peace and happiness: अगर आपको दिल्ली से कोलकाता जाना हो लेकिन आप ट्रेन या फ्लाइट चेन्नई की पकड़ लें तो कोलकाता पहुंचेंगे या चेन्नई? यह सवाल आपको अटपटा लग सकता है लेकिन व्यावहारिक जीवन में देखें तो खुशी और सुकून की तलाश में हम कुछ इसी तरह गलत राह पर चलते हुए अपनी मंजिल से भटक जाते हैं और हमें इसका अहसास ही नहीं होता है।

लिविंग स्टैंडर्ड का गलत पैमाना
बेहतरी, सफलता, समृद्धि और सुकून के वास्तविक स्वरूप को समझने में लोग अकसर चूक जाते हैं। इसमें पूरी तरह गलती आपकी नहीं है। वास्तव में हमारा माहौल, संगत और समाज कई मामलों में हमारा नजरिया तय करते हैं। यही वजह है कि आज स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग हाई होने यानी सफलता और खुशहाली का प्रतीक भौतिक साधनों के बहुलता को माना जा रहा है। आपके जीवन का स्तर कितना ऊंचा है, यह इस बात से तय होता है कि आप का मकान शहर के किस पॉश इलाके में है, कितना बड़ा मकान या फ्लैट है, आपकी कार कितनी महंगी है, आपके यहां कितने नौकर-चाकर काम करते हैं, आपका बैंक बैलेंस कितना बड़ा है, आपका मोबाइल किस ब्रांड का है, आप शहर के किस रेस्तरां में डिनर या लंच के लिए जाते हैं, किस ब्रांड के कपड़े, घड़ी या जूते पहनते हैं? आप छुट्टियां बिताने के लिए विदेश जाते हैं या नहीं? इतना ही नहीं रेव पार्टीज में या महंगे क्लब्स में जाना भी स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग का प्रतीक बन गया है।
 
अपना नुकसान खुद करते हम
आज के दौर का यह सच बन गया है कि हममें से अधिकांश लोगों के जीवन का ज्यादातर समय इन्हीं को पा लेने की कोशिश में खप जाता है, इन्हीं में सुकून और खुशहाली की तलाश करते हुए अनजाने में ही हम परेशान, बदहाल और तनावग्रस्त रहने लगते हैं। पिछली सदी में बुजुर्ग और अब तो वैज्ञानिक भी कहते हैं कि चिंता, चिता के समान होती है। हम अपनी ही नासमझी से गलत जीवनशैली के कारण उच्च रक्तचाप, मधुमेह, स्ट्रोक, हृदय रोगों और कैंसर जैसे घातक रोगों के शिकार बेहद आसानी से हो जाते हैं। नतीजतन ना मनचाहा खा सकते हैं ना ढंग से सो पाते हैं। कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया। लेकिन जब माया के चक्कर में काया ही रोगी हो गई तो सुख और सुकून भला कैसे मिलेंगे?

गलत मार्ग पर मंजिल की तलाश
हममें से अधिकतर लोग समझ ही नहीं पाते कि आखिर इतने प्रयासों के बावजूद हम सुखी क्यों नहीं हो पा रहे हैं? सीधी सी बात है, जाना था जापान पहुंच गए चीन वाली कहावत हमारे साथ लागू हो गई है। हमारे प्रयास ही गलत दिशा में और गलत चीजों के लिए होते हैं। हमारा लक्ष्य कुछ और होता है और राह हम दूसरी पकड़ लेते हैं। हम अपने जीवन का स्तर ऊंचा करने की बजाय, इसे छोड़कर दूसरी भौतिक, दिखावटी और गैर जरूरी चीजों का स्तर ऊंचा करने में जुट जाते हैं। स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग को ऊंचा करना एक अंतहीन प्रयास है, जिसका कोई उच्चतम मापदंड आज तक कोई निश्चित नहीं कर पाया है। आप चाहे जितना महंगा सामान खरीदेंगे, आपसे भी महंगा किसी और के पास मिल जाएगा। उसे देखते ही आपका अहं, चूर-चूर हो जाएगा और खुशी काफूर हो जाएगी। आप फिर से असंतुष्ट और खिन्न हो जाएंगे। यानी यह खुशी क्षणिक ही साबित होगी।

आंतरिक सुकून की राह
आपको जीवन का स्तर ऊंचा रखना है, सुकून, सुख और खुशहाली से रहना है तो जरूरतों और चाहतों में अंतर समझना होगा। जीवन का स्तर आंतरिक सुख से ऊंचा होगा, जो संतोष से प्राप्त होता है। कहा भी गया है, संतोषम् परम सुखम्। अध्यात्म, प्राणायाम, योग, ध्यान आदि को अपनाना होगा। परमार्थ की भावना, दयालुता, परोपकार, समाज की सेवा, नर ही नारायण है ऐसा मानते हुए मनुष्य मात्र के प्रति संवेदनशीलता हमें जीवन के उच्चतम स्तर तक पहुंचा सकती है। तिकड़मबाजी, झूठ, छल, कपट, धोखाधड़ी, झूठ, ईर्ष्या, लालच, क्रोध जैसे दुखी करने वाले जंजालों से मुक्ति पानी होगी। जैसे किसी तालाब के पानी से काई, तृण, गंदगी और विषाणु निकालकर उसे हल्का, सुपाच्य और स्वस्थ पेय जल बनाया जा सकता है, वैसे ही जीवन से इन अवांछित तत्वों और नकारात्मक भावनाओं को निकाल दें तो जीवन स्वच्छ जल की मानिंद हल्का और सुकून देने वाला बन सकता है।

इस प्रकार का जीवन जीने वाला स्वत ही अपने समाज में चहेता, प्रशंसनीय, स्नेह का पात्र और आदरणीय बन जाता है। लोग उसका सम्मान करते हैं। लोगों से जब ऐसा आदरपूर्ण और स्नेहिल व्यवहार मिलेगा तो आपको अतुलनीय आंतरिक आनंद और सुकून मिल जाएगा। 

शिखर चंद जैन