Banda Woman Judge Alleges Sexual Harassments Updates: उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में तैनात एक महिला जज ने पिछली पोस्टिंग के अपने सीनियर पर सेक्सुअल हैरसमेंट (शारीरिक उत्पीड़न) का आरोप लगाया है। उसने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नाम एक खुला पत्र लिखकर इच्छामृत्यु मांगी। उसने चिट्ठी में लिखा था कि मेरा भरी अदालत में शारीरिक शोषण हुआ। मैं दूसरों को न्याय देती हूं, लेकिन खुद अन्याय की शिकार हुई।
ये मामला मुख्य न्यायाधीश तक पहुंच गया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल अतुल एम कुरहेकर ने हाईकोर्ट प्रशासन को महिला जज की शिकायतों और कार्रवाई का अद्यतन ब्यौरा मांगा है।
महिला जज का लेटर वायरल
बाराबंकी में एक साल पहले हुआ शोषण
बांदा की महिला जज ने मुख्य न्यायाधीश को संबोधित 2 पन्नों की चिट्ठी में लिखा कि 2022 में वह बाराबंकी जिले में तैनात थीं। तारीख 7 अक्टूबर, समय 10 बजे का था। उस दिन जिला बार एसोसिएशन ने न्यायिक कार्य के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया था। मैं अदालत में काम कर रही थी।। तभी एसोसिएशन के पदाधिकारी कई वकीलों के साथ अदालत में आए। उन लोगों ने बदसलूकी की और गाली-गलौच करते हुए कमरे की बिजली बंद कर दी।
अगले दिन 8 अक्टूबर को इसकी शिकायत सीनियर जज से की तो सुनवाई नहीं हुई। भरी अदालत में मुझे अपमानित किया गया। शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। हाईकोर्ट में इसकी शिकायत की तो भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
हाईकोर्ट की जांच दिखावा, सुप्रीम कोर्ट से भी न्याय नहीं मिला
आगे लिखा कि जुलाई 2023 में हाईकोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति में शिकायत दर्ज करने के बाद आरोपों की जांच का आदेश दिया गया था, लेकिन जांच एक दिखावा है। जांच में गवाह जिला न्यायाधीश के तत्काल अधीनस्थ हैं। समिति कैसे गवाहों से अपने बॉस के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह मेरी समझ से परे है।
निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए जांच लंबित रहने तक जज के तबादले का अनुरोध किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका सिर्फ आठ सेकंड में खारिज कर दी। मैंने केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान जिला न्यायाधीश का तबादला कर दिया जाए। लेकिन प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दिया गया। मुझे अब जीने की कोई इच्छा नहीं है। पिछले डेढ़ साल में मुझे एक चलती-फिरती लाश बना दिया गया है। अब इस निष्प्राण और निर्जीव शरीर को इधर-उधर ले जाने का कोई उद्देश्य नहीं है। मेरे जीवन में कोई उद्देश्य नहीं बचा है।
लखनऊ की रहने वाली जज ने मुख्य न्यायाधीश से मांग की कि कृपया मुझे गरिमापूर्ण तरीके से अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति दें।