रुचि वर्मा - रायपुर। स्वामी विवेकानंद तकनीकी विवि में रिकॉर्डिंग को लेकर बवाल मचा हुआ है। विवि ने प्रोफेसर्स के 40 से 45 मिनट का एक लेक्चर रिकॉर्ड करने के लिए 25 हजार रुपए एजेंसी को दे दिए। बीते सत्र में पूरे 600 लेक्चर रिकॉर्ड किए गए। इन सभी का प्रति भुगतान लेक्चर 25 हजार की दर से किया गया है। इस तरह से सीएसवीटीयू ने एक करोड़ 50 लाख की राशि रिकॉर्डिंग पर खर्च डाली। वह भी तब, जब विवि के पास उनका स्वयं का रिकॉर्डिंग स्टूडियो है, जहां इस तरह की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। कुछ वर्ष पूर्व ही इसका उद्घाटन किया गया था। जब विवाद बढ़ा तो राजभवन तक शिकायत गई। वहां से मंत्रालय को आदेशित किया गया और मंत्रालय ने विवि प्रबंधन को शिकायत की जांच करने कहा।

रिकॉर्डिंग का कार्य किसी एजेंसी अथवा व्यक्ति विशेष को देने के लिए सीएसवीटीयू ने टेंडर ही नहीं निकाला। स्वतः ही एजेंसी निर्धारण के लिए एक कमेटी बनाई और इस कमेटी द्वारा तय किए गए नाम को ही पूरे काम का ठेका दे दिया।इस पर विवि प्रबंधन का कहना है कि यूजीसी ने इस कार्य के लिए टेंडर जैसी कोई शर्त नहीं रखी थी। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, जब 40 से 45 मिनट के एक लेक्चर रिकॉर्ड करने के लिए 25 हजार रूपए देने का निर्णय किया गया तो विवि के एक धड़े ने इसका विरोध किया। विवि परिसर में ही स्थित रिकॉर्डिंग रूम का ही इस्तेमाल करने भी प्रस्ताव रखा गया। बाद में पूरे मामले की शिकायत राजभवन को लिखित रूप में की गई। राजभवन से मंत्रालय को आदेश दिया गया। मंत्रालय द्वारा विवि प्रबंधन को जांच संबंधित आदेश प्राप्त होने के बाद विवि द्वारा कमेटी तो बैठाई गई, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका और ना ही जिम्मेदारी तय हो सकी।

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इधर... प्राध्यापकों को नहीं मिले पांच हजार

जिन प्राध्यापकों के व्याख्यान अपलोड करके वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं, उन प्राध्यापकों को पांच हजार  रूपए  प्रति व्याख्यान प्रदान किए जाने थे। थे। रिकॉर्डिंग करने वाली एजेंसी को थोक में पैसे आवंटित कर दिए गए हैं, लेकिन प्राध्यापकों को अब तक पांच हजार रूपए की राशि भी प्रदान नहीं की जा सकी है।

क्या है स्वयं

दरअसल, स्वयं यूजीसी द्वारा शुरु की गई एक योजना है। इस योजना के अंतर्गत विश्वविद्यालयों को अपने प्राध्यापकों के व्याख्यान रिकॉर्ड करके अपने पोर्टल पर अपलोड करने होते हैं। इस वीडियो को कोई भी छात्र निशुल्क रूप से देख सकता है। इस योजना को लागू करने के पीछे उद्देश्य यह था कि यदि कोई छात्र कक्षा में अनुपस्थित रहता है अथवा उसे कोई पुराना लेक्चर पुनः देखना है तो उसके लिए ये चीजें सहजता के साथ उपलब्ध रहें।

छद्म पता

सीएसवीटीयू  के कुलसचिव अंकित अरोरा ने बताया कि, मंत्रालय से आदेश के पश्चात हमने जांच कमेटी बैठाई थी। जिस पते से शिकायत की गई थी, उसे पते पर खत लिखकर संबंधित व्यक्ति को उपस्थित होने कहा गया था, लेकिन पता ही छद्म पाया गया। ये तथ्य हमने आगे प्रेषित कर दिया है।