Kaithal Sivan Temple: कैथल और पटियाला हाईवे पर स्थित सीवन गांव का भगवान राम और माता सीता से गहरा नाता है। कहा जाता है कि बनवास काटकर अयोध्या पहुंचने के बाद भी माता सीता को भगवान राम से बिछड़ना पड़ा। इस समय को माता ने हरियाणा के एक गांव में गुजरा था, जिसे सियावन तीर्थ के रूप में जाना जाता है। हालांकि आधुनिक युग में इस सियावन गांव को सीवन गांव के नाम से जाना जाता है। सीवन में स्थित स्वर्ग द्वार मंदिर एवं तीर्थ इस गांव के आकर्षण का केंद्र है। राम से अलग होने के बाद माता सीता यहां ठहरी थी। यही नहीं, महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव भी यहां आए थे और यहां पर बने सरोवर में स्नान किया था। साथ ही, यहां पर दश्वमेघ मंदिर भी स्थित है, जो महाभारतकालीन मानी जाती है। आज सीवन गांव की आबादी लगभग 40 हजार है और इस गांव को नगरपालिका का दर्जा मिला हुआ है। इसे गुहला हलका का सबसे बड़ा नगर माना जाता है।

सीवन में स्थापित है ये मंदिर

सीवन में श्री राम दरबार, हनुमान जी का मंदिर, बसंती माता का मंदिर और दुर्गा माता का मंदिर है। यहां पर इन मंदिरों की बहुत मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि सियावन तीर्थ पर स्थापित प्राचीन शिव मंदिर की ऐतिहासिक मान्यता है कि जब माता सीता यहां पर वनों में  लकड़ियां लेने के लिए आती थीं। उस समय वह जब विश्राम के लिए बैठती थीं, तो दर्शन करने वालों को स्वर्ग जैसा नजारा लगता था। मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में करवाया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला का काम काफी खूबसूरत है। यहां शिवालय ही नहीं बल्कि कृष्ण और राम मंदिर भी बने हैं। इन मंदिरों में हर पर्व पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

रणमोचन तीर्थ भी है स्थापित

महाभारत काल के में भी पांच पांडव ने यहां आकर पूजा की थी। यहां स्थित रणमोचन तीर्थ भी है, जहां माता सीता रहती थी और माता सीता अक्सर यहां विश्राम करने के लिए आती थी। मंदिर नगर के दक्षिण क्षेत्र में सौथा जाने वाले मार्ग पर स्थित है। मंदिर का एक धर्मशाला भी है, जो स्वर्गद्वार मंदिर के बगल में स्थापित है।

शिव मंदिर में लगता है मेला

शिव मंदिर में हर साल अक्षय तृतीया पर मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में अलग-अलग जगहों से श्रद्धालु माथा टेकने के लिए यहां पहुंचते है। मंदिर में भगवान बलभद्र, शिव पार्वती और मां काली की मूर्ति स्थापित है। समय-समय पर अन्य कई कार्यक्रम भी इस मंदिर में आयोजित होते है। शिवरात्रि ऐर अक्षय तृतीया पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।

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स्वर्ग द्वार मंदिर

इस मंदिर के साथ ही एक तालाब है, जो इस समय बहुत ही दयनीय हालात है। इस तालाब का भी काफी महत्व है। महाभारत काल में पांडवों ने यहां स्नान किया था। स्वर्ग द्वार मंदिर के दो घाट होते थे, जो अब विलुप्त हो चुके हैं। यह तीर्थ कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के तहत आता है।