Haryana: याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे घोटाले की सुनवाई करते हुए लोकायुक्त जस्टिस हरी पाल वर्मा ने शहरी स्थानीय निकाय विभाग के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई और 15 दिन में जांच रिपोर्ट न देने पर एंटी करप्शन ब्यूरो से मामलें की विस्तृत जांच करवाने की चेतावनी दी। मामले की सुनवाई की पिछली तारीख पर एंटी करप्शन ब्यूरो ने लोकायुक्त को दी अपनी प्राथमिक जांच में एंटी करप्शन ब्यूरो ने प्रॉपर्टी टैक्स सर्वे में फर्जीवाड़े के आरोपों को प्रथम दृष्ट्या सही पाते हुए विस्तृत जांच करने की जरूरत बताई थी। इस पर लोकायुक्त ने शहरी निकाय विभाग के प्रधान सचिव से 11 जनवरी तक जांच रिपोर्ट तलब की थी। लेकिन आज सुनवाई के दौरान शहरी निकाय विभाग के आधिकारी रिपोर्ट पेश नहीं कर सके। लोकायुक्त अब मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी को करेंगे।
ये है पूरा मामला
पानीपत के आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने लोकायुक्त जस्टिस हरि पाल वर्मा को गत वर्ष 19 जुलाई को निकाय मंत्री कमल गुप्ता, 12 आईएएस सहित शहरी निकाय विभाग के 88 अधिकारियों के खिलाफ़ शिकायत देकर याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे में घोटाले के गम्भीर आरोप लगाए थे। लोकायुक्त का नोटिस मिलते ही सरकार ने याशी कम्पनी को ब्लैक लिस्ट करते हुए 8 करोड़ रुपए की बकाया पेमेंट रोक दी थी व लाखों रुपए की परफॉर्मेंस बैंक गारन्टी भी जब्त कर ली थी। आरोप लगाया था कि प्रॉपर्टी आईडी का सर्वे बोगस होने के बावजूद अधिकारियों ने 58 करोड़ रुपए की पेमेंट कम्पनी को कर दी। इस बोगस सर्वे की त्रुटियों को ठीक कराने के लिए पब्लिक धक्के खा रही है ।
एंटी करप्शन ब्यूरो ने विस्तृत जांच की बताई जरूरत
लोकायुक्त के आदेश पर की गई अपनी प्राथमिक जांच में एंटी करप्शन ब्यूरो (मुख्यालय) के डीएसपी शुक्र पाल ने पीपी कपूर के आरोपों को सही पाते हुए घोटाले के पूरे खुलासे के लिए विस्तृत खुली जांच की जरूरत बताई। उन्होंने बताया कि मामले में फर्जीवाड़े की जांच पूरे रिकॉर्ड को अपने कब्जे में लिए बगैर और सम्बन्धित अधिकारियों के ब्यान लिए बगैर सम्भव नहीं है ।
एंटी करप्शन ब्यूरो की प्राथमिक जांच में हुआ खुलासा
टेंडर एग्रीमेंट की शर्त मुताबिक याशी कम्पनी को भुगतान से पहले सर्वे की गई सम्पतियों में से 10 पर्सेंट सम्पत्तियों का फिजिकल वेरिफिकेशन पालिका सचिवों नगर परिषदों के ईओ और नगर निगमों के जिला पालिका आयुक्तों को करना था । लेकिन य़ह कार्य सही ढंग से नहीं किया गया। इन अधिकारियों ने इस फिजिकल वेरिफिकेशन का रिकॉर्ड भी उचित ढंग से नहीं रखा, जिससे इस पूरे सर्वे कार्य के सही और प्रमाणिक होने का पता चल पाए। जबकि इसी के आधार पर साइन ऑफ सर्टिफिकेट्स जारी करके याशी कम्पनी को करोड़ों रुपये की पेमेंट कर दी। इसमें अधिकारियों की लापरवाही नजर आती है।