Prayagraj Maha Kumbh: प्रयागराज में संगम तट पर 40 किमी क्षेत्रफल में बसी कुंभनगरी आस्था, विश्वास, समपर्ण, ज्ञान, संस्कृति, परम्परा, नवाचारों, धर्म और रोजगार के साथ मानवता की मूर्त विरासत है। भारत की सांस्कृति विरासत और समाजशास्र को समझने का यह अनुपम प्रकल्प है। इसका अर्थतंत्र भी देखने और समझने लायक है। 6000 करोड़ के बजट वाले प्रयागराज महाकुम्भ से महज 45 दिन में 2 लाख करोड़ की राजस्व आय किसी चमत्कार से कम नहीं है।
13 जनवरी 2025 को पोस पूर्णिमा से विश्व का सबसे बड़ा सनातनी मेला, चलता फिरता देश 45 दिन के लिए आबाद हो गया। प्रयागराज में डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर 144 साल बाद आई शुभ घड़ी का आगाज किया। आधी रात से ही गंगा तट पर हर हर गंगे, जय श्री राम का उदघोष होने लगा था।
सूर्य की पहली किरण के साथ ही 2025 का महाकुंभ अनन्य आस्था, अगाध भक्ति, हर्ष-उमंग,सनातनी भावनाओं के उमड़ते ज्वार को पूरे विश्व ने देखा। कुंभ मेला 45 दिन अनवरत चलेगा। इस अमृत काल में अनुमान है कि 50 करोड़ लोगों का समागम 50 लाख की आबादी वाले 70 किलोमीटर क्षेत्र में फैले प्रयागराज में होगा।
यह महाकुंभ ही नहीं, बल्कि 50 दिन के लिए नया देश बसाया गया है। भारत और चीन के बाद गंगा, यमुना, सरस्वती के तट पर महाकुंभ नामक देश अपनी पौराणिक संस्कृति, धर्म, ज्ञान, नए सरोकारों, रोजगार सृजन के साथ सामाजिक सम्बधों की संरचना, व्यवस्था, प्रकार्यात्मक समागम स्थापित करेगा।
कुम्भ नगरी है आस्था, विश्वास, समपर्ण, ज्ञान,संस्कृति, परम्परा, नवाचारों, धर्म, रोजगार के साथ मानवता की एक मूर्त विरासत है। जाति भेदभाव के लिए कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा षड्यंत्र के तहत भारत को बदनाम करने वालों के लिए ये एक तमाचा है सामाजिक समरसता का। 45 दिनों तक धर्म, जाति, सम्प्रदाय, भाषा देश से हटकर समभाव के साथ
यूनेस्को ने इसे अगोचर सांस्कृतिक धरोहर
प्रयागराज में 40 किलोमीटर क्षेत्र में 25 सेक्टरों में 4 तहसील, 67 गांवों को मिलाकर 6500 करोड़ के बजट से पूरे कुंभ नगर को 4 माह में बसाया गया है। यूनेस्को ने इसे अगोचर सांस्कृतिक धरोहर बताया है। कुंभ मेले में 1249 किमी पाइप लाइन, अस्थायी 5000 टेंट, 66000 बिजली पोल, ट्रांसफार्मर, टेलीफोन एक्सचेंज, 36 पुलिस चौकियों, 3000 कमांडो, 37000 पुलिस कर्मी, 3000 महिला पुलिस कर्मी, 10000 अधिकारी, 250 महिला अधिकारी, 14000 होमगार्ड, 5150 आरपीएफ, 8000 राज्य पुलिस, जीआरपी, 45 पीएसी कंपनी, 20 आरएएफ कंपनी, 2700 सीसीटीवी 30 टीम ड्रोन, 7000 फायर कर्मी, अग्निशमन केंद्र, मीडिया सेंटर, बैंक, एटीएम अस्थायी बस स्टैंड लगभग 5 लाख कार, बस के लिए पार्किंग, 12 घाट बनाकर यूपी सरकार ने इतिहास रचा है।
कुम्भ मेले का महत्व और ऐतिहासिक संदर्भ
- कुम्भ मेला में कुम्भ का अर्थ है घड़ा। इसमें भारतीय संस्कृति का समागम होता है। मेले का अर्थ ही मिलन और समागम है। कुम्भ मेला अमरत्व का समागम है। पौष पूर्णिमा के दिन जब सूर्य और चंद्रमा वृश्चिक राशि में और वृश्चिक, मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो कुम्भ स्नान का दुर्लभ संयोग बनता है।
- महाकुंभ पूरे 12 साल में बनता है। कहते हैं कि इस दुर्लभ अवसर पर स्नान करने से साक्षात स्वर्ग के दर्शन होते हैं। मानवता की मूर्त सांस्कृतिक विरासत, कुम्भ मेला सदियों की परम्परा है। इसमें भारतीय ज्ञान परम्परा के साथ सनातनी समाज के दर्शन होते हैं।
- कुम्भ मेले को मान्यता है कि समुद्र मंथन में अमृत कलश निकला था, जिसे पीने वाला अजर अमर हो गए। इस घड़े के लिए देवता और दानवों में लड़ाई छिड़ी। 12 दिन की इस लड़ाई में इंद्र के पुत्र जयंत को अमृत कलश पाने में सफलता मिली, लेकिन छीना-झपटी में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अमृत की चार बूंदें गिर गईं। इन अमृत की बूंदों को चखने के लिए ही हर 12 साल में यहां कुम्भ मेला भरता है।
कुंभ मेले का इतिहास
- देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के लिए 12 साल के बराबर होते हैं। 12 वर्ष में 12 कुम्भ लगते हैं। इनमें 4 कुंभ पृथ्वी पर और 8 कुम्भ देवलोक में लगते हैं। कुम्भ मेला विश्व का सबसे बड़ा और प्राचीन मेला है। यह वैदिक काल से लग रहा है।
- इतिहासकार एसवी राय कहते हैं कि कुम्भ मेला ईसा पूर्व 10000 साल से लग रहा है। बौद्ध लेखों के अनुसार 600 ईसा पूर्व, चंद्रगुप्त के दरबार में एक यूनानी दूत के अनुसार ये400 ईसा पूर्व से लग रहा है। सम्राट हर्षवर्धन के राज्य में अर्थात 600 वी सदी में व्हेनसांग ने प्रयागराज में कुम्भ मेले में स्नान किया था।
- आदिगुरु शंकराचार्य ने 6वीं सदी में द्वारका, जगन्नाथ, रामेश्वरम, बद्रीनाथ में हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए चार मठ स्थापित किए थे। इनमें नागा साधुयों को धर्म रक्षा के लिए शिव भक्त बनाया गया। यहीं से अखाड़ों की परम्परा शुरू हुई, जो आज तक चल रही है। कुम्भ में अखाड़ों की अपनी आन-बान-शान होती है। इसमें भी नागा साधुओं को प्राथमिकता दी जाती है।
नागा साधुओं का महत्व
कुम्भ में सबसे पहले नागा साधु डुबकी लगाते हैं फिर दूसरे साधु-सन्यासी फिर आम नागरिक। नागा को संस्कृत में पहाड़ कहा जाता है। नागा बनना बहुत कठिन कार्य है। यह सिर्फ लंगोट लगाते हैं। हिमालय की गुफाओं में सिर्फ कठोर तप करते हैं और हर कुम्भ मेले में आकर गंगा, गोदावरी और छिप्रा में 17 शृंगार कर नहाते हैं। ये दौड़ते हुए गंगा में कूद कर मौजमस्ती करते हैं। नहाते समय हाथों में डमरू, शंख, तलवार, त्रिशूल रहती है। हर-हर महादेव के उद्घोघोष के साथ शरीर में भस्म लगाए तप करते हैं। अकबर की सेना ने जब काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला किया था तब नागा साधुओं ने ही उसे भगाया था। इसी तरह मथुरा से 300 नागाओं ने अब्दुल अफजाली को भगाया था।
कुम्भ मेले में नरसेवा नारायण सेवा
कुम्भ मेले पर प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर विश्व की अदभुत और आध्यात्मिक नगरी बसी हुई है। कुम्भ मेले में नरसेवा नारायण सेवा ध्येय वाक्य साकार हो रहा है। यहां दिव्यागों के लिए कार्य करने वाली संस्था सक्षम ने सेक्टर 6 में 10 एकड़ भूमि पर विशाल नेत्र चिकित्सालय खोला है। प्रयागराज में इस्कान, सेवा भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्वहिंदू परिषद, हंस फाउंडेशन, विवेकानंद सेवा न्यास जैसी संस्थाएं प्रतिदिन लाखों लोगों के भोजन-नास्ते की व्यवस्था करती हैं।
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कुंभ मेले का अर्थतंत्र और सामाजिक महत्व
- सामाजिक सरोकारों, सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक प्रकल्पों के सामाजिक ताने-बाने वाला यह मानवता की मूर्त सांस्कृतिक विरासत कुम्भ के समाजशास्र को समझने का अनुपम प्रकल्प है। संस्कृति के साथ इसका अपना अर्थ तन्त्र भी देखने लायक है। लगभग 6000 करोड़ के बजट वाले कुम्भ से 2 लाख करोड़ का राजस्व सिर्फ 45 दिन में मिलना चमत्कार से कम नहीं है। सोशल मीडिया में मजाक ही सही, लेकिन कुछ हकीकत भी है।
- सोशल मीडिया में इस मैसेज में दावा किया गया कि 45 दिन में 50 करोड़ लोग आएंगे। भिखारी भी आए तो और 1 लाख भिखारी भी 45 दिन रुक गए तो वह भी करोडपति बन जाएंगे। यदि 10 रुपए भी र1 करोड़ लोग दान करते हैं तो 10 करोड़ दान होगा। 45 दिन में लगभग 10 करोड़ रुपए दान के रूप में भिखारियों को ही मिल जाएंगे।
लेखक: ध्रुव दीक्षित, प्राध्यापक समाजशास्र, केसरवानी कॉलेज जबलपुर