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भारतीय युवाओं में खराब जीवनशैली, खानपान, शारीरिक व्यायाम की कमी और कम पौष्टिक वाले आहार के कारण हाई कोलेस्ट्रॉल के स्तर में तेजी से वृद्धि हो रही हैं। कोलेस्ट्राल हृदय संबंधित बीमारियों, मोटापे व डायबिटीज का मुख्य कारण हैं।

Cholesterol increasing in youth: कोलेस्ट्रॉल एक बेहद सामान्य बीमारी हैं। यह समस्या गलत खान-पान की आदत के कारण होती हैं। इसको युवा शुरू में नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन यह समस्या आगे चलकर फैटी लिवर और हार्च अटैक जैसी बड़ी बीमारियां बन जाती हैं। पहले कोलेस्ट्रॉल बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता था लेकिन अब कम उम्र यानि 20 वर्ष के आसपास के युवाओं में कोलेस्ट्राल की अधिक समस्या देखने को मिल रही हैं। युवाओं का बाहर का खान-पान और फिजिकल एक्टिविटी की कमी उन्हें कम उम्र में ही कोलेस्ट्रॉल का शिकार बना रही हैं। 
कितना होना चाहिए कोलेस्ट्रॉल 
कोलेस्ट्रॉल लिवर द्वारा निर्मित एक मोमी पदार्थ होता है जो हार्मोन, विटामिन डी और पित्त लवण (बाइल) के उत्पादन के लिए आवश्यक होता हैं। यह हमारे शरीर की पाचन की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। इसे दो वर्गो हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन और लू डेंसिटी लिपोप्रोटीन में विभाजित किया गया हैं। हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन को अच्छा कोलेस्ट्राल माना जाता हैं जिसकी सामान्य रेंज 50mg/dL या इससे अधिक होनी चाहिए। वही आपको शरीर में हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन की मात्रा को कम रखना चाहिए क्योंकि इसको बैड कोलेस्ट्रॉल के नाम से जाना जाता है। इसकी सामान्य रेंज 100 mg/dLसे कम होनी चाहिए। सामान्य रेंज से अधिक रेंज हमारे शरीर के लिए खतरनाक होती हैं। इसके कारण हार्ट अटैक की समस्या का खतरा बढ़ जाता हैं। 
युवाओं में कोलेस्ट्राल बढ़ने का कारण 
कोलेस्ट्राल हमारी जीवनशैली और खान-पान से जुड़ा हुआ है। इसकी शुरूआत बचपन के चिप्स के पैकेट से होती हैं। प्रॉसेस्ड फूड और फास्ट फूड का चलन हमारे खान-पान में दशको से आसमान छू रहा हैं, य़ह फूड सैचुरेटेड फैट्स और ट्रांस फैट से भरपूर होते हैं। इसके अलावा हमारी खराब लाइफस्टाइल और फिजीकल एक्टविटी की कमी हमारे शरीर में खराब केलोस्ट्राल को बढ़ाती हैं। यह बैड कोलेस्ट्रा हार्ट अटैक और अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं के खतरे को काफी बढ़ा सकता है।

कोलेस्ट्रॉल से होने वाली समस्याएं
शरीर में कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने से डायबिटीज, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, फैटी लिवर और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं होने लगती हैं। इसको कम करने के लिए दवाइयों से बेहतर अपनी दिनचर्या तथा जीवनशेली में बदलाव लाना चाहिए। 
 

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