Opinion: यह पहली बार है जब बांग्लादेश में हिंदुओं और उनके धर्मस्थलों पर हुए हमले के विरुद्ध पूरी दुनिया में आक्रोश प्रदर्शन देखा गया है। स्वयं बांग्लादेश में भी भारी संख्या में हिंदू सड़कों पर उतरेंगे इसकी भी कल्पना नहीं थी। इसी का परिणाम हुआ कि बांग्लादेश की वर्तमान गठित अंतरिम सरकार की ओर से औपचारिक रूप से हिंदुओं से माफी मांगी गई तथा कहा गया कि हम आपकी हर हाल में रक्षा करेंगे। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में लग रहा था कि जैसे हिंदुओं का जन सैलाब उमड़ पड़ा हो। लग रहा था कि उनके अंदर संघर्ष करने और अपना अधिकार पाने का जज्बा बना हुआ है। प्रदर्शन में महिलाएं भी नेतृत्व करतीं दिखीं।
बांग्लादेश के हिंदुओं के साथ एकता
सच यही है कि अगर बांग्लादेश के हिंदुओं ने साहस नहीं दिखाया होता तो उनको विश्व का जनसमर्थन नहीं मिलता। इसके साथ भारत में भी अलग-अलग शहरों में प्रदर्शन शुरू हुआ। सबसे बड़ा प्रदर्शन नारी शक्ति के नेतृत्व में दिल्ली के मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक 16 अगस्त को हुआ। भारत के बाहर अमेरिका-इंग्लैंड-फ्रांस -कनाडा और न जाने किन-किन देशों के हिंदुओं ने उतरकर बांग्लादेश के हिंदुओं के साथ एकता दर्शायी तथा अपने-अपने देश से मांग की कि वहां शेख हसीना की सत्ता उखाड़ फेंकने के बाद शासन चलाने वालों पर दबाव बढ़ाया जाए। इसका प्रभाव भी हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिंदुओं पर हमले रोकने की मांग की तो अमेरिका व कुछ अन्य देशों का भी ऐसा ही बयान आया। हालांकि भारत ने शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़कर यहां आने के बाद से ही अपना स्टैंड बिल्कुल स्पष्ट रखा।
संसद में दिए बयान में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हम वहां की अथॉरिटी से संपर्क में हैं। पूरे बयान में यह निश्चयात्मक भाव था कि वहां गैर मुस्लिमों विशेषकर हिंदुओं, बौद्धों, सिखों आदि पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए भारत जो कुछ संभव है, करेगा। जब मोहम्मद यूनुस कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई में ही हिंदुओं पर हो रहे हमलों का जिक्र करते हुए उम्मीद जताई कि नई सरकार उसे रोकेगी।
वैसे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बांग्लादेश व पाकिस्तान दोनों जगह हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों यहां तक कि ईसाइयों के विरुद्ध हिंसा पर भारत ने हमेशा स्पष्ट रुख अपनाया है।
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स्पष्ट नीति और तैयारी
मोदी सरकार ने 2019 में ही अपने तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर मुसलमानों की धार्मिक प्रताड़ना को आधार बनाकर ही नागरिकता संशोधन कानून बनाए जो इसके प्रति वर्तमान भारत की प्रतिबद्धता दर्शाता है। हालांकि कुछ सीमा के इलाकों में बांग्लादेशी हिंदू भारत में प्रवेश करने के लिए भी पहुंच गए। इससे यह संकेत मिला कि यदि आगे स्थिति बिगड़ी तो भारत को इसके संबंध में स्पष्ट नीति और तैयारी रखनी पड़ेगी। जैसी जानकारी है कि भारत सरकार लगातार बांग्लादेश सरकार के अलावा वहां के संगठनों, प्रमुख धार्मिक संस्थाओं तथा विश्व की एजेंसियों व प्रमुख देशों के साथ भी इस मामले पर संपर्क में है।
बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का चरित्र इस मामले में भयावह रहा है। वहां 1951 में हिंदुओं की आबादी लगभग 22 प्रतिशत थी। 2011 तक यह घटकर लगभग 8.54 प्रतिशत रह गई। बांग्लादेश की समाचार वेबसाइट डेली स्टार के अनुसार 2022 में भारत के इस पड़ोसी देश की आबादी साढ़े सोलह करोड़ से कुछ ज्यादा थी जिसमें 7.95 प्रतिशत लोग हिंदू थे। धार्मिक उत्पीड़न, जबरन धर्म परिवर्तन, संपत्तियों पर कब्जा आदि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में समान रहा है। शेख हसीना के कार्यकाल में भी हिंदू लगातार धार्मिक उत्पीड़न और हिंसा के शिकार रहे हैं। इन देशों में एक पूरा ढांचा मजहबी कट्टरवाद का है जिनके लिए गैर इस्लामिक काफिर हैं और उनको इस्लाम के अंदर लाना या न आने पर प्रताड़ित करना ये अपना मजहबी दायित्व समझते हैं।
अल्पसंख्यकों के पास कोई चारा नहीं
यह आम समाज से लेकर सत्ता तक विस्तारित है। बांग्लादेश के हिंदुओं ने जैसा प्रदर्शन किया है, निश्चित रूप से वहां गठित की गई वर्तमान अंतरिम सरकार को भी इसकी कल्पना नहीं रही होगी। आखिर आज तक जो नहीं हुआ, वह आगे होगा इसकी कल्पना कैसे की जा सकती है। वा तो इसे 'मरता क्या न करता' का परिणाम कहा जाए क्योंकि हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों के पास कोई चारा ही नहीं बचा था। दूसरी ओर, पिछले 10 वर्षों में भारत के चरित्र में आए परिवर्तन तथा दुनियाभर में इसके प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता। इस स्थिति ने ही विश्वभर के हिंदुओं और इनसे जुड़े समुदायों के अंदर आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और आत्मबल पैदा किया है।
बांग्लादेश के हिंदू समुदाय ने कहीं भी हिंसा का प्रत्युत्तर हिंसा से नहीं दिया है। यही स्थिति अन्य जगह भी है। जो भी समाज अपनी सुरक्षा के लिए उठकर खड़ा नहीं होता, उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। यह कमजोरी अगर दूर हुई है तो इसे भविष्य की दृष्टि से हिंदुओं के लिए अच्छा संकेत और संदेश माना जाना चाहिए। बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक असहिष्णुता और इसके आधार पर भेदभाव व हिंसा खत्म करने के लिए लंबे संघर्ष और परिवर्तन की आवश्यकता है। वैसे भी शेख हसीना की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए जिन शक्तियों के बीच घोषित - अघोषित गठजोड़ हुआ उनमें पाकिस्तान समर्थक कट्टरपंथी मजहबी हिंसक तत्व भी शामिल हैं। किंतु अहिंसक तरीके और प्रखर होकर अपनी भावना सामूहिक तौर पर अभिव्यक्त करने का असर होता है।
सामान्य परिवर्तन नहीं
गृह मंत्रालय के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल (सेवानिवृत) मुहम्मद सखावत हुसैन अगर सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि हिंसा में अनेक स्थानों पर हिंदुओं पर हमले हुए, उसके लिए सरकार को खेद है और इस हिंसा में जिन लोगों को नुकसान हुआ और जो मंदिर तोड़े या जलाए गए हैं उनकी क्षतिपूर्ति और निर्माण के लिए सरकार आर्थिक सहायता देगी तो अतीत को देखते हुए यह सामान्य परिवर्तन नहीं है। उनकी पंक्ति देखिए, हम आपकी रक्षा करने में विफल रहे हैं, और इसके लिए हमें खेद है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें, लेकिन हम इसमें असफल रहे हैं। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि देश के बहुसंख्यक समुदाय की भी है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करें, यह हमारे मजहब का भी हिस्सा है।
यहीं पर आगे वे क्षमा भी मांगते हैं 'मैं अपने अल्पसंख्यक भाइयों से क्षमा चाहता हूँ। हम अराजकता के दौर से गुजर रहे हैं। मैं पूरे समाज से आग्रह करता हूँ कि आप उनकी रक्षा करें।' उन्होंने आगे हिंदुओं के धार्मिक उत्सवों या पर्व - त्योहारों के समय पूरी सुरक्षा का आश्वासन भी दिया है। देखना होगा कि वाकई अंतरिम सरकार किस सीमा तक अपने इस वचन का पालन करती है, क्योंकि बांग्लादेश का आंतरिक ढांचा काफी हद तक कट्टरपंथियों के प्रभाव में रहा है जिसे शेख हसीना भी पूरी तरह खत्म नहीं कर पाईं। किंतु हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन इसी तरह सतत अपने अंदर संघर्ष के लिए खड़ा होने का चरित्र विकसित कर लें जो अभी दिखाई दिया है तो परिवर्तन अवश्य होगा।
अवधेश कुमार: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. ये उनके अपने विचार है।)
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