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September Masik Durga Ashtami: सनातन धर्म में मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत हर महीने में 1 बार पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से साधक मां दुर्गा की भक्ति करते है।

September Masik Durga Ashtami: सनातन धर्म में मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत हर महीने में 1 बार पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से साधक मां दुर्गा की भक्ति करते है और उनके निमित्त व्रत रखते है, ताकि मां की कृपा उनके ऊपर बनी रहे। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए यह दिन खास माना जाता है। चलिए जानते है सितंबर माह की तारीख, पूजा-विधि व शुभ मुहूर्त- 

सितंबर में कब है मासिक दुर्गा अष्टमी?
(September Masik Durga Ashtami Date)

वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 10 सितम्बर 2024, मंगलवार की रात 11 बजकर 11 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 11 सितम्बर 2024, बुधवार की रात 11 बजकर 46 मिनट पर होगा। उदयातिथि को देखते हुए मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत 11 सितम्बर 2024, बुधवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन राधा अष्टमी, महालक्ष्मी व्रत, बुध अष्टमी व्रत और दूर्वा अष्टमी भी रहेगी। 

मासिक दुर्गा अष्टमी पूजा-विधि 
(Masik Durga Ashtami Puja Vidhi)

मासिक दुर्गा अष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। अब मंदिर में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें और उनका पंचामृत सहित गंगाजल से जलाभिषेक करें। अब मां को लाल चंदन, सिंदूर, शृंगार का समान और लाल पुष्प अर्पित करें। घी का दीपक प्रज्वलित करें और मां दुर्गा की आरती करें। इसके पश्चात मां दुर्गा को भोग चढ़ाएं और पूजा के अंत में अब अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा प्रार्थना करें। बाद में सभी में प्रसाद वितरण करें। 

दुर्गा चालीसा 
(Durga Chalisa)

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महा विशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँ लोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

आभा पुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दरिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।
काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु मुरख मोही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण॥

जय माता दी। 

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