Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ’अभिनन्दन पर्व समारोह’ का आयोजन दिन शुक्रवार 31 जनवरी, 2025 को हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में किया गया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और वंदना सरबजीत मारवा द्वारा की गयी। बाल साहित्य सम्मान से सम्मानित साहित्यकार- डॉ. करुणा पाण्डे, डॉ. आर. पी. सारस्वत, डॉ. मोहम्मद अरशद खान, दिलीप शर्मा, नरेन्द्र निर्मल, बलराम अग्रवाल, देवी प्रसाद गौड़, डॉ. दीपक कोहली, अनिल कुमार ’निलय’ का स्वागत स्मृति चिह्न भेंट कर राज बहादुर, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
बाल साहित्य पर जोर
डॉ. करुणा पाण्डे ने कहा- बचपन जीवन का परिचय होता है। पूरे जीवन का ढ़ांचा बचपन में ही तैयार हो जाता है। आज बच्चों के बचपन में अकेलापन दिखायी पड़ता है। वर्तमान में तकनीकी युग में बचपन खोता दिखायी पड़ता है। बच्चों को संस्कारवान बनाना है तो बाल साहित्य को समृद्ध करना होगा। बच्चों के बाल मनोविज्ञान को समझना होगा। वातावरण का प्रभाव बालमन पर पड़ता है। आज आवश्यकता है बच्चों के पास तक एक अच्छा बाल साहित्य पहुँचाया जाना चाहिए।
गीतों पर श्रोता झूमें
डॉ. आर. पी. सारस्वत ने कविता पाठ सुनाया- ’’नानी के गाँव चले बड़ा मजा आयेगा। मामा के संग-संग घूमेंगे खेत में। बम्बा की पटरी पे दौडे़ंगे रेत में। नंगे ही पाँव चले बड़ा मजा आयेगा।’’ अपनी कविता सुनायी। डॉ. मोहम्मद अरशद खान ने कहा- अपनी कहानी ’मिट्टी का कटोरा’ का पाठ पढ़कर सुनाया। कहानी का भाव व उसमें उल्लिखित मनोभावों ने श्रोताओं के मन को छू लिया। दिलीप शर्मा ने कहा- चित्रकला के लिए चित्रकार को कल्पना लोक निर्माण करना पड़ता है। चित्रकला के लिए भी अच्छे साहित्य को पढ़ने की आवश्यकता होती है।
बाल साहित्य के महत्व पर जोर
नरेन्द्र निर्मल ने कहा- बच्चों को पढ़ने के लिए व उन्हें प्रेरित करने के लिए बच्चों से जुड़ना होगा। यह कहना उचित नहीं कि बच्चों का साहित्य पढ़ा नहीं जा रहा है। बाल साहित्यकारों को बच्चों के मन मस्तिष्क व उनके मानसिक स्तर को समझना होगा। बाल साहित्य आज काफी पढ़ा जा रहा है। बाल साहित्यकार को बाल मनोविज्ञान को समझ कर लिखना होगा।
बचपन को पड़ता है जीना
बलराम अग्रवाल ने कहा- माता पिता अपनी संतानों को बहुत कुछ दे देते हैं, जो हमें दिखाई नहीं देता है। बाल साहित्य के लिए बचपन को जीना पड़ता है। बाल साहित्य बड़ों को भी सीख देता है कि बच्चों को क्या सिखाया जाये।
देवी प्रसाद गौड़ ने कहा- साहित्य साधक और आत्म साधक में कोई विशेष अन्तर नही होता है। आज बाल साहित्य बच्चों पर लिखा जा रहा है, न कि बच्चों के लिए। साहित्य समीक्षा एक निरन्तर व सतत प्रक्रिया है। साहित्य सागर के मंथन से कई रत्न निकले। इन रत्नों में कविता, कहानी भी रही। समीक्षा साहित्य का एक महत्वपूर्ण तत्व है।
डॉ. दीपक कोहली ने कहा- बालमन में हमेशा एक प्रश्न आता है ’’क्यों और कैसे’’। बच्चों को उनके प्रश्नों का उत्तर उनकी भाषा में ही दिया जाना चाहिए। बच्चों के प्रश्न ही बाल-विज्ञान को लिखने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं।
अनिल कुमार ’निलय’ ने कहा- साहित्य हो या साहित्यकार ने अपने समय में अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। न ही हिन्द संकट में रहा है, न कभी हिन्दी संकट में रही है। हमें आशावान बने रहना है।
बाल साहित्य की भूमिका
निदेशक महोदय ने कहा- बालसाहित्य की रचना करना बहुत ही कठिन कार्य है। जब एक बाल रचनाकार बालसाहित्य के लिए अपनी लेखनी चलाता है, तब उसके भीतर उसके कार्य, उसके व्यवहार एवं उसके मन मस्तिष्क में एक बालक एवं बचपन समाहित होता है अर्थात उसे अपने बचपन में पुनः लौटना पड़ता है। मेरा मानना है कि जिस रचनाकार में बचपन व बालमन जीवित रहता है, वही रचनाकार एक उत्कृष्ट बालसाहित्य की रचना कर सकता है। एक उत्कृष्ट बाल साहित्य उसे ही माना जा सकता है, जिसमें एक बालमन में अच्छे संस्कारों व चरित्र निर्माण करने की क्षमता हो व उन्हें एक सही दिशा दिखा सके। डॉ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान द्वारा कार्यक्रम का संचालन एवं संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया गया।