Ram Janmabhoomi Controversy: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होते हुए यह मंदिर एक नया इतिहास रच देगा। इस मंदिर के पुननिर्माण में 169 साल लग गए। इस मंदिर पर हिंदुओं के दावेदारी की कहानी 1855 में शुरू हुई। सबसे पहले अंग्रेजों के शासनकाल में पहली बार धार्मिक विवाद सामने आया। अंग्रेजों ने एक विवादित ढांचा मानते हुए इस पर ताला जड़ दिया। इसके बाद यह मंदिर 1986 तक बंद रहा।
1986 मंदिर पुननिर्माण के लिए एक्टिव हुआ VHP
1986 में श्रीराम मंदिर पर एक बार फिर से हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों ने ही इस ढ़ाचे पर अपनी-अपनी दावेदारी पेश करना शुरू कर दिया। देखते-देखते ही इस मुद्दे को लेकर पूरा उत्तरप्रदेश जल उठा। विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने मौका भांप लिया कि मंदिर के लिए मजबूती के साथ मांग उठाने का समय आ गया है। हिंदू संगठन इस मंदिर के सांकेतिक शिलान्यास की तैयारियों में जुट गए। VHP प्रमुख इस आंदोलन की अगुवाई में जुट गए।
1986 में ही तय हो गया था कौन बनाएगा मंदिर का डिजाइन
आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का सपना पूरा हो चुका है। लेकिन 1986 में जब इसके दोबारा निर्माण की पहली सुगबुगाहट शुरू हुई उसी समय अशोक सिंघल ने तय कर लिया था कि मंदिर का डिजाइन कौन तैयार करेगा। सिंघल के दिमाग में उस समय सिर्फ एक शख्स चंद्रकांत बी सोमपुरा का नाम था।
क्यों सोमपुरा काे ही चुना गया मंदिर का आर्चिटेक्ट
मंदिर के डिजाइन के लिए सोमपुरा का नाम जेहन में आने की एक बड़ी वजह यह थी कि सोमपुरा ने सोमनाथ मंदिर का डिजाइन तैयार किया था। इसके बाद जब 2020 में अयोध्या श्रीराम मंदिर पर फैसला आया तो एक बार फिर से सोमपुरा से संपर्क किया। मौजूदा मंदिर को सोमपुरा और उनके बेटे ने मिलकर डिजाइन किया है।
अयोध्या श्रीराम मंदिर विवाद की टाइमलाइन:
- 1885 में पहली बार अंग्रेजों के शासन काल में यह मामला कोर्ट में गया। महंत रघुबीर दास ने याचिका दायर की। मस्जिद से लगी जमीन पर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी।
- 1949 में पहली बार श्रीराम मंदिर के विवादित ढ़ांचा में श्रीराम की प्रतिमा रखी गई। संत अभिराम दास ने यह प्रतिमा रखी। संत अभिराम ने दावा किया कि भगवान राम उनके सपने में आए और मंदिर बनाने के लिए कहा।
- 1986 में इससे जुड़ा एक अहम फैसला आया। एक जिला जज ने 37 साल बाद मस्जिद के दरवाजों को खोलने का आदेश और मंदिरों को विवादित ढ़ांचे के अंदर पूजा करने की इजाजत दी।
- 1992 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली। इसके बाद राम मंदिर के दोबारा निर्माण की मांग तेज हुई। 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया।
- 2002 में अयोध्या मामले पर टाइटल सूट फाइल किया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की। कोर्ट में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें दी गई और सबूत पेश करने की कवायद शुरू हुई।
- 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया। एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। वहीं, बाकी के दो हिस्से निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमन को देने का आदेश सुनाया।
- 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय न्यायालय में इस मामले की 70 साल की सुनवाई के बाद ऐतिहासिक फैसला सुनाया। 2.77 एकड़ विवादित जमीन भारत सरकार की ओर से श्रीराम जन्मभूमि के निर्माण के लिए गठित ट्रस्ट को देने का फैसला सुनाया। इसके साथ ही मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन आवंटित करने का भी आदेश दिया।
- 2020 में भारत सरकार राम मंदिर के निर्माण के लिए ट्रस्ट गठित करने की घोषणा की। मस्जिद बनाने के अयोध्या के पास धन्नीपुर में 5 एकड़ जमीन आवंटित की।
- 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में प्रस्तावित श्रीराम जन्मभूमि मंदर के निर्माण की आधारशिला रखी। इसके चार साल बाद ही मंदिर के पुननिर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया।