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Opinion : उजड़ती हरियाली से न केवल तपिश बढ़ रही है, बल्कि बढ़ते प्रदूषण ने भी जीना मुहाल कर दिया है। हवा में घुलते जहर, बढ़ते तापमान और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कटते वृक्षों से पैदा हो रहे पर्यावरण असंतुलन से मुकाबला करने का एकमात्र रास्ता अधिक से अधिक पेड़ लगाना ही है।

डॉ मोनिका शर्मा : मरुस्थल बनती धरती पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। उजड़ती हरियाली से न केवल तपिश बढ़ रही है, बल्कि बढ़ते प्रदूषण ने भी जीना मुहाल कर दिया है। ऐसे में पेड़ लगाना और सहेजना ही धरती के रंग और इंसानों का जीवन बचा सकता है। हवा में घुलते जहर, बढ़ते तापमान और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कटते वृक्षों से पैदा हो रहे पर्यावरण असंतुलन से मुकाबला करने का एकमात्र रास्ता अधिक से अधिक पेड़ लगाना ही है।

रोपे गए पौधे को पोसने के भाव से भी जुड़ी है
हाल ही में देशवासियों से अपने ग्रह को बेहतर बनाने में योगदान देने का अनुरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान शुरुआत की है। इस मुहिम का व्यावहारिक पक्ष यह है कि यह पेड़ लगाने की औपचारिकता पूरी करने भर से नहीं बल्कि रोपे गए पौधे को पोसने के भाव से भी जुड़ी है। हर साल बड़ी संख्या में वृक्षारोपण के बावजूद पालने-पोसने के प्रति गंभीरता न रखने के कारण बहुत से पौधे नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में वृक्षारोपण अभियान के साथ भावनात्मक जुड़ाव का भाव होना पेड़ लगाने के बाद उसे बचाने में भी मददगार साबित होगा। इसी भाव को बल देने वाली मुहिम को लेकर प्रधानमंत्री ने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा था कि 'मैंने प्रकृति मां की रक्षा करने और सतत जीवन शैली अपनाने की हमारी प्रतिबद्धता के अनुरूप एक पेड़ लगाया। मैं आप सभी से यह आग्रह करता हूं कि आप भी हमारे ग्रह को बेहतर बनाने में  योगदान दें।'

सिंचाई के अभाव में या तो सूख जाते हैं तो कभी मवेशी खा जाते हैं
विचारणीय है कि वृक्षारोपण के सामूहिक प्रयास सदा से अहम रहे हैं पर वृक्षारोपण का सद्विचार ही काफी नहीं है। समस्या लगाए गए पेड़- पौधों की देखभाल के प्रति गंभीर न रहने की ज्यादा है। कभी रोपे गए पौधे सिंचाई के अभाव में या तो सूख जाते हैं तो कभी मवेशी खा जाते हैं। संबन्धित विभागों की लापरवाही के कारण बाकायदा अभियान चलाकर रोपे गए पेड़ भी सूख जाते हैं, जबकि वन क्षेत्रों में नहीं गांवों-शहरों में भी निर्माण कार्यों के कारण पेड़ों की कटाई निरंतर जारी है। एक ओर बढ़ती आबादी के कारण शहरी इलाकों में आवासीय क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है तो दूसरी ओर गांवों-कस्बों में भी जमीनी जीवनशैली में बदलाव आया है। ध्यातव्य है कि वन विभाग की ओर से हर वर्ष नर्सरी तैयार कर वन क्षेत्रों में पौधे रोपे जाते हैं, पर लक्ष्य से दोगुनी संख्या में पौधे रोपने बावजूद काटे जा रहे पेड़ों की तुलना में नए पेड़ कम ही लग पाते हैं, जिसके कारण वन क्षेत्र संरक्षित करना भी आसान नहीं है, पर भारत में वन हानि रोकने के प्रयास गंभीरता से किए जा रहे हैं।

वृक्षों को बचाने वाली व्यावहारिक और प्रेरणादायी पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस अभियान जुड़कर लोग शहरी क्षेत्रों में बची खाली जगहों, उद्यानों और अपने घर के आंगन को हराभरा बनाकर कृति संरक्षण में भागीदार बन सकते हैं। असल में प्रकृति के अंधाधुंध दोहन के कारण खत्म हो रही हरियाली को पोसने के मोर्चे पर पौधरोपण संग निजी जुड़ाव और जवाबदेही का यह भाव वाकई सहायक सिद्ध हो सकता है। अपनी मां के नाम एक पेड़ लगाने को प्रेरित करने वाला यह अभियान वृक्षों को बचाने वाली व्यावहारिक और प्रेरणादायी पहल है। धरती माता के आंगन को हरा भरा रखने वाली संवेदनासिक्त मुहिम है। समझना मुश्किल नहीं कि अपनी माता को श्रद्धांजलि अर्पित करने के रूप में वृक्ष रोपने वाला हर इंसान उसे सहेजने के भी पूरे प्रयास करेगा। यह मानवीय मन का बहुत व्यावहारिक सा पक्ष है कि व्यक्तिगत जुड़ाव के बाद संरक्षण का भाव और प्रबल हो जाता है। यही जुड़ाव प्रकृति को संरक्षित करने वाले भाव-चाव का कभी ना डिगने वाला आधार बन सकता है।
(लेखिका फ्रीलांसर है, ये उनके अपने विचार है।)

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