चंडीगढ़। प्रदेश में भूतों (अपात्र, मृतकों व अस्तित्व विहीन लोगों) को पेंशन बांटने के मामले में सीबीआई ने हाईकोर्ट में अपनी स्टेट्स रिपोर्ट सौंपी। जिसमें 2012 से 2024 तक के सभी अधिकारियों को दोषी मानते हुए पेंशन के लिए वेरिफिकेशन करने वालों और मंजूरी देने वालों पर एफआईआर की सिफारिश की है। जिस पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए हरियाणा सरकार से एक्शन टेकर रिपोर्ट तलब करने के साथ समाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के प्रधान सचिव व महानिदेशक को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश बैस ने एडवोकेट प्रदीप रापडि़या के माध्यम से 2017 में हाईकोर्ट को हरियाण में हुए पेंशन वितरण घोटाले की जानकारी दी थी। जिसमें कैग रिपोर्ट का हवाला देकर पेंशन घोटाले की बात कही थी। याचिका में समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों पर मर चुके या अपात्र लोगों को करोड़ों की पेशन बांटने के आरोप लगाए थे।

विजिलेंस पर जताया था अविश्वास

याची ने कहा कि उन्हें हरियाणा विजिलेंस से कोई उम्मीद नहीं है और इस पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से करवाई जाए। हाईकोर्ट ने इस मामले मेंं सीबीआई को प्राथमिक जांच का आदेश दिया था और इसी के अनुरूप सीबीआई ने हाईकोर्ट में रिपोर्ट सौंप दी है। सीबीआई ने हाई कोर्ट के सामने स्टेट्स रिपोर्ट दायर करते हुए बताया कि हरियाणा भर के दोषी जिला समाज कल्याण अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए।

2012 में दी थी दोषियों पर कार्रवाई की अंडरटेकिंग

हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में सरकार ने 2012 में दोषियों पर कार्रवाई की अंडरटेकिंग दी थी। इस अंडरटेकिंग के बावजूद आज भी मामला हमारे पास विचारधीन है जो यह दर्शाता है कि अधिकारियों सरकार की दी गई अंडरटेकिंग को लेकर प्रतिबद्घता की कमी है। हाईकोर्ट ने कहा कि 2012 से लेकर अब तक जितने भी समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव और महानिदेशक रहे वो प्रथम दृष्टया कोर्ट की अवमानना के दोषी हैं, लेकिन अभी अदालत सिर्फ मौजूदा प्रधान सचिव और महानिदेशक को अवमानना का नोटिस जारी कर रही है। 15 मार्च 2024 तक दोनों को बताना होगा कि क्यों ना उनके खिलाफ अवमानना के लिए कार्यवाही की जाए।

सीबीआई की सिफारिश

सीबीआई ने कहा कि अभी भी अपात्रों को पेंशन के तौर पर वितरित की गई बड़ी  राशि रिकवर होनी बाकी है। 2012 में हरियाणा सरकार ने विश्वास दिलाया था कि इस मामले में कार्रवाई होगी और ऐसा न होने के लिए जिम्मेदार सभी जिला समाज कल्याण अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए।