Delhi Politics: कांग्रेस पार्टी ने महिला कांग्रेस के भीतर बड़ा संगठनात्मक बदलाव किया है। पार्टी ने अलंका लांबा को महिला कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया है। इसके साथ ही वरुण चौधरी को एनएसयूआई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इन दोनों की नियुक्ति को आगामी आम चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। इससे पहले नेता डिसूजा महिला कांग्रेस की कमान संभाल रहे थे जबकि नीरज कुंदन एनएसयूआई के अध्यक्ष थे। नई जिम्मेदारी दिए जाने के बाद अलका लांबा ने इस पर प्रतिक्रिया दी है।

अलका लांबा ने दी प्रतिक्रिया

कांग्रेस नेता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि देश की बेटियों के आंसुओं के बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा सौंपी गई इस जिम्मेदारी का मुझे पूरा एहसास है। उन्होंने आगे कहा कि मैं विश्वास दिलाती हूं कि महिला कांग्रेस देश में अन्याय, शोषण, हिंसा, अत्याचार का सामना कर रही देश की बेटियों-बहनों की आवाज बनकर न्याय मिलने तक लड़ेगी। लांबा ने कहा कि महिला कांग्रेस राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, कानूनी और संविधान द्वारा महिलाओं को दिए गए बराबरी के अधिकारों को पंक्ति में खड़ी अंतिम महिला तक पहुंचाने का कार्य करूंगी।

अलका महिला कांग्रेस की महासचिव रह चुकी

अलका लांबा का राजनीतिक सफर 1994 में शुरू हुआ। उन्हें कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई में संयोजक का पद मिला। इसके बाद 1997 में अलका लांबा एनएसयूआई की अध्यक्ष बनीं। 2002 में कांग्रेस ने उन्हें भारतीय महिला कांग्रेस का महासचिव बनाया। इसके बाद अलका ने 2003 में बीजेपी नेता मदन लाल खुराना के खिलाफ चुनाव लड़ा। हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 

वह 2014 में कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गईं। उन्होंने 2015 का विधानसभा चुनाव AAP के टिकट पर चांदनी चौक से लड़ा और जीता। इसके बाद उन्होंने 2019 में आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया और फिर से कांग्रेस में शामिल हो गईं। 2020 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चांदनी से चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

वरुण दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के सचिव थे

एनएसयूआई कांग्रेस पार्टी की छात्र इकाई है। इसकी स्थापना 1971 में हुई थी। वरुण चौधरी दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के सबसे युवा सचिव भी रह चुके हैं। अब पार्टी ने उन्हें एनएसयूआई का अध्यक्ष बनाकर नई जिम्मेदारी दी है। यह नई जिम्मेदारी ऐसे समय में आई है जब कांग्रेस पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। हालांकि, कई राज्यों में एनएसयूआई विंग काफी मजबूत मानी जाती है।