Opinion: अठाईस अगस्त 2014 को शुरू किए गए प्रधानमंत्री जनधन योजना बानि पीएमजेडीवाई के 28 अगस्त 2024 को 13 साल पूरे हो गए। अपने 10 सालों के सफर के दौरान इस योजना ने कई उपलब्धियां हासिल की। यह योजना वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने, महिला सशक्तिकरण को बढ़ाने, डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया को गांव-गांव व घर-घर तक पहुंचाने, ग्रामीण क्षेत्र में बिचौलिए व सूदखोरों या महाजनों की भूमिका को कम करने, चोरी-चकारी की घटनाओं में कमी लाने, भ्रष्टाचार कम करने, सामाजिक बदलाव लाने, जमा और खर्च आदि में तेजी को सुनिश्चित करने में सफल रही है। चालू वित्त वर्ष में 16 अगस्त तक इस योजना के तहत 3 करोड़ नए खाते खोले गए हैं।
खातों की संख्या 53.13 करोड़
मार्च 2015 में जनधन खातों की संख्या 14.72 करोड़ थी, जो 16 अगस्त 2024 में बढ़कर 53.13 करोड़ हो गई, जो खाता खोलने के मामले लगभग 4 गुणा वृद्धि को दर्शाता है। खोले गए खातों में से 66.6 प्रतिशत खाते ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि 53.13 करोड़ खाते चालू या सक्रिय हैं और उनमें 2.3 लाख करोड़ रूपये का अधिशेष है, जबकि मार्च 2015 तक महज 14.7 करोड़ खाते खोले जा सके थे और उनमें 15,670 करोड़ रुपए जमा थे। अगस्त 2024 में जनधन खातों में औसत अधिशेष 4,352 रूपये रहा, जो मार्च 2015 में 1,065 रुपने था।
उल्लेखनीय है कि 16 अगस्त 2024 तक सिर्फ 8.4 प्रतिशत जनधन खातों में ही शून्य अधिशेष था। 53.13 करोड़ खातों में से 29.56 करोड़ खाते महिलाओं के हैं, जी प्रतिशत में 55.6 है। जनधन खाता खोलने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने सकारात्मक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकारी बैंकों ने कुल खोले गए जनधन खातों में से 78 प्रतिशत खाते खोले हैं। उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक 9.4 करोड़ जनधन खाते खोले गए हैं, जबकि बिहार 6 करोड़ जनधन खाते खोलकर मामले में दूसरे स्थान पर है।
यह भी पढें: Opinion: संघर्ष का चरित्र स्थाई बनाना होगा, हिंदुओं का जन सैलाब उमड़ पड़ा
कोरोना काल में रही खास भूमिका
जनधन खाते, मोबाइल और आधार कार्ड ने कोरोना महामारी में आमजन को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से किसान सम्मान निधि का वितरण छोटे एवं सीमांत किसानों के बीच करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी वजह से कोरोना महामारी के दौरान बड़ी संख्या में वंचित तबके के लोग असमय काल-कवलित होने से बच गए। आज जनधन खातों की वजह से गांवों के 5 किलोमीटर के दायरे के 99.95 प्रतिशत लोगों को पहुंच बैंकिंग सुविधाओं तक हो गई है।
ओवरड्राफ्ट की भी सुविधा
गांव के लोग बैंक को शाखाओं, बैंकिंग कोरेस्पोंडेंट और भारतीय पोस्ट पेमेंट बैंक द्वारा उपलब्ध कराई गई बैंकिंग सुविधाओं का लाभ किसी न किसी रूप में ले रहे हैं। भारतीय बैंक द्वारा शुरू किए गए फोन आधारित गैरवी सेवाओं का लाभ भी ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के लोग बिना बैंक शाखा गए ले रहे हैं, जिससे उनका कीमती समय व्यर्थ में बर्बाद नहीं हो रहा है। जनधन खाता खोलने, खातों के रखरखाव और न्यूनतम अधिशेष राशि के नहीं रहने या खाता अधिशेष शुन्य रहने पर भी बैंक द्वारा कोई शुल्क नहीं लिया जाता है और ग्राहकों को 10,000 रुपए तक ओवरड्राफ्ट की सुविधा भी दी जा रही है। बैंक रुपे कार्ड भी निःशुल्क जारी कर रहे हैं, जिसके साथ ग्राहकों को 2 लाख रुपए तक का मुफ्त दुर्घटना बीमा भी दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री जनधन योजना की वजह से आज 30 प्रतिशत व्यस्क के पास औपचारिक बैंक खाता है, जबकि 2011 में यह प्रतिशत महज 50 थी। इस योजना ने वैश्विक स्तर पर वित्तीय समावेशन के संदर्भ में भारत का मान बढ़ाया है, साथ ही इसके कारण परिवार को जगह व्यक्तिगत स्तर पर आमजन को पहुंच बैंक सुविधाओं तक हुई है। वितीय समावेशन के लिए समुचित परिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने के लिए जरूरी है कि आमजन को भागीदारी के साथ-साथ सरकार को भी मामले में सक्रिय हिस्सेदारी हो।
इस संदर्भ में सरकार और आमजन बढ़चढ़ कर काम कर रहे हैं और निजी स्तर पर भी इसे चढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है। हालांकि, अभी भी जनधन खातों के साथ-साथ लोगों को वित्तीय रूप से साक्षर करने और उन्हें ऑनलाइन धोखाधड़ी के खतरों से अवगत कराने की आवश्यकता है, जिसे निजी और सरकारी दोनों इकाइयों द्वारा लगातार किए जाने की जरूरत है. तभी प्रभावी तरीके से इन लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। जनधन खातों से आज रुपे कार्ड ने ग्रामीणों की पहुंच दुनिया-जहान के बाजारों तक कर दी है। अब गांव के घरों में भी अमेजन, फिलपकार्ट आदि देश-विदेश में चने उत्पादों की डिलीवरी कर रहे हैं।
बचत करने की प्रवृति विकसित
इतना ही नहीं, जनधन खातों ने लोगों के बीच बचत करने की प्रवृत्ति विकसित की है साथ ही साथ खर्च करने की प्रवृति में भी इजाफा किया है, जिसका मुख्य कारण ग्रामीणों की ऑनलाइन बाजार तक पहुँच का होना है। इन बदलावों से आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आ रही है। जनधन खाते सामाजिक बदलाव के भी वाहक हैं। इनको बजह से ग्रामीण क्षेत्रों में चोरी की घटनाओं में कमी आ रही है और लोगों की जुआ खेलने और शराब पीने की लत में भी कमी देखी जा रही है। जनधन खातों ने डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा देने, ई-कॉमर्स के कारोबार को बढ़ाने और यूनिफाइड पेमेंट सिस्टम (यूपीआई) के जरिये डिजिटल भुगतान के मामले में दुनिया में भारत को शीर्ष पर पहुंचाने में भी मदद की है। जुलाई 2024 तक भारत में यूपीआई के जरिये 5570 करोड़ लेनदेन किए गए थे।
सरकारी योजनाओं से जोड़े खाते
सामाजिक और आर्थिक मोचों पर और भी बेहतरी लाने के लिए जनधन खातों के साथ-साथ अब सरकार और बैंकों को ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में सूक्ष्म और लघु स्तर पर ऋण की सुविधा किफायती दर पर उपलब्ध कराने की भी जरूरत है, ताकि ग्रमीण भारत आत्मनिर्भर बन सके और ग्रामीण क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हिस्सेदारी बढ़ सके। साथ ही साथ देश में समावेशी विकास की संकल्पना भी शत-प्रतिशत साकार हो सके। मौजूदा डिजिटलाइजेशन के दौर में यह भी जरूरी है कि शहरी व ग्रामीण आमजन को ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाने और उन्हें साक्षर करने की दिशा में निरंतर काम करते रहा जाये। साथ ही, सरकार को चाहिए कि वह जनधन खातों के साथ अन्य सरकारी योजनाओं को आपस में जोड़ने की व्यवस्था करे ताकि अधिक से अधिक संख्या में बंचित तबके को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।
सतीश सिंह: (लेखक एजीम एसबीआई और स्तंभकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)
यह भी पढें: किसी दबाव में नहीं प्रधानमंत्री मोदी, रोजगार के बनेंगे नए अवसर