Opinion: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से कांग्रेस और पूर्व की उनकी सरकारों पर है जमकर हमला बोला। पहले लोग बदलाव चाहते थे लेकिन उनकी आकांक्षाओं पर ध्यान नहीं दिया गया। मोदी सरकार ने जमीनी स्तर पर बड़े सुधार किए हैं। गरीब हो, मध्यम वर्ग हो, वंचित हो, नौजवानों के संकल्प और सपने हों या बढ़ती हुई शहरी आबादी हो, इन सभी के जीवन में बदलाव लाने के लिए, रिफॉर्म का किया गया है। रिफॉर्म का मार्ग आज ग्रोथ का ब्लूप्रिंट बना हुआ है।
भारत अब साहसी और सशक्त
बैंकिंग सेक्टर को मजबूत बनाने के लिए अनेक रिफॉर्म हुए हैं। उसके कारण हमारे बैंक विश्व के अग्रणी बैंकों में अपना स्थान बना चुके हैं। कभी आतंकी हमलों का शिकार रहा भारत अब साहसी और सशक्त बन गया है। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के अब तक के सबसे लंबे संबोधन से यह भी साफ होता है कि अपने तीसरे कार्यकाल में गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के बाद भी वह अपने लक्ष्य से डिमे नहीं हैं। उन्होंने करीव-करीब हर उस विषय पर उत्पने विचार व्यक्त किए, जो देश के समक्ष उपस्थित हैं। उन्होंने आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की चर्चा करते समय बांग्लादेश के हालात का भी जिक्र किया और वहां के हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की। ऐसा करना समय की मांग थी।
उन्होंने एक ओर जहां जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति पर प्रहार किया, वहीं दूसरी ओर कोलकाता की दिल दहलाने वाली घटना को ध्यान में रखते हुए नारी सुरक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने यह कहकर देश की राजनीति में व्यापक परिवर्तन लाने की भी पहल की कि आने वाले समय में एक लाख ऐसे बुवाओं को अपनी पसंद के राजनीतिक दलों में सक्रिय होना चाहिए, जिनके परिवार के लोग पहले कभी राजनीति में न रहे हों। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारतीय राजनीति को नए विचारों और नई ऊर्जा से लैस युवा नेताओं की आवश्यकता है। ऐसा कब और कैसे होगा, कुछ पता नहीं।
भावी राजनीति के एजेंडे को स्थापित करने का काम
प्रधानमंत्री ने देश को भावी राजनीति के एजेंडे को स्थापित करने का काम किया। एक तो उन्होंने भ्रष्टाचार से दृढ़ता से लड़ने का संकल्प लिया और दूसरे यह साफ किया कि देश को आए दिन होने वाले चुनावों से मुक्त करने की जरूरत है। उन्होंने एक साथ चुनावों की जरूरत जताई, उससे यही लगता है कि वह अपने इस तीसरे कार्यकाल में इस एजेंडे को लागू करने के प्रति गंभीर हैं। उन्होंने ऐसी ही गंभीरता समान नागरिक संहिता को लेकर भो दिखाई। उन्होंने जिस प्रकार वर्तमान पर्सनल कानूनों को सांप्रदायिक बताते हुए सेक्युलर नागरिक संहिता की जरूरत जताई, उससे इसमें संदेह नहीं रह जाता कि उनकी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने का मन बना चुकी है, यह सही भी है।
देश में एक ऐसी समान नागरिक संहिताला होनी चाहिए, जिससे हर जाति, पंथ, क्षेत्र के लोगों यह भाव व्याप्त हो कि वे सब एक हैं। आजादी के वक्त भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भी करीब ढाई लाख करोड़ रुपये था जो अच करीब तीन सौ लाख करोड़ के पास है। तब की 12 फीसदी साक्षरता से आज हम 75 फीसदी के आंकड़े को भी पार कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त फोब्स की हालिया रिपोर्ट में स्वर्ण भंडार रखने वाले शोषं बीस देशों की फेहरिश्त में भारत को सऊदी अरब, ब्रिटेन और स्पेन से आगे रखना देश की अर्थव्यवस्था के प्रति वैश्विक भरोसे का ही प्रतीक है। निजी अंतरिक्ष स्टार्टअप द्वारा अग्निबाण राकेट का प्रक्षेपण भी देश के लिए गर्व की बात है, जो नये उद्यमियों को इस क्षेत्र में उतरने के लिए प्रेरणा देगा।
तीसरी अर्थव्यवस्था बनने का संकल्प
ग्लोबल फायर पावर की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे मजबूत सेना है। भारत अभी दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तीसरी अर्थव्यवस्था बनने का संकल्प है। पिछले करीब एक दशक में लगभग 25 करोड़ लोगों का बहुआयामी गरीबी से बाहर आना, एक बड़ी उपलब्धि है। पिछले कुछ समय से संविधान को लेकर चल रही बहसें राजनीति का घटिया उदाहरण है। यह इसलिए विकसित भारत को और बढ़ने के साथ राह में आने वाली चुनौतियों को हराने और अधिकारों के साथ कर्तव्यों के प्रति सजग रहने का संकल्प लेने का भी अवसर होना चाहिए। आज सामाजिक एकता पर बल देने की आवश्यकता इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि देश को कई मोचों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
चुनौतियां आंतरिक मोर्चे पर भी हैं और बाहरी मोर्चे पर भी। हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि आज विश्व में किस तरह उथल-पुथल हो रही है। चूंकि उथल-पुथल हमारे पड़ोस में भी हो रही है, इसलिए, हमें कहीं अधिक सचेत रहना चाहिए। पड़ोसी देश बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उससे हमें केवल चिंतित ही नहीं, बल्कि सजग साहिब के स्थिरता और अराजकता से घिरने के कारण ही राष्ट्रपति ने भी स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर विभाजन की विभीषिका को ओर भी ध्यान आकर्षित किया। दुर्भाग्य से आज कई दलों के नेताओं ने सत्ता को सिर्फ राजनीति का खेल समझ लिया है। उनके पास देश के विकास का कोई एजेंडा नहीं है। वे देशी उद्यमियों के खिलाफ झूठी बातें फैलाते हैं। खुद विदेशों से चंदा लेते हैं। कभी अमेरिका और चीन की कम्पनियों की लूट के बारे में कुछ नहीं बोलते हैं।
भ्रष्टाचार नेताओं को शर्मसार नहीं करता
भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे कई राजनेता अपने बचाव के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखाई देते हैं। आज भ्रष्टाचार नेताओं को शर्मसार नहीं करता है। बल्कि वे बड़ी आक्रामक मुद्रा में जांच एजेंसिंचों पर हमला कर रहे हैं। राजनीति पतन को उस पराकाष्ठा पर पहुंच गई है जहां भ्रष्ट नेता देश में अराजकता फैलाने से भी बाज नहीं आते हैं। चिंता को बात यह है कि ऐसे नेता धन-बल और जातीय उन्माद फैलाकर अपना बचाव कर रहे हैं। इसलिए यह इस देश की जागरूक जनता का भी कर्तव्य है कि वह ऐसे को पहचाने और चुनाव में उन्हें सबक सिखाये। यदि हम जातिवाद के नाम पर भ्रष्ट और बेईमान नेताओं को भी अपना हीरो मानते रहेंगे तो इस देश की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार माने जायेंगे। देश के नवनिर्माण और लोकतंत्र को मजबूत बनाने में जनता की सबसे बड़ी भूमिका होती है।
आज देश की प्रगति के रास्ते में अराजकता की राजनीति सबसे बड़ा रोड़ा है। फ्रांस, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान में इस अराजक चेहरे को राजनीति का हथ हम सभी देख रहे हैं। इसलिए देश और समाज में झूठी बातें फैलाकर अराजकता की राजनीति करने वाले नेताओं से जनता को सदैव सावधान रहना चाहिए। विगत लोकसभा के चुनाव में कुछ दलों के नेताओं ने किस तरह संविधान और आरक्षण खत्म करने का झूठी बातें फैलाकर देश में अस्थिरता पैदा करने को कोशिश की। यहा हम सभी लोग देख चुके हैं। ऐसे नेता अपने कार्यक्रमों और एजेंडे की जगह झूठी बातें फैलाकर फिर चुनाव जीतने की कोशिश कर सकते हैं। इसलिए देश और समाज में झूठे भ्रम फैलाकर अराजकता की राजनीति करने वाले नेताओं से जनता को सदैव सावधान रहना चाहिए।
निरंकार सिंह: (लेखक हिंदी विश्वकोश के पूर्व सहायक संपादक हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)