MCU Rewa: माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय रीवा का सभागार अब विंध्य के पहले पत्रकार स्वर्गीय लाल बलदेव सिंह के नाम से जाना जाएगा। इसकी घोषणा प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना की प्रथम वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने की। आइए जानते हैं बलदेव सिंह के बारे में।

जिस प्रकार से पत्रकारिता में माखनलाल चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबूराव विष्णुराव पराड़कर और माधवराव सप्रे का नाम लिया जाता है। वैसे ही विंध्य के प्रथम पत्रकार स्वर्गीय लाल बलदेव सिंह ने भी अपनी पहचान बनाई है। बलदेव सिंह ने विंध्य ही नहीं, मध्यप्रदेश का प्रथम राजनीतिक समाचार पत्र, तत्कालीन रीवा राज्य से प्रथम समाचार पत्र भारत भ्राता का प्रकाशन किया था।

एमसीयू रीवा कैंपस ऑडिटोरियम

1902 में रीवा सरकार ने खरीद लिया था अखबार
उन्होंने 1887 में कलकत्ता से रीवा प्रिटिंग प्रेस लाया। उन दिनों रीवा राज्य देश के सबसे पिछड़े इलाकों में गिना जाता था। ऐसे में समाचार पत्र का प्रकाशन किसी चुनौतियों से कम नहीं था। हालांकि बाद में 1902 में रीवा सरकार ने इस प्रेस को खरीदकर दरबार प्रेस के नाम पर तब्दील कर दिया था। इसी दौरान भारत—भ्राता का प्रकाशन भी बंद हो गया।

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15 वर्षों का रहा कार्यकाल
विंध्य के प्रथम पत्रकार रहे बलदेव सिंह का जन्म 1867 में रीवा जिले देवराज नगर में हुआ था। उनकी मृत्यु 1903 में मात्र 36 वर्ष की उम्र में हुई। 15 वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को काफी मजबूती प्रदान की। तत्कालीन पत्र—पत्रिकाओं में जहां साहित्यिक गतिविधियों का बोलबाला हुआ करता था वहीं भारत—भ्राता में राजनीति को प्रमुखता दी जाती थी। सिंह हिंदी के विकास को लेकर हमेशा चिंता करते रहते थे।

साहसी पत्रकार के रूप में बनाई छवि
लाल बलदेव सिंह की छवि एक साहसी पत्रकार के रूप में थी। जो अपने क्षेत्र की जनता की उन्नति और खुशहाली के लिये सदैव तत्पर रहते थे। वे सच्चे प्रजातांत्रिक भी थे। हमेशा चाहते थे कि किसी भी विषय या मुद्दे पर खुलकर चर्चा हो ताकि लोग अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा लाभ उठायें। उन्होंने रीवा राज्य के कार्यालयों में 1895 में देवनागरी लिपि का प्रयोग कराया और हिंदी को राजभाषा का सम्मान भी दिलाया।

अपने सिद्धांत पर अडिग रहे
समाचार पत्र को लेकर उनके कुछ सिद्धांत भी हुआ करते थे। जैसे विज्ञापन द्वारा ग्राहकों को न ठगना, अश्लील, कटु वाक्यों में आलोचना न करना, अशांति फैलाने से दूर रहना इत्यादि। उनका मानना था कि हिंदी में जितने अधिक समाचार पत्र प्रकाशित होंगे। उतनी ही हिंदी भाषा में लोगों की पकड़ बनेगी। इसी को देखते हुए उन्होंने देश के सबसे पिछड़े क्षेत्र से समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया था।