Opinion: इस समय पूरे देश की निगाहें 23 जुलाई को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा पेश किए जाने वाले केंद्रीय बजट 2024-25 की ओर लगी हुई है। यह उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2012-13 के बाद महंगाई के हिसाब से जिस आयकरदाता और मध्यम मवर्ग को राहत नहीं मिली है, अब वित्तमंत्री नए बजट के माध्यम से आयकरदाता और मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था को गतिशील करने की रणनीति पर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे सकती हैं।
राहतों पर फोकस
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि मध्यम वर्ग को राहत देने को लेकर विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद लगातार मांग तेज हुई है। सरकार ने विगत वर्षों में जहाँ गरीब लोगों के लिए ढेर सारी राहतों का ऐलान किया, वहीं कॉरपोरेट जगत पर भी सरकार ने ध्यान दिया, लेकिन राहत पाने के मद्देनजर सबसे अधिक टैक्स देने वाला मध्यम वर्ग पीछे छूट गया। 18वीं लोकसभा चुनाव के मतदान में मध्यम वर्ग की नाराजगी भी दिखाई दी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक संबोधन में कहा है कि मध्यम वर्ग देश के विकास का चालक है और मध्यम वर्ग कैसे कुछ बचत बढ़ा सके तथा मध्यम वर्ग के लोगों की जिंदगी को कैसे आसान बनाया जा सके, इस परिप्रेक्ष्य में रणनीतिकपूर्वक आगे बढ़ा जाएगा।
आयकर रिटर्न भरने वाले दोगुने से अधिक हुए
गौरतलब है कि इस पूर्ण बजट 2024-25 के समय वित्तमंत्री सीतारमण के पास आयकर संबंधी मजबूत परिदृश्य मौजूद है। पिछले 10 वर्षों में आयकर रिटर्न भरने वाले आयकरदाताओं की संख्या और आयकर की प्राप्ति में छलांगें लगाकर वृद्धि हुई है। 2023-24 में आयकर रिटर्न रिकॉर्ड 8 करोड़ के स्तर को पार कर चुका है और पिछले 10 वर्षों में आयकर रिटर्न भरने वाले दोगुने से अधिक हुए हैं। आयकर विभाग के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013-14 में आयकर संग्रह करीब 2.38 लाख करोड़ रुपए था। यह फिर तेजी से बढ़ता गया। यह वर्ष 2019-20 में 10.5 लाख करोड़ रुपए हो गया। कोरोनाकाल के कारण यह वर्ष 2020-21 में घटकर 9.47 लाख करोड़ रुपए पर आ गया। यह वर्ष 2021-22 में 14.08 करोड़ रुपए, वर्ष 2022-23 में 16.64 करोड़ रुपए और वर्ष 2023-24 में 19.58 करोड़ हो गया।
ऐसे में वित्तमंत्री सीतारमण मजबूत वित्तीय मुठ्ठठी से आयकर के नए और पुराने दोनों स्लैब की व्यवस्थाओं के तहत करदाताओं व मध्यम वर्ग को अभूतपूर्व राहतों से लाभान्वित कर सकती है। खासतौर से वेतनभोगी वर्ग को लाभान्वित करने के भी विशेष प्रावधान नए बजट में दिखाई दे सकते हैं। इसके तहत मानक कटौती (स्टैंडर्ड डिडक्शन) सीमा को 50,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये तक किया। जा सकता है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2018 में मानक कटौती की सीमा 40 हजार रुपये थी और वर्ष 2019 में इसे बढ़ाकर 50 हजार रुपये किया गया था।
टैक्स छूटों में वृद्धि वृद्धि संभव
नए बजट के तहत आयकर से संबंधित विभिन्न टैक्स छूटों में वृद्धि की जा सकती है। मौजूदा समय में धारा 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये की। छूट मिलती है। इसके तहत ईपीएफ, पीपीएफ, एनएससी, जीवन बीमा, बच्चों की ट्यूशन फीस और होम लोन का मूलधन भुगतान भी शामिल है। मकानों की बढ़ती हुई कीमत को देखते हुए धारा 80सी के तहत 2.5 लाख से तीन लाख की छूट दी जा सकती है। इसी तरह सरकार के द्वारा इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80डी के तहत कर कटौती की सीमा को बढ़ा सकती है। ऐसे में सरकार के द्वारा 80डी के तहत हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर टैक्स छूट को बढ़ा सकती है ताकि टैक्पेयर्स हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर प्रेरित। हों। 80डी में कर छूट सोमा को बढ़ाने के साथ-साथ वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष सीमा बढ़ाई जाने से लोगों को स्वास्थ बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) में योगदान की वार्षिक सीमा को मौजूदा 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया जा सकता है।
आयकर के दायरे में इजाफा
निःसंदेह देश में कर सुधारों से आयकर के संग्रहण में आशातीत वृद्धि हुई है, लेकिन अभी आयकर के कर दायरे में इजाफा किए जाने की बड़ी संभावनाएं हैं। जहां वर्ष 2024-25 के बजट से वित्तमंत्री आयकर राहत संबंधी उपहार सौंप सकती हैं, वहीं वे बजट में आयकर के दायरे का विस्तार करने की नई रणनीति का ऐलान कर सकती है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि बड़ी संख्या में उद्योग-कारोबार सेक्टर में कार्यरत रहते हुए कमाई करने वाले, महंगी आरामदायक व विलासिता की वस्तुओं का उपयोग हैं पर्यटन के लिए विदेश यात्राएं करने वालों में से बड़ी संख्या में लोग या तो आयकर न देने का प्रयास करते हैं या फिर बहुत कम आयकर देते हैं।
लोग आयकर नहीं देना चाहते
विभिन्न रिपोर्टो के मुताबिक पिछले एक वर्ष में करीब 24 लाख लोगों ने 10 लाख रुपए से महंगी कारें खरीदी, पिछले एक वर्ष में करीब 25 लाख लोगों के 50 लाख रुपये से अधिक कीमत के महंगे घर खरीदे, वर्ष 2022 में देश के करीब 2.16 करोड़ लोगों ने पर्यटन के मद्देनजर विदेश यात्राएं की। इस तरह लोगों के पास पर्याप्त कमाई के कारण ही ये खरीदियां और विदेश यात्राएं संभव हैं, लेकिन ऊंची कमाई करके भी बड़ी संख्या में लोग आयकर नहीं देना चाहते। वर्ष 2023-24 में देश के 140 करोड़ से अधिक लोगों में से सिर्फ 2.79 करोड़ लोगों ने ही आयकर दिया है। यानी देश की आबादी के 1.97 फीसदी लोगों ने ही आयकर दिया है। ऐसे में आयकर का पूरा बोझ दो फीसदी से भी कम आबादी के द्वारा उठाया जा रहा है।
देश में कुल आयकर रिटर्न के करीब 70 फीसदी आयकर रिटर्न शून्य आयकरदेयता बताते हुए दिखाई दिए हैं। ऐसे में दे मैं देश में आयकर संग्रहण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आकार की तुलना में महज 11.7 फीसदी ही है, जबकि यह जर्मनी में 38 फीसदी, जापान में 31 फीसदी, ब्रिटेन में 25 फीसदी अमेरिका में 25 फीसदी और चीन में 18 फीसदी है। स्थिति यह है कि अमेरिका की 60 फीसदी और ब्रिटेन की 55 फीसदी आबादी आयकर चुकाती है। दुनिया की कई छोटी-छोटी अर्थव्यवस्थाओं में संग्रहित किए जाने वाले आयकर का उनकी जीडीपी में बड़ा योगदान है। इसमें राहत से फायदा ही है।
नई रणनीति की संभावना
अतएव हम उम्मीद करें कि इस बार वित्तमंत्री नए बजट से ऐसे लोगों को चिह्नित करने की नई रणनीति के साथ दिखाई देगी, जिससे वास्तविक आमदनी का सही मूल्यांकन हो सके, लोगों के वित्तीय लेनदेन के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त हो सके। साथ ही जो वास्तविक कमाई से कम पर आयकर देते हैं, उन्हें भी चिह्नित करके अपेक्षित आयकर चुकाने के लिए बाध्य किया जा सके। निश्चित रूप से इससे देश में टैक्स संग्रहण बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी: (लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)