Haryana Assembly Elections, रवींद्र राठी। गेटवे ऑफ हरियाणा कहा जाने वाला बहादुरगढ़ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का प्रमुख शहर है। अतीत में पॉटरी, पहलवानों और पकौड़ों के लिए मशहूर यह औद्योगिक नगरी अब फुटवीयर पार्क की वजह से दुनियाभर में जाना जाता है। यहां पारले, सूर्या, सोमानी, एचएनजी, एचएसआई, रिलेक्सो, एक्शन, एक्वालाइट, कोलंबस आदि नामचीन औद्योगिक इकाइयां स्थापित हैं। कांग्रेस जहां सरकार के प्रति उपजी एंटी इंकम्बैंसी व भूपेंद्र हुड्डा के चेहरे पर एक बार फिर बहादुरगढ़ फतेह का सपना देख रही है। भाजपा मोदी के नाम के साथ ही जाट और गैर-जाट मत विभाजन के सहारे एक बार फिर विधानसभा जाने का रास्ता तलाश रही है। इनेलो को पूर्व विधायक नफे सिंह राठी की हत्या से बने हालात में जनता से  सहानुभूति की उम्मीद है।

मांगे राम सबसे अधिक तो हरद्वारी लाल सबसे कम वोटों से जीते 

अब तक हुए 16 विधानसभा चुनावों में बहादुरगढ़ से 8 बार कांग्रेस, लोकदल 5 बार, ओल्ड कांग्रेस, हविपा और भाजपा एक-एक बार चुनाव जीती है। राजनीतिक रूप से भी बहादुरगढ़ शुरुआत से ही जागरुक रहा है। यहां सबसे पहले चौधरी छोटूराम की पार्टी जमींदारा लीग से उनके भतीजे चौधरी श्रीचंद विधायक बने थे। जबकि वर्ष 1987 में पूर्व मंत्री मांगेराम नंबरदार ने 25 हजार 320 वोटों से अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी। वहीं वर्ष 1972 में एनसीओ के हरद्वारी लाल ने महज 395 वोटों से सबसे छोटी जीत हासिल की थी।

जाट मतदाता सबसे अधिक 

बहादुरगढ़ विधानसभा में 32 गांवों के अनुपात में शहर के 31 वार्डों में करीब 40 हजार वोट अधिक हैं। हलके में कुल 2 लाख 40 हजार 980 मतदाता हैं, जिनमें 1 लाख 27 हजार 774 पुरुष और 1 लाख 13 हजार 201 महिला हैं। जबकि 85 वर्ष से अधिक आयु के 2201 मतदाता हैं। क्षेत्र में इस बार कुल 233 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। बहादुरगढ़ विधानसभा क्षेत्र में करीब 94 हजार जाट, करीब 23 हजार ब्राह्मण, हरिजन करीब 19 हजार, बनिया करीब 18 हजार, करीब 13 हजार पंजाबी, बाल्मीकि करीब 11 हजार होंगे। इनके अलावा धानक, सैनी व खाती करीब 7-7 हजार, अहिर व कुम्हार करीब 5-5 हजार मतदाता हैं। इस कारण पिछले कई चुनावों में शहर निर्णायक साबित हुआ है। गांवों की बता करें तो राठी, दलाल और छिल्लर-छिकारा गोत्र का दबदबा है।

समस्याओं की भरमार

गांवों से लेकर शहर तक समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। बहादुरगढ़ को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाली सड़क पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है। बेरी रोड की हालत भी बेहद खराब है। बादली वाली सड़क भी गुभाना तक चलने लायक नहीं है। शहर की अंदरूनी सड़कें भी वाहन चालकों को खूब कष्ट दे रही हैं। शहर से लेकर गांवों तक स्वच्छ पेयजल आपूर्ति का अभाव है। सफाई के नाम पर भ्रष्टाचार पिछले एक दशक से सुर्खियां बन रहा है। लगातार बढ़ती रंगदारी, लूट समेत अन्य आपराधिक वारदातों से लोगों में नाराजगी है। संगठित सिटी ट्रांसपोर्ट की कमी लगातार जाम का प्रमुख कारण बन गई है। पिछले दस वर्षों में ना तो कोई रिहायशी या औद्योगिक सेक्टर काटा गया और ना ही उल्लेखनीय नया उद्योग बहादुरगढ़ में स्थापित हुआ।

बहादुरगढ़। मेन बाजार में स्थित किला गेट।
अधर में लटके हैं कई प्रोजेक्ट

क्षेत्र का राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज का सपना आज भी अधूरा है। डेयरी शिफ्टिंग का प्रोजेक्ट भी फाइलों तक ही सीमित रहा। ट्रांसपोर्ट नगर बनने का सपना भी साकार नहीं हो पाया। नई अनाज मंडी का प्रोजेक्ट भी दस सालों से ठंडे बस्ते में पड़ा है। उत्तरी बाइपास का निर्माण और नागरिक अस्पताल के विस्तार का काम भी लंबे समय से रुका हुआ है। नेशनल हाइवे 344-एन (यूईआर) भी चालू नहीं हो पाया है। ईएसआई अस्पताल का निर्माण कछुआ रफ्तार से चल रहा है।

विधायक के मन की बात

कांग्रेस राज में तत्कालीन सीएम भूपेंद्र हुड्डाड के नेतृत्व में बहादुरगढ़ का तेजी से विकास हो रहा था। एटॉमिक रिसर्च सेंटर, फुटवियर पार्क, मेट्रो, अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी, कॉलेज, आईटीआई, आईडीटीआर, पॉवर हाउस, सरकारी इमारतें और सड़कें बन रही थी। लेकिन भाजपा सरकार बनने के बाद बहादुरगढ़ के विकास पर ब्रेक लग गया। कोई बड़ा प्रोजेक्ट बीते 10 सालों में बहादुरगढ़ को नहीं मिला। इतना ही नहीं सड़कें भी चलने लायक नहीं रही। गंदा पानी पीकर लोग बीमार हो रहे हैं। जगह-जगह जलभराव शासन की असलियत बता रहा है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद एक बार फिर बहादुरगढ़ के विकास को पंख लगेंगे।
- राजेंद्र सिंह जून

 

राजेंद्र जून, विधायक।
पूर्व विधायक ने की पैरवी

भाजपा राज में बहादुरगढ़ के विकास के लिए बेहतरीन काम हुआ है। शहर की कॉलोनियों से हाईटेंशन तारें हटवाई गई। अमरुत योजना के तहत करीब सौ करोड़ रुपए की लागत से पेयजल व सीवरेज व्यवस्था सुधारी गई। करीब 42 करोड़ में नया बस अड्डा बना। ऑटो मार्केट तैयार कर अलॉट की गई। शहर में 100 बेड के अस्पताल की क्षमता दोगुणी हो रही है। करीब डेढ़ सौ करोड़ में उतरी बाईपास बन रहा है। नया सैनिक रेस्ट हाउस बनाया गया। बराही, कसार, जाखौदा व मांडोठी में स्कूलों के नए भवन बने। हालांकि वर्तमान विधायक की निष्क्रियता के कारण हलके का विकास प्रभावित हुआ।

- नरेश कौशिक

 

नरेश कौशिक पूर्व विधायक।

नफे की हत्या से बना शून्य

22 फरवरी 1958 को शहर के जटवाड़ा मौहल्ला में जन्में नफे सिंह राठी ने पहलवानी के अखाड़े के बाद राजनीति के दंगल में भी जौहर दिखाए थे। वर्ष 1987 में पहली बार शहर के वार्ड नंबर 10 से पार्षद बने नफे सिंह को दो साल बाद ही तत्कालीन चेयरमैन के विरुद्ध पार्षदों के असंतोष के कारण नगर पालिका अध्यक्ष बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वर्ष 1991 में दोबारा पार्षद बने राठी एक बार फिर किस्मत के धनी साबित हुए और 1992 में दोबारा चेयरमैन बने। वर्ष 1996 में समता पार्टी की टिकट पर विधायक बने नफे सिंह राठी वर्ष 2000 में दोबारा इनेलो की टिकट पर बहादुरगढ़ विधानसभा से निर्वाचित हुए थे। हालांकि इसके बाद वर्ष 2005, 2009, 2014 व 2019 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।

नफे सिंह राठी, फाइल फोटो।
संभावित प्रत्याशियों के नाम

भाजपा की बात करें तो पूर्व विधायक नरेश कौशिक, पूर्व जिलाध्यक्ष बिजेंद्र दलाल, जिलाध्यक्ष राजपाल शर्मा, नीना सतपाल राठी, नवीन बंटी, कर्मबीर राठी, रवींद्र छिल्लर, पंकज जैन, शतीश नंबरदार, शेखर यादव, भीम सिंह प्रणामी, एडवोकेट बलबीर सिंह व दिनेश कौशिक आदि टिकट पाने की दौड़ में शामिल हैं। कांग्रेस में वर्तमान विधायक राजेंद्र जून, राजेश जून, नरेश जून, रमेश दलाल, राजपाल आर्य, सुशील छिल्लर, रवि खत्री, प्रदीप लडरावन, अरुण खत्री व दयाकिशन छिल्लर आदि टिकट मांग रहे हैं। इनेलो पहले ही पूर्व विधायक नफे सिंह राठी के परिवार से प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुकी है। जजपा से जिला पार्षद संजय दलाल सबसे प्रबल दावेदार हैं। आम आदमी पार्टी से कुलदीप छिकारा, नवीन दलाल, मनवीर छिल्लर व कमल यादव आदि टिकट के दावेदार हैं।

विधायक से बने उपकुलपति
हरद्वारी लाल।

हरद्वारी लाल सबसे पहले 1962 में विधायक बने। फिर 1967 में दोबारा जीते और कांग्रेस को छोड़कर उन्होंने कई दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन नैतिकता के आधार पर उन्होंने इस्तीफा देकर उपचुनाव लड़ा और दोबारा जीते। फिर 1968 में चुनाव हार गए, लेकिन प्रताप सिंह की जीत को अदालत में चुनौती दी और दोबारा हुए उपचुनाव में जीत हासिल की। इसके बाद 1972 में ओल्ड कांग्रेस से फिर चुनाव जीता। इसके बाद बादली हलका बनने पर वहां से 1977 में चुनाव जीता। लेकिन तत्कालीन सीएम देवीलाल ने उनसे इस्तीफा देकर एमडीयू रोहतक का वाइस चांसलर बनने का आग्रह किया। हरद्वारी लाल ने वीसी का कार्यकाल तीन की जगह छह वर्ष करने की मांग की और मांग स्वीकारे जाने पर इस्तीफा देकर उपकुलपति बन गए।

बहादुरगढ़ विधानसभा का रिकार्ड, किसे किसने हराया

1952 चौधरी श्रीचंद जमींदारा लीग 23593 हरी सिंह राठी कांग्रेस 15266
1957 चौधरी श्रीचंद कांग्रेस 23929 कैप्टन कंवल सिंह निर्दलीय 17269
1962 हरद्वारी लाल कांग्रेस 24045 कैप्टन कंवल सिंह एचएलएस 17307
1967 हरद्वारी लाल कांग्रेस 24737 हरी सिंह राठी निर्दलीय 11726
1968 प्रताप सिंह कांग्रेस 23714 हरद्वारी लाल स्वतंत्र पार्टी 19279
1972 हरद्वारी लाल एनसीओ 23495 मेहर सिंह राठी कांग्रेस 23100
1977 मेहर सिंह राठी जनता पार्टी 21732 मांगेराम वत्स निर्दलीय 11878
1982 मांगेराम राठी लोकदल 29668 प्रियवर्त कांग्रेस 19477
1987 मांगेराम राठी लोकदल 40113 मेहर सिंह राठी कांग्रेस 14793
1991 सूरजमल जून कांग्रेस 20956 कप्तान चेतराम जनता पार्टी 17583
1996 नफे सिंह राठी समता पार्टी 27555 राजपाल आर्य हविपा 26657
2000 नफे सिंह राठी इनेलो 38582 रमेश दलाल कांग्रेस 36915
2005 राजेंद्र जून कांग्रेस 41313 नफे सिंह राठी इनेलो 36217
2009 राजेंद्र जून कांग्रेस 38641 नफे सिंह राठी इनेलो 19289
2014 नरेश कौशिक भाजपा 38341 राजेंद्र जून कांग्रेस 33459
2019 राजेंद्र जून कांग्रेस 55825 नरेश कौशिक भाजपा 40334