Happy Mothers Day 2024: मां बनना केवल बच्चे को जन्म देना भर नहीं, अनूठी भावनाओं को महसूस करना भी होता है। मातृत्व का यह एहसास गर्भ धारण करने से लेकर ताउम्र संतान के साथ बना रहता है। ऐसे में हर संतान का यह दायित्व बनता है कि वह अपनी मां की निस्वार्थ ममता का सम्मान करे और उसे कभी अकेलेपन का अहसास ना होने दे।
मातृत्व का एहसास
मातृत्व, हर स्त्री के जीवन में होने वाली कोमल एहसासों से भरी एक अनूठी यात्रा होती है। इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो एक स्त्री को इतनी खुशी और संतुष्टि दे सके, जितना मातृत्व का एहसास। तभी तो मां अपने बच्चे की एक किलकारी पर अपना सब कुछ वार सकती है। बच्चे के जन्म, लालन-पालन में होने वाली हर पीड़ा, शारीरिक बदलावों को सहजता से स्वीकार करती है। अपनी सारी प्राथमिकताओं को दरकिनार कर मातृत्व की जिम्मेदारियों को सर्वोपरि रखती है।
संतान से निस्वार्थ-गहरा नाता
मां और उसकी संतान का रिश्ता सबसे पवित्र और सागर जितना गहरा होता है। दुनिया के सारे रिश्ते किसी न किसी स्वार्थ से बंधे हुए होते हैं, लेकिन एक मां की ममता, उसका अपनी संतान की परवरिश के लिए किया जाने वाला त्याग, निस्वार्थ होता है। गर्भ धारण के बाद से ही मां और शिशु के बीच यह रिश्ता पनपना शुरू हो जाता है। मां अपने गर्भस्थ शिशु की हर गतिविधि को महसूस करती है। उसकी भावनाओं को भी समझने की कोशिश करती है। उसकी अच्छी सेहत और बेहतर विकास के लिए अपनी पसंद-नापसंद सब छोड़ देती है। उसे दुनिया-जहान की हर खुशी देने के स्वप्न संजोती है। ममत्व के ये एहसास समय के साथ प्रगाढ़ होते जाते हैं और ताउम्र बरकरार रहते हैं।
धरती के समान धैर्यवान
जन्म के वक्त हर शिशु मिट्टी के जीते-जागते पुतले के समान होता है। ना तो उसकी चेतना विकसित होती है और ना ही भावनाएं। यह मां ही होती है, जो अपनी संतान में चेतना भरती है। उसे सुंदर-असुंदर और अच्छे-बुरे के मायने समझाती है। अलग-अलग भावों से उसका परिचय करवाती है। दुनिया जहान की बातें बताकर उसके भीतर ज्ञान की रोशनी प्रज्ज्वलित करती है। यह कार्य आसान नहीं होता, क्योंकि एक शिशु मानसिक रूप से अपरिपक्व होता है। उसका चंचल मन कहीं ठहरने को राजी नहीं होता। उसे समझाने के लिए बहुत धैर्यवान होने की जरूरत होती है। एक मां अपने बच्चे को सही रास्ता इसलिए दिखा पाती है, क्योंकि वह बड़े धैर्य से उसकी हर गलती को सुधारने का प्रयास करती है। उसे एक ही बात अनेक बार समझाती है। संतान अगर कोई भूल करे तब भी मां अपने बच्चे की हर नादानी, भूल को सहर्ष क्षमा कर देने के लिए तैयार रहती है। मां का हृदय होता ही इतना विशाल है, तभी तो मां के धीरज की तुलना धरती से की जाती है।
संतान की सुरक्षा कवच
संस्कृत भाषा में एक श्लोक है, नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया। इस श्लोक का अर्थ है- मां के समान कोई छाया नहीं है, मां के समान कोई सहारा नहीं है। मां के समान कोई रक्षक नहीं है और मां के समान कोई प्रिय भी नहीं है। हमारे शास्त्रों और पुराणों में मां की व्याख्या इतनी सटीक और विस्तार से की गई है कि यह आज भी उतनी ही सच है। मुसीबत आने पर एक मां अपने बच्चे का सुरक्षा कवच बन जाती है। संतान निराश हो तो मां हौसला बन जाती है। धूप हो तो मां छाया बन जाती है। बारिश हो तो मां छप्पर बन संतान के सिर पर तन जाती है। मां किसी भी परिस्थिति में अपनी संतान को अकेला नहीं छोड़ती। उसकी संतान चाहे जितनी बार गिरे, लड़खड़ाए, मां उसे संभालने के लिए सदैव तैयार रहती है।
नई मां महसूस ना करे अकेलापन
यह सही है कि एक बच्चे के साथ ही एक मां का भी जन्म होता है। लेकिन दुर्भाग्यवश मातृत्व से जुड़े शारीरिक बदलाव और भावनात्मक उथल-पुथल को समझने के लिए हमारा समाज अभी भी उतना परिपक्व नहीं हुआ है, जितना होना चाहिए। इसीलिए प्राय: बच्चे के जन्म के बाद एक नवजात को जितनी तरजीह दी जाती है, उतना उसे जन्म देने वाली स्त्री को नहीं मिलती। उसे भावनात्मक बदलाओं से संघर्ष करने के लिए कई बार अकेला छोड़ दिया जाता है। सच तो यह है कि अधिकतर जन्म देने वाली माताएं भी इन बातों से अनजान होती हैं। मातृत्व के बाद होने वाले अवसाद, तनाव, थकान, चिड़चिड़ेपन से बच्चे की परवरिश की व्यस्तताओं के बीच अकेली लड़ती हैं और कई बार वे अपना ख्याल ठीक से नहीं रख पाती हैं। ऐसे में जरूरत है कि मातृत्व से जुड़े इन भावनात्मक उथल-पुथल को परिवार के सभी सदस्य समझें। इससे लड़ने में नई-नई मां बनी बेटी, बहू, बहन, भाभी की मदद करें, जिससे अपनी शारीरिक, मानसिक सेहत के साथ इस नई भूमिका को निभाने में उसे कठिनाई ना हो, अकेलापन महसूस ना हो। (इस भाग में परिवार के साथ मां की फोटो लग सकती है)
मां की भावनाओं का करें सम्मान
इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाए कि जीवन भर अपने बच्चों पर प्यार लुटाने वाली मां, कई बार वृद्धावस्था में अकेली रहने को विवश हो जाती है। हमारे इसी समाज में कुछ ऐसी स्वार्थी-संस्कारविहीन संतानें भी होती हैं, जो अपनी मां की ममता का मोल उसे वृद्धाश्रम भेजकर चुकाते हैं। कुछ अपनी बढ़िया नौकरी और शानदार करियर में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि गांव-कस्बों में रह रही अपनी मां की खबर लेने वर्षों तक उसके पास नहीं जाते। मदर्स-डे के बहाने ही सही आइए, हम सब जीवन में अपनी मां के अमूल्य योगदान को समझें। उनकी भावनाओं का सम्मान करें। उनके प्यार, ममता, त्याग का आदर करते हुए मां को खूब सारा प्यार, स्नेह दें, उनके संग खुशी के कुछ खूबसूरत पल बिताएं।
सरस्वती रमेश