Fake Cast Certificate Creating Gang: देश की राजधानी दिल्ली में फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनाने वाले गैंग का भंडाफोड़ हुआ है। इस मामले पर चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें एक एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट भी शामिल है। बताया जा रहा है कि यह मोटी रकम ऐंठ कर जनरल कैटेगरी के व्यक्ति को अनुसूचित जाति, जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग का सर्टिफिकेट जारी करते थे। जानकारी के मुताबिक आरोपी 3000-3500 रुपये लेकर फर्जी जाति प्रमाणपत्र जारी करते थे।
आखिर कैसे हुआ खुलासा
डीसीपी क्राइम राकेश पावरिया ने इस बारे में बताया कि क्राइम ब्रांच को जानकारी मिली थी कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने और जारी करने वाला वाला एक गिरोह सक्रिय है। इसके आधार पर पुलिस ने सामान्य श्रेणी के एक शख्स को संदिग्ध आरोपी के पास 13 मार्च 2024 को जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए भेजा, उस शख्स से 3500 रुपए लिए गए और उसका ओबीसी सर्टिफिकेट बना कर दे दिया।
9 मई को गिरफ्तार हुआ था पहला आरोपी
इतना ही नहीं सर्टिफिकेट दिल्ली सरकार की रेवेन्यू विभाग की वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया। इसके बाद पुलिस ने रैकेट में शामिल व्यक्तियों को पकड़ने के लिए एक पुलिस टीम बनाई। इसके बाद 9 मई को पुलिस ने संगम विहार इलाके से सौरभ गुप्ता नाम के एक आरोपी को गिरफ्तार किया। उसके फोन से पुलिस द्वारा भेजे गए दोनों आवेदकों के दस्तावेज मिले और उनके साथ चैट भी मिली जो दिल्ली कैंट के रेवेन्यू विभाग के कार्यकारी मजिस्ट्रेट के यहां से जारी हुए थे।
तहसीलदार समेत चार लोग मिलकर बनाते थे प्रमाण पत्र
सौरभ ने पुलिस पूछताछ में दिल्ली कैंट में कार्यकारी मजिस्ट्रेट ऑफिस के जरिए फर्जी प्रमाण बनाने की बात को कबूल कर ली है। आगे की जांच में तीन अन्य व्यक्तियों की गिरफ्तारी हुई। इसमें चेतन यादव नाम आरोपी तहसीलदार ऑफिस में करता था। इसके अलावा नरेंद्र पाल सिंह और उनका सिविलियन ड्राइवर वारिस अली की गिरफ्तारी हुई है। इनकी गिरफ्तारी अलग-अलग तारीख 14, 22 और 17 मई को हुई।
ठेकेदार के माध्यम से गिरोह के संपर्क में आया सौरभ
पुलिस पूछताछ में आरोपी सौरभ गुप्ता ने आगे खुलासा किया कि वो जनवरी 2024 में एक ठेकेदार के जरिए चेतन यादव के संपर्क में आया, जो पहले तहसीलदार के ऑफिस दिल्ली सरकार के हेल्पलाइन नंबर 1076 सर्विस ऑपरेटर के रूप में काम करता था और फिर वारिस अली के संपर्क में आ गया। इसके बाद तीनों ने मिलकर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने और जारी करने की साजिश रची। सौरभ फर्जी दस्तावेजों का उपयोग करके प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करता फिर चेतन यादव के साथ डिटेल्स और एप्लीकेशन नंबर शेयर करता और हर सर्टिफिकेट के पैसे ट्रांसफर करता।
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तहसीलदार के डिजिटल साइन का करते थे उपयोग
इसके बाद यादव इन डिटेल्स को वारिस अली के पास भेजता, जो आवेदनों को मंजूरी देने और वेबसाइट पर प्रमाण पत्र अपलोड करने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट नरेंद्र पाल सिंह के डिजिटल साइन का उपयोग करता था। इसके बाद गिरोह कार्यकारी मजिस्ट्रेट के साथ आपस में बांट लेते थे। पुलिस ने आरोपियों के पास से लैपटॉप, मोबाईल फोन, हार्ड ड्राइव, डिजिटल साइन और 100 से अधिक फर्जी जाति प्रमाण बरामद किए हैं। अब तक 111 जाति प्रमाण पत्र जारी करने का पता चला है,आगे जांच जारी है।