U Dice Plus report: सर्व शिक्षा अभियान का प्रमुख उद्देश्य छात्रों का नामांकन, ठहराव और न्यूनतम दक्षता हासिल करना था। अब समग्र शिक्षा का पूरा ध्यान गुणवत्ता पर है। मौजूदा व्यवस्था के अंतर्गत स्कूलों में अधिगम का न्यून स्तर, शिक्षकों की कमी और स्कूल प्रशासन संबंधी कठिनाइयों जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है। एक और चुनौती कई छोटे व अकुशल स्कूल चलाना है। छोटे स्कूल पाठशाला न रहकर भ्रम शाला बन कर रह जाते हैं।
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, छात्रों के समान नामांकन के लिए भारत में चीन की तुलना में 5 गुना स्कूल हैं। कई राज्यों में तो 50 फीसद से अधिक प्राथमिक स्कूलों में 60 से कम छात्रों का नामांकन है। ऐसे में एक अवधारणा स्कूल या पाठशाला विलय की आई। यद्यपि, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और सर्व शिक्षा अभियान जैसी पहलों ने शैक्षिक पहुंच में सुधार किया है। मध्याह्न भोजन योजना छात्र कल्याण का समर्थन करती है। तथापि आधे-अधूरे संसाधनों और एक शिक्षकीय या शिक्षकविहीन स्कूलों ने शिक्षा नीतियों की पोल खोली है।
14.8 लाख स्कूल, 97 लाख शिक्षक
2022 में जारी यू डाइस प्लस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 14 लाख 8 हजार 115 स्कूल हैं। इनमें सरकारी स्कूल 10 लाख 22 हजार 386 सरकारी सहायता प्राप्त 82 हजार 480, निजी स्कूल 34 हजार 753 प्राथमिक पाठशाला 11 लाख 96 हजार 265, हाईस्कूल 15 लाख 452 तथा हायर सेकेंडरी 1 लाख 42 हजार 398 एवं इनमें 97 लाख से ज्यादा शिक्षक अध्यापन कर रहे हैं।
एक साल में बंद हो गए 101021 स्कूल
यू डाइस प्लस रिपोर्ट के मुताबिक, 26 करोड़ 52 लाख 35 हजार 830 विद्यार्थी स्कूलों में पंजीकृत हैं। 2021 में स्कूलों का आंकड़ा 15 लाख 9 हजार 136 था। यानी एक साल में 1 लाख एक हजार 21 स्कूल बंद हो गए। 2019 में स्कूलों की संख्या 15 लाख 51 हजार थी। ऐसे समय में नई शिक्षा नीति 2020 से तीन साल पहले ही नीति आयोग ने वर्ष 2017 में शिक्षण में मानव पूंजी को रूपांतरित करने सतत कारवाई (सस्टेनेबल एक्शन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग ह्यूमन कैपिटल इन एजुकेशन,साथ ई) कार्यक्रम प्रारंभ किया था। इसके लिए झारखंड, ओड़िशा और मप्र को आदर्श माना गया। झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा में कार्यान्वित, साथ-ई परियोजना दक्षता और बेहतर गुणवत्ता के लिए स्कूलों के विलय पर केंद्रित है।
2400 करोड़ की बचत
नीति आयोग की रिपोर्ट में ऐसे छह मुद्दों की पहचान की गई है। इन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में बड़े पैमाने पर संबोधन की जरूरत है। मजबूत राजनीतिक समर्थन के साथ उपस्तर पर व अपर्याप्त संसाधन वाले स्कूलों के मुद्दे को सीधे संबोधित करना। बड़े पैमाने पर शिक्षक रिक्तियों के मुद्दों का समाधान करना, शिक्षक गुणवत्ता एवं शिक्षण शास्त्र में सुधार करना, अधिगम (सीखने) के परिणामों के प्रति जवाबदेही लागू करना। प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा और प्रासंगिक मातृभाषा शिक्षा और प्रासंगिक मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा पर ध्यान देना, शिक्षा विभागों में शासन संरचनाओं को मजबूत करना अर्थात शिक्षा प्रशासन को मजबूत करना। शिक्षा विलय योजना से शैक्षिक लागत में पर्याप्त बचत हुई। झारखंड में स्कूल विलय से 2400 करोड़ की बचत है।
एसएटीएच-ई परियोजना
2017 में लॉन्च एसएटीएच-ई परियोजना का उद्देश्य स्कूली शिक्षा को बदलना है। इसमें स्कूलों का विलय, उपचारात्मक कार्यक्रम, शिक्षक प्रशिक्षण, भर्ती की निगरानी, जिला और राज्य स्तर पर संस्थानों का पुनर्गठन और प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) का उपयोग शामिल है। प्रबंधन सूचना प्रणाली, लक्ष्य निर्धारित करने, योजना बनाने, संसाधन आवंटन और प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में मदद करता है। प्रगति की निगरानी राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय संचालन समूह (एनएसजी) और केंद्रीय परियोजना निगरानी इकाई (सीपीएमयू) द्वारा की जाती है। राज्य स्तर पर राज्य परियोजना निगरानी इकाइयों द्वारा की जाती है।
लेखक: डॉ रामानुज पाठक सतना मध्यप्रदेश