Milkipur by-election Result: उत्तर प्रदेश के मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव 2025 में भाजपा उम्मीदवार चंद्रभानु पासवान ने सपा प्रत्याशी अजीत प्रसाद को 61,710 मतों के बड़े अंतर से हरा दिया। बीजेपी की यह जीत कई मायनों में अहम मानी जा रही है। कुछ लोग इसे अयोध्या लोकसभा चुनाव की हार का बदला मान रहे हैं तो कुछ सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का असर बता रहे हैं। आइए जानते हैं सपा के गढ़ मिल्कीपुर में भाजपा की जीत के प्रमुख कारण...।
10 बिंदुओं से समझें मिल्कीपुर का चुनावी विश्लेषण
- स्थानीय नेतृत्व का प्रभाव: चंद्रभानु पासवान पासी समुदाय से आते हैं। उनका परिवार कपड़े के व्यवसाय से जुड़ा है, जबकि चंद्रभानु पासवान सियासत और वकालत करते हैं। स्थानीय मतदाताओं में उनकी मजबूत पकड़ है। विधानसभा से पहले वह जिला पंचायत चुनाव में भी साबित कर चुके हैं।
- सरकारी नीतियों का समर्थन: मिल्कीपुर में भाजपा की जीत में लाभार्थी वर्ग ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री मोदी और सीएम योगी की कल्याणकारी नीतियों का लाभ यहां के लाखों मतदाताओं तक पहुंचा। इसका चुनावी फायदा भी हुआ।
- संगठित चुनाव प्रचार: भाजपा ने मिल्कीपुर उपचुनाव में संगठित और प्रभावी चुनाव प्रचार किया है। पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों ने रैलियां की। कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों से वोट मांगे।
- विपक्ष की कमजोर रणनीति: समाजवादी पार्टी ने अजीत प्रसाद को काफी पहले उम्मीदवार घोषित कर दिया था, लेकिन सटीक चुनावी रणनीति नहीं बना पाई। यही कारण है कि अजीत प्रसाद अपना बूथ भी नहीं जीत पाए। अखिलेश यादव का ध्यान मिल्कीपुर की बजाय दिल्ली में ज्यादा दिखा।
- जातीय समीकरणों का प्रबंधन: लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पीडीए का नारा उछालकर सूबे की 30 से अधिक सीटें जीत ली, लेकिन इसके बाद इस समीकरण पर ध्यान नहीं दिया। इसके उलट भाजपा नेता विभिन्न जातीय समूहों को साधने में जुटे रहे। उपचुनावों में इसका असर भी दिखा।
- विकास कार्यों का प्रभाव: लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद भाजपा ने वृहद समीक्षा की और सीटवार रणनीति बनाकर क्षेत्र के विकास पर फोकस किया। पिछले 6 महीने में मिल्कीपुर में हजार करोड़ के विकास कार्य कराए गए। योजनाओं का लाभ भी जरूरतमंदों तक पहुंचाया गया।
- सकारात्मक प्रचार: मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा ने सकारात्मक प्रचार अभियान चलाया। इस दौरान लोगों का रुझान भी भाजपा के प्रति देखने को मिली। समाजवादी पार्टी के प्रति लोगों की नाराजगी देखने को मिली। सपा नेता स्थानीय मुद्दों की बजाय मोदी विरोधी प्रचार करते रहे।
- स्थानीय मुद्दों का समाधान: भाजपा ने उन सभी कारणों को तलाशा, जिनकी वजह से उसे लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। उपचुनाव में स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और उनके समाधान के लिए प्रतिबद्धता भी दिखाई।
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- मतदान प्रतिशत में वृद्धि: मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा का बूथ मैनेजमेंट शानदार रहा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उनके आधा दर्जन मंत्री और संगठन के कई सीनियर पदाधिकारियों ने आक्रामक चुनाव प्रचार किया। हर बूथ में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने और जीतने पर जोर दिया।
- विपक्षी दलों में एकता की कमी: लोकसभा चुनाव और उसके पहले 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जिस तरीके से विपक्षी दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ा था, वैसा तालमेल इस चुनाव में देखने को नहीं मिला। कांग्रेस नेताओं ने भी इस चुनाव से दूरी बनाए रहे। भाजपा को विपक्ष की फूट का फायदा भी मिला है।