Name Plate Row: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों के कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने के आदेश पर सोमवार को अंतरिम रोक लगाई। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष ने इस मुद्दे पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। दुकानदारों के धर्म और जाति की पहचान बताने वाले आदेशों को चुनौती देती कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। इन पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने आदेश पर फिलहाल रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस मुद्दे पर अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी। कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी को भी दुकान पर नेम प्लेट लगाने की जरूरत नहीं है।
बता दें कि सावन सोमवार के साथ देशभर में आज से कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी हैं। सबसे पहले यूपी सरकार ने दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने का आदेश दिया था। ताकि पहचान की जा सके कि दुकान किसी मुसलमान की है या हिंदू की।
जानिए कोर्ट रूम में क्या हुआ?
- सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या कांवड़िए भी यह उम्मीद करते हैं कि खाना किसी खास वर्ग के मालिक द्वारा पकाया जाए?
- वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- बहुत सारे शुद्ध शाकाहारी रेस्तरां हैं, जो हिंदुओं द्वारा चलाए जाते हैं और उनमें मुस्लिम कर्मचारी भी हो सकते हैं, क्या मैं कह सकता हूं कि मैं वहां जाकर नहीं खाऊंगा, क्योंकि खाना किसी न किसी तरह से मुस्लिमों या दलितों द्वारा छुआ जा रहा है? सरकारी आदेश में कहा गया है "स्वेच्छा से" (इच्छा से) लेकिन स्वेच्छा कहां है?
- सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से कहा कि हमें स्थिति को इस तरह से बयान नहीं करना चाहिए कि जमीन पर जो है, उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए। इन आदेशों में सुरक्षा और स्वच्छता के आयाम भी हैं। वकील सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्राएं दशकों से होती आ रही हैं और मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध समेत सभी धर्मों के लोग उनके मार्ग में मदद के लिए खड़े रहते हैं। अब आप बहिष्कार कर रहे हैं।
- एक याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने कहा- ज्यादातर लोग बहुत गरीब सब्जी और चाय की दुकान के मालिक हैं और इस तरह के आर्थिक बहिष्कार से उनकी आर्थिक मौत हो जाएगी। अगर आदेश नहीं मानेंगे तो बुलडोजर कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। यह चिंताजनक स्थिति है, जहां पुलिस अधिकारी विभाजन पैदा करने की जिम्मेदारी ले रहे हैं। इसमें अल्पसंख्यकों की पहचान की जाएगी और उनका आर्थिक बहिष्कार किया जाएगा। यूपी और उत्तराखंड के अलावा दो और राज्य जुड़ गए हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह एक प्रेस बयान था या औपचारिक आदेश कि इन्हें (नेम प्लेट) लगाई जानी चाहिए?
- याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया- पहले एक प्रेस बयान आया था और फिर सार्वजनिक आक्रोश हुआ। उनका कहना है कि यह स्वैच्छिक है, लेकिन वे (सरकार) इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं। कोई औपचारिक आदेश नहीं है लेकिन पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है।
- याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि यह एक छिपा हुआ आदेश है।
क्या है मामला?
यूपी सरकार ने कांवड़ मार्ग पर सभी दुकानों, ढाबों, स्टालों, ठेलों के मालिकों को अपने नाम बाहर लिखने का आदेश दिया। सीएम योगी ने फैसले के पीछे कांवड़ यात्रियों की आस्था का हवाला दिया। इसके अगले ही दिन उत्तराखंड में एक समान आदेश लागू किया गया है। कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालय और ढाबा संचालकों को अपना नाम, पता और मोबाइल नंबर लिखने को कहा गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अपनी पहचान बताने में किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। नेम प्लेट से जुड़ा ऐसा ही आदेश मध्य प्रदेश में उज्जैन कलेक्टर ने भी जारी कर दिया।