Mother's Day: मां एक सुंदर प्यारा अहसास है, जो अपने जीते जी अपने जिगर के टुकड़े पर आंच भी नहीं आने देती और यदि बच्चे पर आंच आ भी जाए तो ईश्वर से भी लड़ जाती, लेकिन कई बार लाइलाज बीमारियां एक मां से उसके जिगर के टुकड़े को छीनने की पूरी कोशिश करती हैं लेकिन चट्टान सी अडिग मां अपने प्राणों की परवाह किए बिना अपने कलेजे के टुकड़े को काल के मुंह से भी बाहर निकाल लाती है। आज 'मदर्स डे' पर हरिभूमि ने तीन मांओं को तलाशा, जिन्होंने अपनी संतान को पहली बार जन्म देकर संसार दिया, लेकिन दूसरी बार उसे प्राण दिए।
पहला मामला भोपाल की सुनीता मेवाड़े का
भोपाल की सुनीता मेवाड़े ने बताया दो बच्चे खत्म हो गए थे, तीसरे बच्चे को अपना लिवर देकर बचाया। मां ने हर इंसान से प्रार्थना करती, उसने बताया कि मेरी कोख को तीसरे बच्चे को हमने लीवर देकर बचाया। उसने बताया कि हमारे पहले दो बच्चे हुए थे, जो 5 साल की उम्र के होते-होते खत्म हो गए क्योंकि उनका लीवर पूरी तरह डैमेज था और उन्हें किल्सन डिजीज थी जिसमें लीवर जड़ से ही खराब हो जाता है और 5 साल एक-दो महीने होने पर ही बच्चे की मृत्यु हो जाती है।
अपने दो बच्चों को पांच साल दो माह का होते ही खो देने का दुख मेरे लिए ईश्वर के दिए किसी आप से कम नहीं था, फिर जब हमारा तीसरा बच्चा देवराज हुआ तो उसके एक माह का होने के बाद हमने चेकअप कराया तो पता चला कि इसे भी वही बीमारी है, जो लाइलाज है, और पांच साल का होते ही देवराज का भी अपने दो भाइयों जैसा हाल होगा, यह क्षण मेरे लिए कितना कष्टदायक था, इसे में शब्दों में बयां नहीं कर सकती। यह कहना है भोपाल की सुनीता मेवाड़े का, जो दो बच्चों को खोने के बाद देवराज को नहीं खोना चाहती थीं।
उन्होंने कहा कि अपने नन्हे से कृष्ण स्वरूप देवराज को बड़ा होते देख मन में हमेशा दुख सताता कि आखिर इसके पांच साल के होने के बाद क्या होगा। हर क्षण ईश्वर से प्रार्थना करती, मेरी कोख को तीसरी बार सूनी न करना। लेकिन, फिर हमें डॉक्टर्स ने बताया कि इस बीमारी में यदि लीवर ट्रांसप्लांट कराया जाए तो बच्चा बच भी सकता है। बस फिर क्या था, मैं अपना लीवर तो क्या अपने प्राण देकर भी अपने देवराज को बचाना चाहती थीं और आज से तीन साल पहले देवराज का लीवर ट्रांसप्लांट हुआ, उस वक्त भी मुझे अपनी जान से ज्यादा अपने मासूम देवराज की जान की परवाह थी और आज हम दोनों मां-बेटे पूरी तरह स्वस्थ्य है।
जब बात बच्चे के जीवन की हो तो एक मां ईश्वर से भी 'लड़' जाती है
भोपाल की लता पंडागरे का कहना है कि मेरे पति एक प्राइवेट हॉस्पिटल में इलेक्ट्रोशियन है और मेरे छोटे बेटे प्रियांशु को बचपन से ही नेफ्रोटिक सिंड्रोम था, जिस वजह से हमें पता था कि इसके लीवर में दिक्कत है लेकिन आज से 2 साल पहले तो उसकी हालत काफी खराब हो गई थी, करीब 12 दिन तक मेरा बेटा प्रियांश बेहोश था, डॉक्टर्स ने भी कहा यह बात बच्चे की थी जिसमें बचना नामुमकिन है। लेकिन कहते हैं न कि जब बात बच्चे के जीवन की हो तो एक मां ईश्वर से भी लड़ जाती है।
यही मेरे साथ हुआ मैंने ईश्वर से प्रार्थना कि कहा कि मेरी जान ले लें, लेकिन मेरे बच्चे को जीवन दान दे, और बस हर एक हॉस्पिटल में दिखाने के बाद मुझे डॉक्टर गुरुसागर मिले, जिन्होंने हमें बताया कि इस बच्चे को लीवर ट्रांसप्लांट करके बचाया जा सकता है और मेरा लीवर मैच हो गया, बस मैंने कहा कि बिना देरी किए आप मेरा लीवर बेटे को ट्रांसप्लांट कीजिए, लेकिन इसमें खर्चा भी लाखों में आया, ऐसे में गुरुसागर ने ही हमें एनजीओ की हेल्प दिलवाई, साथ ही सीएम हेल्प भी दिलवाई, जिससे मेरे बच्चे की जान बच गई, आज मैं ईश्वर को तो नमन करती हूं साथ ही उन डॉक्टर को भी करती हूं जिन्होंने मेरे बेटे की जान बचाई क्योंकि एक मां अपने बच्चे को संसार में लाती है। लेकिन उसके दीर्घायु के लिए यदि एक मां को मौत का भी सामना करना पड़े तो वो पीछे नहीं हटती।
70 साल की बुजुर्ग मां ने बेटे को दे दी किडनी, मेरे लिए उसका जीवन वरदान
राजधानी भोपाल में रहने वाली 70 वर्षीय प्रमिला बिलैया भी अपने गजब जज्बे की मिसाल हैं। जिन्होंने अपने 48 वर्षीय बेटे जीतेश बिलैया की जान बचाने के लिए उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की। प्रमिला का कहना है कि साल 2023 में हमें पता चला कि मेरे बड़े बेटे की दोनों किडनियां डैमेज हैं, 70 साल की बुजुर्ग महिला ने बताया कि ऐसे में मुझे बेहद चिंता हुई क्योंकि मेरे तीनों बेटों में जीतेश सबसे बड़ा है और मेरा लाडला भी है, लेकिन उसकी ऐसी हालत मुझसे देखी नहीं गई।
जीतेश की पत्नी का ब्लड ग्रुप मैच नहीं हुआ तब मैंने कहा कि अपने बेटे को मै किडनी दूंगी, क्योंकि मेरी उम्र ज्यादा थी तो बेटे ने मना किया, लेकिन मैं नहीं मानी एक मां के लिए सबसे बड़ा वरदान यही है कि उसका बच्चा फले फूले और उसकी उम्र लंबी हो, अपने बच्चे को कष्ट में देखना किसी भी मां के लिए एक बड़े दुख से कम नहीं और फिर फरवरी 2024 में मैंने अपने बेटे को किडनी दी। आज हम दोनों की स्वस्थ्य हैं और जीतेश के चेहरे की खुशी देखकर ही में स्वयं खुश हो जाती हूं क्योंकि अपने बच्चों के लिए एक मां किडनी या अन्य कोई ऑर्गन तो क्या अपनी जान तक दे सकती है।