Opinion: संदर्भ मई, 2014 का है। लोकसभा चुनाव के प्रचार में 10-12 दिन शेष थे। जाहिर है कि न तो जनादेश सार्वजनिक हुआ था और न ही नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे। अलबत्ता मीडिया से संवाद और साक्षात्कार के दौरान उन्होंने यह जरूर कहा था कि यदि हमारी सरकार बनी, तो 1993 के मुंबई सांप्रदायिक दंगों के आरोपियों को भारत लाएंगे। भाजपा के तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का भी जिक्र किया था कि उसे भी भारत लाएंगे और कानूनी कार्रवाई करेंगे।

चित्रमय सबूत सार्वजनिक
ऐसे बयान सुनकर एक अन्य डॉन ने मीडिया के जरिए मोदी को मारने की धमकी दी थी। यह भी कहा था कि 'दाऊद को तब भारत ला पाएंगे, जब जिंदा बचेंगे। मोदी गांधीनगर भी वापस नहीं जा पाएंगे।' मीडिया के जिन चेहरों के जरिये वह धमकी दी गई थी, उन्होंने भारत सरकार में संबद्ध अधिकारियों को खुलासा कर दिया था। उसके बाद मोदी बीते 10 साल से देश के प्रधानमंत्री हैं और दाऊद को अभी तक भारत नहीं लाया जा सका है। ऐसे दावे 1993 के बाद की सरकारों ने लगातार किए हैं। पाकिस्तान में दाऊद के आवास के चित्रमय सबूत भी सार्वजनिक किए गए हैं, लेकिन डॉन पाकिस्तान में ही है। मोदी को धमकी देने वाला डॉन कौन था, वह भी आज तक रहस्य रहा है।

प्रधानमंत्री की सुरक्षा सरोकार
बहरहाल विश्लेषण अंडरवर्ल्ड डॉन को लेकर नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा देश का सरोकार है। वैसे तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मुद्दा सार्वकालिक है, लेकिन अब यह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति एवं राष्ट्रपति उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप पर किए गए हमले के संदर्भ में ज्यादा प्रासंगिक है। उप्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखकर प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा पर चिन्ता जताई है। कुछ सवाल भी उठाए हैं। उन्होंने मौजूदा नफरती राजनीति को ही बुनियादी कारण माना है कि प्रधानमंत्री लगातार निशाने पर रहते हैं।

हिंसक प्रवृत्ति एक दशक से बढ़ी
उन पर कभी भी हमला किया जा सकता है। वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी की सलाह है कि प्रधानमंत्री को निशाना बनाकर हिंसा, हत्या, मौत सरीखे शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए, क्योंकि ये किसी भी नागरिक को भड़‌का सकते हैं। राजनीति में यह हिंसक प्रवृत्ति बीते एक दशक के दौरान ज्यादा बढ़ी है। सहिष्णुता और सद्भाव गायब होते जा रहे हैं। कांग्रेस भाजपा-एनडीए की नीतियों का विरोध करने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी को निजी तौर पर निशाना बना रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आम चुनाव के दौरान जून में, वाराणसी में, प्रधानमंत्री के काफिले पर किसी ने चप्पल फेंकने का दुस्साहस किया।

वह बम या ग्रेनेड भी हो सकता था। इस संदर्भ मैं कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणी थी कि अब लोग मोदी से डरते नहीं हैं। फरवरी, 2020 में राहुल गांधी ने यहां तक बयान दे दिया था 'ये जो नरेंद्र मोदी भाषण दे रहा है, छह महीने के बाद यह घर से बाहर नहीं निकल पाएगा। हिन्दुस्तान के युवा इसको ऐसा... मारेंगे, इसको समझा देंगे कि हिन्दुस्तान के युवा को रोजगार दिए बिना यह देश आगे नहीं बढ़ सकता।' यह उस पार्टी की नेता की भाषा थी, जो पार्टी देश की विरासत, संस्कृति, बहुलता, विविधता, संस्कार को संभालने का दावा करती है। यह उस पार्टी की नेता की भाषा थी, जो देश की सबसे पुरानी व स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने वाली पार्टी मानी जाती है। यह उस पार्टी के नेता की भाषा थी, जो महात्मा गांधी की विरासत का उतराधिकारी होने का दावा करती है। नरेंद्र मोदी के लिए यह उस नेता की भाषा थी, जो नेहरू व इंदिरा गांधी के परिवार के वंशज हैं।

पहले भाषण में ही हिंसा
जब राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए, तो उन्होंने अपने पहले भाषण में ही हिंसा और हत्या सरीखे शब्दों का कई बार इस्तेमाल किया। चप्पल फेंकना भी प्रधानमंत्री की चाक- चौबंद और अति प्रशिक्षित सुरक्षा-व्यवस्था पर गंभीर सवाल है। पंजाब के फिरोजपुर इलाके में प्रधानमंत्री के काफिले को एक हाईवे पर अटक जाना पड़ा, तो उस स्थान पर पाकिस्तान की तरफ से हमला किया जा सकता था! कांग्रेस और राहुल गांधी के भीतर प्रधानमंत्री मोदी के प्रति नफरत खूब भरी है। वे इसे चुनावी मुद्दा मानते रहे हैं, लिहाजा 2019 के आम चुनाव से पहले 'चौकीदार चोर है' को चुनावी नारा बनाया था। यह दीगर है कि देश ने कांग्रेस को खारिज कर दिया।

प्रधानमंत्री की सुरक्षा 'स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप' (एसपीजी) के जवान करते हैं। उनके पास अत्याधुनिक हथियार होते हैं और ऐसी तकनीकी व्यवस्था होती है कि प्रधानमंत्री को हवा भी छू नहीं सकती। एसपीजी प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को उपलब्ध नहीं थी, क्योंकि तब तक इसका गठन ही नहीं हुआ था। इसका गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव की सरकार के दौरान किया गया, जब राजीव गांधी की हत्या पर विमर्श किया जा रहा था। उसके बाद एसपीजी की सुरक्षा सिर्फ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को दी जाती है। । पूर्व प्रधानमंत्री को और उनके निकटस्थ परिजनों को सीआरपीएफ या एनएसजी के कमांडोज की सुरक्षा दी जाती है। राजीव गांधी के बाद किसी भी प्रधानमंत्री को 'आसान निशाना' नहीं बनाया जा सका और
न उन पर हमला किया जा सका।

अपशब्दों का इस्तेमाल
बहरहाल इन कथनों और घटनाओं के अलावा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय ने बयान दिया था कि 'मोदी हिटलर की मौत मरेगा।' 'मोदी की बोटी-बोटी करने' का बयान देने वाला शख्स आज लोकसभा में कांग्रेस सांसद है। कांग्रेस में ही किसी ने यहां तक बयान दिया कि 'मोदी के सिर पर डंडे मारने चाहिए'। प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उसकी एक लंबी सूची है। 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ, जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री मोदी के लिए 'मौत का सौदागर' विशेषण का इस्तेमाल किया था। बाद में राहुल गांधी ने भी 'खून की दलाली' और 'जहर की खेती' सरीखे अपशब्द कहे थे।

अपशब्दों का इस्तेमाल
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले और बाद कांग्रेस नेताओं ने उनके लिए 'चायवाला', 'रावण', 'भस्मासुर', 'यमराज', 'बिच्छू', 'सांप', 'बंदर', अनपढ़', 'हिटलर', 'गंदी नाली का कीड़ा' आदि 100 से अधिक अपशब्दों का इस्तेमाल किया। इन तमाम गालियों में मोदी के लिए कांग्रेस नेताओं की नफरत निहित थी। 2014 से आज तक यह नफरत जारी रही है, लेकिन उसका बुनियादी कारण आज तक समझ नहीं आया। प्रधानमंत्री मोदी ने आज तक हिंसात्मक शब्दों का प्रयोग नहीं किया। 2014 से कांग्रेस लगातार 3 लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार चुकी है।

आम चुनाव, 2024 में भी 13 राज्यों में कांग्रेस को 'शून्य' ही मिला है, जबकि कांग्रेस इंडिया ब्लॉक के 232 सीट को बड़ा विजय मान रही है, इसमें कांग्रेस की अपनी सीट केवल 99 है। सौ सीट भी हासिल नहीं कर सकी। भाजपा के अकेले 240 सीट हैं, जो इंडिया ब्लॉक की 232 सीट से ज्यादा है। समाजवादी पार्टी की 'परजीवी' बनने के बावजूद सबसे बड़े राज्य उप्र में कांग्रेस के हिस्से सिर्फ 6 सीट ही आई हैं, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी कांग्रेस गठबंधन में भी कुछ खास नहीं कर सकी, लेकिन कांग्रेस खुद को ऐसे प्रदर्शित कर रही है, मानो लोकसभा का जनादेश कांग्रेस को ही मिला है!

राजनीति की गरिमा भी दांव पर
बीते 40 साल में कई चुनाव देखे हैं और राजनीति के रंग भी देखे हैं, लेकिन ऐसी नफरती राजनीति अभूतपूर्व और असभ्य है। कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, पांच दशकों से अधिक समय तक देश पर शासन किया है, लेकिन अब पार्टी रसातल की ओर है। सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को गालियां देकर या उनके प्रति नफरत फैलाकर वोट हासिल किए जा सकते हैं? नरेंद्र मोदी ने भी राजनेता की हैसियत से कुछ आपत्तिजनक शब्द कहे थे, लेकिन उनके भाव मारने-काटने, हत्या कर देने या बेरोजगार युवा डंडे से पीटेंगे आदि नहीं थे।

उन्होंने '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड', 'युवराज' या 'शहजादा' सरीखे शब्दों का सार्वजनिक प्रयोग किया। ऐसी राजनीतिक भाषा भी ठीक नहीं है। अब सवाल देश के प्रधानमंत्री का है। मोदी देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं। तीसरी बार पीएम बने हैं। यह देश के लोकतंत्र और मतदाताओं जनादेश है, जिसे कांग्रेस या राहुल गांधी अथवा 'इंडिया' खारिज नहीं कर सकते। देश पहले भी दो प्रधानमंत्रियों की हत्या देख और झेल चुका है। कांग्रेस इस दर्द को भलिभांति जानती है। कांग्रेस नेताओं को समझना चाहिए दरअसल, ऐसे अपशब्द किसी को भी भड़का और उत्तेजित कर सकते हैं। उस मनःस्थिति में वह प्रधानमंत्री तक पर हमला कर सकता है। कई धमकीपूर्ण बयान किसान आंदोलन के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी के लिए कहे गए।

राजनीति की गरिमा
प्रधानमंत्री मोदी को मारने तक की बात कही गई और पुतले जलाए गए। पंजाब वाली घटना के दौरान नाराज और गुस्साए किसान भी प्रधानमंत्री की घेराबंदी कर सकते थे। कई राजनीतिक दल किसान आंदोलन के उनका कि धमकीबाजों उपद्रव हो! के साथ भी खड़े रहे। 26 जनवरी, 2021 को तो दिल्ली में ऐसा मचाया गया मानो दिल्ली पर ही किसी बाहरी शक्ति ने आक्रमण किया प्रधानमंत्री की सुरक्षा तो चिंतित सरोकार है, लेकिन हमारी राजनीति की गरिमा, कितनी सभ्यता और शालीन व्यवहार भी दांव पर हैं कि हमारी राजनीति नीचे तक गिर सकती है। इसे रोका जाना चाहिए और राजनीति मुद्दों, तथ्यों के आधार पर की जानी चाहिए। यही लोकतंत्र का सौन्दर्य है।
सुशील राजेश: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)