World Diabetes Day: डायबिटीज का एक प्रकार, लाडा डायबिटीज 20-35 साल के अनेक युवाओं को अपनी चपेट में ले रहा है। लाडा डायबिटीज, टाइप-1 और टाइप-2 प्रकार के डायबिटीज के बीच की स्टेज है, जो वयस्कों में बहुत धीरे-धीरे विकसित होती है। इसे टाइप 1.5 डायबिटीज और वैज्ञानिक भाषा में ‘लेटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज इन एडल्ट्स’ यानी लाडा कहा जाता है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में डायबिटीज के मरीजों में 90 प्रतिशत टाइप 2 डायबिटीज के हैं। 5-10 प्रतिशत मरीज टाइप 1 के होते हैं। एपिडेमियोलॉजिकल स्टडीज के हिसाब से वयस्क लोगों में होने वाली डायबिटीज के 2-12 प्रतिशत मामले लाडा डायबिटीज के होते हैं।
क्या है लाडा डायबिटीज
लाडा, टाइप-1 डायबिटीज की तरह होता है। टाइप-1 में शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ने लगता है। शरीर की एंटीबॉडीज पैंक्रिएज ग्लैंड्स के बीटा सेल्स को खत्म करना शुरू कर देती है। इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है और पीड़ित व्यक्ति में डायबिटीज के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। लेकिन लाडा में पैंक्रिएज के बीटा सेल्स तकरीबन 20 प्रतिशत बचे रहते हैं और वो इंसुलिन का स्राव करते रहते हैं। जिससे लाडा मरीज को टाइप-1 की तरह शुरू में इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं पड़ती। बढ़े हुए ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए उन्हें ड्रग्स दी जाती हैं। पैंक्रिएज के बचे हए बीटा सेल्स और इंसुलिन के स्राव की प्र्रक्रिया धीरे-धीरे कम होती जाती है। डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए ली जाने वाली दवाइयों का असर कम होता जाता है। इसे ओरल एंटीडायबिटिक ड्रग (ओएडी) फैल्योर कहा जाता है। तब लाडा ग्रस्त मरीज को इंसुलिन शॉट्स की जरूरत पड़ती है, जो जिंदगी भर चलते हैं।
क्या है नुकसान
ब्लड में ग्लूकोज का उच्च स्तर, शरीर के दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। कंट्रोल ना होने पर हार्ट अटैक, नजर का धुंधलापन, नसों को नुकसान, गंभीर इंफेक्शन और किडनी फैल्योर जैसी समस्या हो सकती हैं। आईसीएमआर के आंकड़ों के हिसाब से डायबिटीज के 16.3 प्रतिशत मरीजों को हाइपरटेंशन, 44 प्रतिशत मरीजों को हाई कोलेस्ट्रॉल का खतरा रहता है।
कैसे पहचानें
चूंकि लाडा के लक्षण डायबिटीज के दूसरे प्रकारों के समान होते हैं। इसलिए मरीज में लाडा डायबिटीज की पहचान लक्षणों के आधार पर कर पाना काफी कठिन होता है। बार-बार पेशाब आना, अधिक प्यास लगना, वजन कम होना, चिड़चिड़ापन, पेशाब या शरीर में इंफेक्शन होना, जो लंबे समय तक ठीक नहीं हो पाता। डायबिटीज से पीड़ित लोग, जो दुबले-पतले हैं और शारीरिक रूप से सक्रिय हैं। लेकिन उनका वजन बिना प्रयास के कम हो रहा हो। अगर उन्हें दी जाने वाली दवाइयों का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है और इंसुलिन की जरूरत पड़ रही है। ये लक्षण लाडा के हो सकते हैं।
डायग्नोसिस
ओरल एंटीडायबिटिक ड्रग (ओएडी) फैल्योर यानी डायबिटीज कंट्रोल की दवाइयां बेअसर होने, साथ ही परहेज और नियमित एक्सरसाइज करने के बावजूद शुगर कंट्रोल नहीं हो रही है तो मरीज को लाडा डायबिटीज के टेस्ट जरूर करवा लेना चाहिए। लाडा जांच के लिए एंटीबॉडी टेस्ट- एंटी गैड, एंटी इंसुलिन और सी-वेपटाइड एंटीबॉडी टेस्ट किए जाते हैं। मरीज के वजन और मेडिसिन के लिए बॉडी-रिस्पांस को देख कर लाडा डायबिटीज का पता लगाया जाता है। स्थिति के हिसाब से उपचार किया जाता है।
क्या है उपचार
मरीज की स्थिति के हिसाब से इलाज किया जाता है। ब्लड शुगर कंट्रोल करने और नॉर्मल जिंदगी जीने के लिए दिन में इंसुलिन शॉट्स के 2-4 डोज़ भी लेने पड़ते हैं। ऐसा ना करने पर उसके शरीर में कीटोंस बन जाते हैं, ऐसिटोसिस की स्थिति आ जाती है जिससे उसे बेहोशी आने लगती है, जिंदगी को खतरा भी हो सकता है।
बरतें सावधानी
- इसे नियंत्रित रखने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल जरूरी है।
- हर 3 घंटे में थोड़ी मात्रा में कुछ ना कुछ जरूर खाएं, जिससे एनर्जी लेवल मेंटेन रहे। ज्यादा लंबा गैप आने पर शरीर में शुगर का लेवल बढ़ने लगता है और कमजोरी महसूस होने लगती है।
- डॉक्टर की सलाह पर इंसुलिन शॉट्स लेते रहें, ताकि शुगर कंट्रोल में रहे और जान को खतरा ना हो।
- कोई अन्य बीमारी होने की स्थिति में मरीज को 20 प्रतिशत ज्यादा इंसुलिन लेने की जरूरत होती है क्योंकि बीमारी में शुगर लेवल बढ़ जाता है।
- किसी कारणवश उल्टियां हो रही हों, तब भी इंसुलिन की डोज जरूर लेनी चाहिए। खाना ना खा पाएं तो मरीज को जूस या पानी में ग्लूकोज़ मिलाकर ले सकते हैं।
यह जानकारी डॉ. अशोक झिंगन चेयरमैन-दिल्ली डायबिटीज रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित है।
(Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई सामग्री सिर्फ जानकारी के लिए है। हरिभूमि इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी सलाह या सुझाव को अमल में लेने से पहले संबंधित विशेषज्ञ, डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।)