Opinion: 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से देश को संबोधित करते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया और कहा कि कृषि व्यवस्था को ट्रांसफॉर्म करना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा कृषि व ग्रामीण विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है। इसी के मद्देनजर इन दिनों प्रकाशित हो रही वैश्विक आर्थिक संगठनों और वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की रिपोटों में भारत में कृषि सेक्टर में सुधार और ग्रामीण खपत में वृद्धि के मद्देनजर भारत की विकास दर के अनुमान बढ़ाए जा रहे हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था रफ्तार से बढ़ रही है
हाल ही में एशियाई विकास बैंक (एडीपी) के द्वारा जारी रिपोर्ट में चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत की विकास दर को 6.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया गया है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की विकास दर अनुमान को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 फीसदी, ओईसीडी ने 6.2 से बढ़ाकर 6.6 प्रतिशत, स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने 6.3 से बढ़ाकर 7 प्रतिशत तथा फिच ने 7 से बढ़ाकर 7.2 प्रतिशत किया है। इसमें कोई दोमत नहीं है कि सरकार को इस वर्ष जो बेहतर मानसून विरासत में मिला है, उससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था रफ्तार से बढ़ रही है। पूरे देश के कोने-कोने में बेहतर मानसून के लाभ दिखाई देने लगे हैं। बेहतर मानसून से ग्रामीण इलाके में खपत बढ़ रही है।

बढ़ते हुए कृषि उत्पादन और ग्रामीण भारत के विकास के लिए सरकारी योजनाओं के तहत किए गए भारी व्यय तथा स्वरोजगार की ग्रामीण योजनाओं से ग्रामीण परिवारों की आमदनी में तेज इजाफे के साथ उनकी क्रय शक्ति बढ़ी है। ऐसे में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अधिक खर्च कर रहे हैं। कृषि संबंधी संसाधनों की अधिक बिक्री हो रही है, वरन गांवों में उपभोक्ताओं की खरीदारी भी उच्च स्तर पर है। यह सब ग्रामीण भारत में भविष्य के प्रति उत्साह और वर्तमान के बेहतर परिणामों का प्रतीक है। हाल ही में 12 अगस्त को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई के आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2024 में खुदरा महंगाई दर घटकर 3.54 फीसदी रह गई है, जबकि जून 2024 में खुदरा महंगाई दर 5.08 प्रतिशत थी। खुदरा महंगाई दर पिछले 5 वर्षों के सबसे कम ऐसे स्तर पर पहुंच गई है, जो कि रिजर्व बैंक के द्वारा निधर्धारित 4 प्रतिशत के लक्ष्य से भी नीचे है।

सरकार की महत्वपूर्ण पहल
निःसंदेह इस समय किसानों की आमदनी बढ़ाने और देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संवारने के लिए सरकार की महत्वपूर्ण पहल उभरकर दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देने के अभियान के तहत 11 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) परिसर के खेतों में जाकर 61 फसलों की 109 नई एवं उन्नत किस्में जारी करते हुए कहा कि इनसे देश में कम जमीन में अधिक पैदावार लेने और किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिल सकेगी। इससे महंगाई से भी बचाव होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक वर्ष 2024-25 के बजट के तहत किसानों के कल्याण और कृषि को विकास का इंजन बनाने की रणनीति के तहत किसानों के हित में कृषि व ग्रामीण क्षेत्र की क्षमता के दोहन के जो अभूतपूर्व कदम आगे बढ़ाए गए हैं, उनसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकी जा सकेगी।

इस बजट के माध्यम से कृषि सेक्टर के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपये सुनिश्चित किए हैं। बजट के तहत शीघ्र खराब होने वाले सामान की बाजार में समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इस बजट में प्रभावी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई हैं। बजट के तहत उपभोक्ता मामलों के विभाग को दाम स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के लिए 10,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं। जहां इस कोष का उपयोग दाल, प्याज और आलू के बफर स्टॉक को रखने के लिए किया जाएगा। प्राकृतिक खेती पर भारी प्रोत्साहन सुनिश्चित किए गए हैं और आगामी दो वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इस बार वित्त मंत्री ने नए बजट में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने, दलहन-तिलहन की पैदावार बढ़ाकर और किसानों की आय बढ़ाने, बीज की समस्या के निराकरण और मुख्य फसलों की उत्पादकता प्रभावित होने जैसे मामलों की चुनौतियों को कम करने कृषि के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ज्यादा प्रावधान किए हैं। निश्चित रूप से सरकार के द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संवारने की डगर पर आगे बढ़ते हुए कई अहम बातों पर ध्यान दिया जाना होगा।

महंगाई को नियंत्रित रखने के कारगर
कृषि प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल, कृषि में मशीनीकरण को बढ़ाए जाने, जलवायु अनुकूल कृषि-खाद्य प्रणाली अपनाएं जाने, अधिक ग्रामीण कच्ची सड़कों को मंडियों से जोड़ने, जैसी नीतिगत प्राथमिकताओं के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला में सुधार से खाद्य वस्तुओं की महंगाई को नियंत्रित रखने के कारगर प्रयासों की डगर पर लगातार आगे बढ़ना होगा। चूंकि देश में फसल कटाई के बाद की उपयुक्त व्यवस्था न होने से 12 से 14 फीसदी तक खाद्यान्न और करीब 35 फीसदी तक सब्जी और फलों की पैदावार बर्बाद हो जाती है। ऐसे में बजट के तहत इस वर्ष खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के लिए जिस तरह खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग के लिए ऋणों की राशि दोगुनी सुनिश्चित की गई है, उसके कारगर उपयोग पर ध्यान देना होगा। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार कृषि भंडारण क्षमता वर्ष 2023 में 14.5 करोड़ टन थी।

अब उसे वर्ष 2030 तक दोगुना बढ़ाने की रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा। कृषि भंडारण क्षमता के भौगोलिक स्तर पर उचित वित्तरण की डगर पर भी सरकार को आगे बढ़ना होगा। जहां उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, पंजाब और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में तो अधिक भंडारण क्षमता है वहीं बिहार और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों में इसकी भारी कमी है। सरकार को इस ओर भी ध्यान देना होगा कि ज्यादातर कोल्ड स्टोरेज में केवल एक ही फसल रखने की व्यवस्था होती है। अन्य फसलों के भंडारण की सुविधा इनमें नहीं होती। इसलिए अब देशभर में भंडारण क्षमता को उन्नत कर इनमें सभी या एक से अधिक कृषि उपज रखने की व्यवस्था की ओर भी ध्यान दिया जाना होगा। हम उम्मीद करें कि 11 अगस्त को सरकार ने 61 फसलों की 109 नई एवं उन्नत किस्मों से किसानों की आय बढ़ाने की जो पहल की है, उसके लाभों और प्रयोग के बारे में किसानों को उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित किया जाएगा।

रणनीतिक कदम बताए गए
वर्ष 2024-25 के नए बजट से कृषि और ग्रामीण विकास को रफ्तार देने के जो रणनीतिक कदम बताए गए हैं, उनके क्रियान्वयन पर शुरुआत से ही ध्यान दिया जाएगा। इनके साथ ही सरकार द्वारा बेहतर मानसून की शक्ति को मुट्ठी में लेकर कृषि सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ा जाएगा। ऐसे में जहां छोटे किसानों व ग्रामीण भारत के करोड़ों लोगों की खुशियां बढ़ेंगी, वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगी।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी: (लेखक ख्वात अर्थशात्री हैं. ये उनके आपने विचार हैं।)