरू हो जाता था। रात्रि में एक विशेष रस्म जिसमें लड़का- लड़की एक दूसरे पर धान फेंकते थे, जिसे सेवती नाच कहते हैं। अधिकांश नेग दस्तूर पानी के अन्दर ही सम्पन्न होता है। मगरमच्छ का सात फेरे लेने के साथ ही वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हैं। परन्तु वर्तमान में यह सम्भव नहीं हो पाता। इस कारण आटे से मगरमच्छ का प्रतीक बनाते हैं उसी का फेरा मारकर विवाह को सम्पन्न करते हैं।

बरसात के बाद चले जाते हैं बड़े शहरों की ओर

सोनझरिया लोग बरसाती पानी तक धरती से सोना निकालने का काम करते हैं। बरसात थमा कि ये बड़े शहरों महानगरों की ओर पलायन कर जाते हैं। जहां नालियों में पानी मिल जाता है, वहीं सोना निकालने लग जाते हैं। यही कारण है कि, बड़े- बड़े शहरों में सोनझरिया समाज के लोग मिल ही जाते हैं। कुछ लोग स्थाई ठिकाना भी बना लिए हैं। बरसात के बाद बच्चों को भी लेकर चले जाते हैं जिससे बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। प्राथमिक या माध्यमिक शिक्षा के बाद व्यवसाय में लग जाते हैं, इसलिए उच्च शिक्षा बहुत कम लोग ही ले पाते हैं।