Unique Tree Gamhar: सागौन के बाद फर्नीचर के लिए सबसे अच्छी लकड़ी वाला पेड़ गम्हार का माना जाता है। लेकिन सिर्फ फर्नीचर के लिहाज से ही यह कॉमर्शियल पेड़ नहीं है बल्कि इसके सैकड़ों आर्थिक उपयोग भी हैं। इससे कागज बनाने वाली लुगदी बनती है। लकड़ी के बोर्ड बनते हैं। प्लाईवुड बनती है। दरवाजे, पैनलिंग और पेंसिल भी इसी लकड़ी से बनती है।
आर्थिक रूप से फायदेमंद
संस्कृत में गम्हार को मधुपर्णिका और महाकुसुमिका कहते हैं तो असमिया में इसका लोकप्रिय नाम गोमरी है। गम्हार या वाइट टीक, सागौन की तरह ही लेमियासी कुल का पेड़ है, जो 15 सालों में आमतौर पर 30 मीटर लंबा और करीब 60 सेंटीमीटर चौड़े तने वाला पेड़ बनकर तैयार हो जाता है। अच्छी मिट्टी और नियमित रूप से सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्र में यह 11 से 12 सालों में ही 30 मीटर तक लंबा हो जाता है और जिन इलाकों में पानी की सुविधा नहीं होती और मिट्टी भी बहुत उपजाऊ नहीं होती, वहां इसे वयस्क होने में 20 से 25 साल लगते हैं। किसानों के लिए यह करोड़ों की कमाई कराने वाला पेड़ माना जाता है। सामान्य मैदानी इलाकों से लेकर जमीन से 1500 मीटर की ऊंचाई तक यह बड़े आराम से विकसित होता है और एक एकड़ में आराम से 500 पेड़ लग जाते हैं। अगर ये 500 पेड़ सलामत रहे और समय-समय पर इनका जरूरी विकास होता रहा तो 15 से 20 सालों के भीतर ये एक करोड़ रुपए की कमाई करा देते हैं। इस तरह जिन किसानों के पास ठीक-ठाक जमीन है, उनके लिए यह कमाई का खजाना है। एक मीटर से अधिक चौड़ाई वाले गम्हार के लट्ठे की कीमत 15 से 20 हजार रुपए प्रतिघन मीटर हो सकती है। किसान अगर चाहें तो इसकी खेती की बदौलत थोड़ा धैर्य रखकर अपनी आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से सुधार सकते हैं। क्योंकि इस पेड़ की न सिर्फ जबरदस्त उपयोगिता है बल्कि आने वाले सालों में लगातार कई तरह के रोजमर्रा के उपयोग वाली चीजें इससे बना करेंगी।
इस तरह भी है उपयोगी
गम्हार के पेड़ के सिर्फ आर्थिक फायदे ही नहीं हैं, इसके औषधीय और पर्यावरणीय फायदे भी हैं। इसकी पत्तियां सितारे के आकार की और बालों से ढंकी होती हैं। इसकी जड़, छाल, फूल और पत्तियां सबका इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। आयुर्वेद की जो नई औषधियां बन रही हैं, उसमें जिन नई वनस्पतियों का सबसे ज्यादा उपयोग हो रहा है, उसमें गम्हार का पेड़ या गम्हारी का पेड़ भी शामिल है। इसकी पत्तियां चिकनी और ठंडी होती हैं, जो चोट लगने पर हल्की गुनगुनी करके चोट के ऊपर लगाई जाती हैं, जिससे चोट की सूजन कम होती है। इसकी पत्तियों का स्वाद कड़वा होता है। लेकिन इसके बीजों का तेल मीठा होता है और कुछ प्रजाति के बीजों का तेल कसैला होता है। गम्हार का तेल कफ, पित्त को नियंत्रित करता है। इसकी पत्तियों का रस मीठा होता है। इसके फूल पीले होते हैं, इसलिए इसको पितोहड़ी भी कहते हैं।
कई इलाकों में होती है खेती
झारखंड और बिहार के संथाल परगना क्षेत्र में विशेष रूप से पाया जाने वाला यह पेड़ अलग-अलग ऊंचाई के क्षेत्रों में अलग-अलग रूप और रंग हासिल कर लेता है। गम्हार की कमर्शियल खेती देश के अनेक इलाकों में की जाती है। कागज उद्योग के लिए यह बहुत ही कीमती पेड़ है। मध्य प्रदेश में खासकर मंडला, सीधी, शहडोल, अनूपपुर, कटनी, उमरिया और सिंगरौली जिले में इसे व्यवस्थित तरीके से लगाया जाता है। मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों में इसकी 11 किस्में देखने को मिलती हैं। हर इलाके का गम्हार का पेड़ दूसरे से कुछ भिन्न और उपयोगी होता है।
विदेशों में भी पाया जाता है।
गम्हार का पेड़ भारत के साथ साथ म्यांमार, कंबोडिया, चीन और लाओस में भी पाया जाता है और इन देशों में भी यह भारत की तरह ही पहले प्राकृतिक तरीके से उगा करता था, लेकिन इसकी बहुपयोगिता देखते हुए जल्द ही इसे व्यवस्थित तरीके से उगाया जाने लगा। गम्हार या गुमर टीक का तेजी से दक्षिण अमेरिकी देशों में भी विस्तार हुआ है। 1960 के दशक के बाद से इसने बहुत तेजी से ब्राजील, आइवरीकोस्ट, मलेशिया, फिलिपींस और नाइजीरिया जैसे देशों में भी अपनी उपयोगिता बनाई है।
वीना गौतम