Chandigarh Mayor: चंडीगढ़ मेयर इलेक्शन पर चल विवाद पर बीते दिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव के नतीजों को पलटते हुए मंगलवार को आप-कांग्रेस गठबंधन के पराजित उम्मीदवार कुलदीप कुमार को नया मेयर घोषित कर दिया। इस जीत को आम आदमी पार्टी ने लोकतंत्र की जीत बताई। लेकिन अब सवाल ये उठने लगा है कि इस जीत से आम आदमी पार्टी कितने दिन तक खुश रह सकती है। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ठीक एक दिन पहले यानी 18 फरवरी को आप के तीन पार्षदों ने अपना पाला बदल लिया और बीजेपी में शामिल हो गए। जिसके चलते आने वाला समय मेयर के लिए आसान नहीं रहने वाला है। 

3 पार्षदों के पाला बदलने से अल्पमत में AAP

बता दें कि चंडीगढ नगर निगम के हाउस में कुल 35 मत हैं। एक मत चंडीगढ़ के लोकसभा सदस्य का भी होता है। आम आदमी पार्टी के तीन पार्षदों के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद आप-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी के पार्षदों की संख्या 17-17 हो गई है। लेकिन बीजेपी के पास एक अतिरिक्त वोट चंडीगढ़ की सांसद किरण खेर का भी है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही आप के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को जीता हुआ मेयर घोषित कर दिया है, लेकिन आप के लेकिन आप के तीन पार्षदों के भाजपा में जाने से आप अल्पमत में चली गई है।

नए मेयर के सामने कई चुनौतियां

ऐसे में अब नए मेयर के सामने कई चुनौतियां हैं। इनमें पहली चुनौती ये है कि AAP मेयर कुलदीप कुमार को सदन में अविश्वास प्रस्ताव से बचना होगा, क्योंकि संख्या बल उनके खिलाफ है। बीजेपी पार्षद कुलजीत संधू और राजिंदर शर्मा के क्रमशः वरिष्ठ उप महापौर और उप महापौर के रूप में चुनाव की वैधता पर भी सवालिया निशान है, क्योंकि विवादित मेयर चुनाव पर आप और कांग्रेस द्वारा मतदान का बहिष्कार करने के बाद उन्हें निर्विरोध चुना गया था। हालांकि, अगर इन पदों पर फिर से चुनाव होता है तो बीजेपी के प्रत्याशी को जीतने की प्रबल संभावना है। क्योंकि बीजेपी के पास अब पार्षदों की अच्छी स्थिति है।

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ

कानूनी विशेषज्ञों की मानें तो, अविश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए नए मेयर कुलदीप कुमार को सदन में पार्षदों के बहुमत के साथ-साथ उपस्थित और मतदान करने वालों के दो-तिहाई वोट हासिल करने होंगे। यहां एक सवाल ये भी है कि नगर निगम में फ्लोर टेस्ट तो होता नहीं, लेकिन हां विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव जरूर ला सकती है। खास बात ये भी है कि अगर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहता है, तो उसके पास दो-तिहाई का समर्थन होना चाहिए, दो-तिहाई के हिसाब से अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जीतने वाले पक्ष को 24 मतों की जरूरत होगी। जो इस समय भाजपा के पास नहीं है।

बता दें कि भाजपा का अविश्वास प्रस्ताव तभी आ सकता है, जब कांग्रेस के पार्षद वोटिंग में हिस्सा ना ले। उधर, बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी को पूरा भरोसा है कि कांग्रेस-आप गठबंधन नाजुक बना हुआ है और लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे के दबाव में टूट सकता है। हालांकि, अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को अविश्वास प्रस्ताव लाने का मौका मिल सकता है।